राधे जी की चरण सेवा”

green nature hill

.                       

        हर छोटा अपने बड़े (उच्चाधिकारी) की  सेवा, आराधना, भक्ति करता है तथा बड़ा उच्चाधिकारी) भी अपने से छोटे को उसकी सेवा, आराधना, भक्ति का फल प्रदान करता है। ऐसा न करने पर उसका अहम ही पतन का कारण बन जाता है।
        भगवान कृष्ण तो सर्वोच्च हैं सृष्टि के रचयिता हैं तो वे किसकी सेवा, आराधना, भक्ति और प्रीति करें तथा अपनी सेवा के फल की अपेक्षा करें ताकि उनमें अहम न आये। अपनी इन्हीं इच्छाओं की पूर्ति के लिए वे स्वयं ही रचना भी करते हैं। उन्हें युद्ध कि इच्छा हुई तो उन्होंने जय-विजय को श्राप दिला दिया, तपस्या कि इच्छा हुई तो नर-नारायण बन गए। उपदेश कि इच्छा हुई तो कपिल मुनि बन गए। उस सत्य संकल्प के मन में अनेक इच्छाएं उत्पन्न होती रहती हैं। भगवान् के मन में फिर भजन करने की इच्छा हुई, आराधन करने की इच्छा। अब किसका भजन करें ? उनसे बड़ा कौन है ? तो श्रुतियाँ कहती हैं कि उन्होंने अपनी स्वयं की ही अराधना की। ऐसा क्यों किया ? क्योंकि वह अकेले ही तो हैं, तो वह किसकी आराधना करेंगे ? श्रुति कहती हैं कि कृष्ण के मन में आराधना कि इच्छा उत्पन्न हुई तो कृष्ण ही राधा के रूप में आराध्य बन प्रकट हो गये। इसीलिये यह “मान लीला” कि कृष्ण राधा जी के चरण पकडे हैं, यह एक विशेष “प्रेम लीला” है। भगवान् कहते हैं कि – “तुम निरपेक्ष हो जाओ, मैं तुम्हारे चरणों की सेवा करूँगा ताकि सेवा का फल मुझे मिले। तुम्हारे चरणों के पीछे घूमूँगा ताकि तुम्हारे चरणों कि रज मेरे ऊपर पड़ जाए और मेरे अहम का नाश हो तथा मैं पवित्र हो जाऊँ। श्री राधाजी श्रीकृष्ण की आराध्य शक्ति हैं तभी तो वे उनके चरण दबा कर अपने को कृतार्थ करते हैं।
                                                    

Share on whatsapp
Share on facebook
Share on twitter
Share on pinterest
Share on telegram
Share on email

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *