जो शान्त भाव से उपासना करते हैं, उनके लिये केवल श्रीकृष्ण का ऐश्वर्यमय रूप प्रकाशित होकर रह जाता है। उन्हें यह नहीं ज्ञात होता कि इससे परे भी कुछ और है क्योंकि भगवान् जिस किसी को भी जिस रूप में मिलते हैं, उसी में उसको पूर्णता का अनुभव हो जाता है, कारण भगवान् सर्वत्र सब ओर से परिपूर्ण हैं।इसी प्रकार दास्य, सख्य, वात्सल्य भाव तक की प्राप्ति हो जाती है। पर यहाँ तक श्रीराधाजी एवं उनके दिव्य भाव का प्रकाश नहीं होता। वे प्रकट नहीं होतीं। जो इससे ऊपर उठते हैं, मधुर भाव से उपासना करते हैं और साधना की सिद्धि प्राप्त करते हैं, उन्हीं के लिये श्रीराधाजी प्रकट होती हैं। वे ही इस ऐश्वर्य विहीन परम-मनोहारिणी लीला का रस ले पाते हैं। एक बड़ा सुन्दर पद है
श्याम श्याम रटत राधा, श्याम ही भई री पूछत सखियनसौं प्यारी कहाँ गई री, यहाँ प्रेम की बड़ी विलक्षण अवस्था होती है श्रीराधा श्रीकृष्ण बन जाती हैं और श्रीकृष्ण श्रीराधा बन जाते हैं यह कवि की कोरी कल्पना नहीं, यह दिव्य चिन्मय प्रेमधाम में होने वाली लीला को अनुभव करके उसकी झाँकी का वास्तविक चित्र खींचा गया है। प्रेम रस में डूबे हुए व्रज के कई संतों ने सचमुच इस दिव्य लीला का साक्षात्कार किया था और तब पद रचना की थी सूरदासजी का प्रयाण-काल जब निकट आया, तब गोस्वामी विट्ठलनाथजी ने पूछा- सूरदास! मन की वृत्ति कहाँ है। सूरदास ने गाया है
बलि बलि बलि बलि कुअँरि राधिके, स्याम सुँदर जिन सौं रति मानी
पद का भाव यह है कि ‘धन्य राधिके! समस्त जगत्, समस्त ब्रम्हाण्ड को आनन्द देने वाले को भी तुमसे आनन्द मिलता है
आगे कहते हैं कि ‘तुम लोगों का रहस्य बड़ा ही विलक्षण है। श्यामसुन्दर पीताम्बर इसलिये पहनते हैं कि उसे देख-देखकर तुम्हारी स्मृति में डूबते रहें और तुम नीली साड़ी इसलिये पहनती हो कि श्यामसुन्दर की स्मृति में ही डूबी रहो
अन्तिम क्षण में पूछा गया-‘सूरदास! नेत्र की वृत्ति कहाँ है। उस पर गाया
खंजन नैन सुरँग रस माते
यही पद गाकर उन्होंने प्राण छोड़ दिये
For those who worship peacefully, only the opulent form of Shri Krishna remains illuminated. They do not know that there is anything beyond this, because in whatever form one meets the Lord, he experiences perfection, because the Lord is everywhere perfect from all sides. Similarly dasya, sakhya, vatsalya The value is achieved. But till here there is no light of Shri Radhaji and his divine spirit. They do not appear. Those who rise above this, worship with a sweet spirit and attain the accomplishment of sadhna, for them Shri Radhaji appears. Only they are able to take the juice of this super-beautiful leela without opulence. it’s a beautiful post
Shyam Shyam Ratat Radha, Shyam Hi Bhai Re asking where did Sakhianson beloved go, Here there is a very unique state of love, Shri Radha becomes Shri Krishna and Shri Krishna becomes Shri Radha, this is not a mere imagination of the poet, this divine chinmaya Leela in Premdham Real picture of his tableau has been drawn after experiencing it. Many sages of Vraj, immersed in the love interest, had really experienced this divine Leela and then composed the verse. Where is the instinct of the mind? sung by surdas Bali Bali Bali Bali Kunir Radhike, Siam Beautiful Jin Beauty Mani The meaning of the verse is ‘Blessed Radhike! The one who gives joy to the whole world, to the whole universe, also gets pleasure from you. It further says that ‘the secret of you people is very unique. Shyamsundar wears Pitambar so that after seeing it, he keeps drowning in your memory and you wear a blue sari so that you remain immersed in the memory of Shyamsundar At the last moment it was asked – ‘Surdas! Where is the instinct of the eye? sang on it Khanjan Nain Tunnel Ras Mates He gave up his life by singing this verse.
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