श्री कृष्णाय वयम नुमः

सच्चिदानन्द रूपाय विश्वोत्पत्यादि हेतवे।
तापत्रय विनाशाय श्री कृष्णाय वयम नुमः।।

‘जिसका स्वरूप सच्चिदानन्द है, जो इस समस्त विश्व की उत्पत्ति, पालन एवं संहार करते है, जो उसके भक्तो के लिए तीनो ताप का विनाश करते है, हम सभी वोह श्री राधा कृष्ण को नमन करते हैं।’

पद्मपुराण में इस श्लोक से श्रीमद भागवत महात्म्य का प्रारंभ होता है। इसका विवेचन निम्नतया है।

सत-
नित्य एवं शास्वत। सत वह है जिसमे परिवर्तन नहीं होता है। वेदांत दर्शन में सत्य की व्याख्या यही है की जो तत्त्व परिवर्तनशील है वह नाशवंत है, अपितु सत्य नहीं, परन्तु जो प्राकृतिक बंधनों से परे है एवं परिवर्तनशील नहीं है, वह ही सत्य हो सकता है। भगवद गीता में भी भगवान श्रीकृष्ण कहते है कि ‘नासतो विद्यते भावो नाभावो विद्यते सतः’, जो असत है उसका अस्तित्व नहीं है एवं जो सत है उसका नाश नहीं होता, क्यूंकि वो नित्य है।

चित-
शुद्ध चैतन्य,

आनंद-
परम विलास। सुख इस संसार जगत के साथ द्वंद बंधनों से परे नहीं है, क्यूंकि सुख, दुःख के साथ बंधा हुआ है, जैसे हर्ष और शोक, ठंड और गर्मी, ऐसा ही इस संसार माया में द्वंद है परन्तु वेदिक शास्त्र जो आनंद की व्याख्या देते हैं वह इस संसार की अनुभूतियो के परे है जिसमे द्वन्द कदापि नहीं है।

रूपाय-
जिसका स्वरूप है।

विश्व-
इस सकल संसार जिसमे सभी कुछ जल, पृथ्वी, वायु, तेज, अग्नि से बनाया गया है और सर्व सांख्य दर्शन के तत्त्वों का श्रीमद भागवत महापुराण में विस्तारपूर्वक उल्लेख है।

उत्पति-
प्रारम्भ, निर्माण। श्रीमद भागवत में भगवान कहते है कि ‘अहमेवा समेवाग्रे नान्यद यत सदसत परम’ – ‘मेरे सिवा और कुछ नहीं था, न ही इस सृष्टि के तत्त्व थे न ही यह सृष्टि’, यह प्रमाण है कि भगवान कृष्ण के अलावा कुछ नहीं था, वो ही इस इस सकल संसार के रचयिता हैं।

आदि-
मूल तत्त्व केवल भगवान कृष्ण हैं, परन्तु इस सकल संसार के लिये अन्य देवी देवता भगवान की आज्ञा से सृष्टि सेवा में व्यस्त हैं।

हेतवे-
जिसका हेतु, निर्माता,

त्रय-
तीनों,

ताप-
दुःख का विभाजन। अध्यात्मिक, अधिदैविक एवं अधिभौतिक,

विनाशाय-
संपूर्ण नष्ट करता है,

श्री-
श्री राधा। वेदिक धर्म के अनुसार, जब हम प्रभु के नाम लेते हैं, उसके पहले हम देवीशक्ति का आवाहन एवं स्मरण करते हैं। श्रीमती राधारानी, श्री कृष्ण की अविछिन्न आह्लादिनी शक्ति हैं। श्री राधा जी की कृपा से ही जीव श्री कृष्ण प्रेम को अनुभव कर सकते है,

कृष्णाय-
उस कृष्ण को जो पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान है,

वयम-
हम सब जीव,

नुमः –
नमन करते है

हम जब इस श्लोक की विभाजन करते हैं, तो श्री कृष्ण के तीन लक्षणों के दर्शन होते हैं, वह है स्वरूप, कार्य और स्वभाव। सत, चित और आनंद, श्री कृष्ण का स्वरूप दर्शन है। श्री कृष्ण का कार्य दर्शन है- इस सकल संसार की उत्पत्ति, पालन एवं अंत में संहार, एवं तीसरा दर्शन है भगवान का स्वभाव, जो संतो, भक्तो एवं साधको के तीनों दुःख को मूल से विनाश कर देता है।

।। जय श्रीराधेकृष्ण ।।



To the form of true bliss, to the cause of the origin of the universe and other things. We bow to Sri Krishna for the destruction of torment.

‘Whose form is Sachchidananda, who creates, sustains and destroys this entire world, who destroys all three heats for his devotees, we all bow down to that Shri Radha Krishna.’

Shrimad Bhagwat Mahatmya begins with this verse in Padmapuran. Its explanation is as follows.

sat- Daily and eternal. Truth is that which does not change. The explanation of truth in Vedanta philosophy is that the element which is changeable is perishable, but is not truth, but only that which is beyond natural constraints and is not changeable can be truth. Even in Bhagavad Gita, Lord Shri Krishna says that ‘Nasato Vidyate Bhavo Nabhavo Vidyate Satah’, that which is unreal does not exist and that which is true does not get destroyed, because it is eternal.

chit- pure consciousness,

Pleasure- Ultimate luxury. Happiness is not beyond the bounds of conflict with this world, because happiness is bound with sorrow, like joy and sorrow, cold and heat, similarly there is conflict in this world of illusion, but the Vedic scriptures that explain happiness are It is beyond the experiences of this world in which there is never any conflict.

Rupay- whose form is.

World- This entire world in which everything is made of water, earth, air, light, fire and all the elements of Sankhya philosophy is mentioned in detail in Shrimad Bhagwat Mahapuran.

Origin- Beginning, construction. In Srimad Bhagwat, Lord says that ‘Ahameva Samevagre Nanyad Yat Sadsat Param’ – ‘There was nothing else except Me, neither the elements of this creation nor this creation’, this is the proof that there was nothing other than Lord Krishna, He He is the creator of this entire world.

Etcetera- The basic element is only Lord Krishna, but for this entire world, other gods and goddesses are busy in serving the creation by the order of God.

hetwe- For which, the Creator,

Triad- all three,

Temperature- Division of suffering. Spiritual, Supernatural and Supernatural,

destruction- destroys the whole,

Mister- Shri Radha. According to Vedic religion, before we take the name of the Lord, we invoke and remember the Goddess Shakti. Shrimati Radharani is the inseparable Ahaladini Shakti of Shri Krishna. Only by the grace of Shri Radha ji can living beings experience the love of Shri Krishna.

Krishnay- To Krishna who is the Supreme Personality of Godhead,

We- We are all creatures,

Numah – We salute you

When we divide this verse, we see three characteristics of Shri Krishna, that is form, work and nature. Sat, Chit and Anand are the form of Shri Krishna Darshan. The work philosophy of Shri Krishna is – the origin, maintenance and finally destruction of this entire world, and the third philosophy is the nature of God, which destroys all the three sorrows of saints, devotees and seekers from their roots.

, Jai Shri Radhe Krishna.

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