जय गोपाल, नमामीश्वरं सच्चिदानंदरूपं
लसत्कुण्डलं गोकुले भ्राजमानम् ।
यशोदाभियोलूखलाद्धावमानं
परामृष्टमत्यं ततो द्रुत्य गोप्या ।।१।।
रुदन्तं मुहुर्नेत्रयुग्मं मृजन्तं
कराम्भोज-युग्मेन सातंकनेत्रम्।
मुहु:श्वास कम्प-त्रिरेखामकण्ठ
स्थित ग्रैव-दामोदरं भक्तिबद्धम् ।।२।।
इतीदृक् स्वलीलाभिरानंद कुण्डे
स्वघोषं निमज्जन्तमाख्यापयन्तम् ।
तदीयेशितज्ञेषु भक्तैर्जितत्वं
पुन: प्रे तस्तं शतावृत्ति वन्दे ।।३।।
वरं देव ! मोक्षं न मोक्षावधिं वा
न चान्यं वृणेऽहं वरेशादपीह।।।
इदं ते वपुर्नाथ गोपाल बालं
सदा मे मनस्याविरस्तां किमन्यै:।।४।।
इदं ते मुखाम्भोजमत्यन्तनीलै-
र्वृतं कुन्तलै: स्निग्ध-रक्तैश्च गोप्या।
मुहुश्चुम्बितं बिम्बरक्ताधरं मे
मनस्याविरस्तामलं लक्षलाभै:।।५।।
नमो देव दामोदरानन्त विष्णो
प्रसीद प्रभो दु:ख जलाब्धिमग्नम् ।
कृपादृष्टि-वृष्ट्यातिदीनं बतानु
गृहाणेश मामज्ञमेध्यक्षिदृश्य:।।६।।
कुबेरात्मजौ बद्धमूर्त्यैव यद्वत्
त्वयामोचितौ भक्तिभाजौकृतौ च।
तथा प्रे भक्तिं स्वकां मे प्रयच्छ
न मोक्षे गृहो मेऽस्ति दामोदरेह।।७।।
नमस्तेऽस्तु दाम्ने स्फुरद्दीप्तिधाम्ने
त्वदीयोदरायाथ विश्वस्य धाम्ने ।
नमो राधिकायै त्वदीय-प्रियायै
नमो अनंत लीलाय देवाय तुभ्यम्।।८।।
१. शाश्वत ज्ञान और आनन्द के मूर्तिमान् स्वरूप परम भगवान्, जिनके कुण्डल इधर- उधर हिल-डुल रहे हैं, जो गोकुल में अत्यन्त सुन्दर प्रतीत होते हैं, जो (माता यशोदा द्वारा मथी जा रही दही के बर्तन को तोड़ने और माखन चुराने के दण्ड से बचने के लिए) ऊखल से कूदकर तेजी से दौड़ जाते हैं, किन्तु अन्ततः यशोदा द्वारा अधिक तेजी से दौड़कर पकड़े जाते हैं – अनन्त लीला करने वाले ऐसे भगवान् दामोदर को मैं प्रणाम करता हूँ।
२. अपनी माता के हाथ में छड़ी देखकर वे रोते हैं और बारम्बार अपने हस्तकमलों से नेत्रों को मसलते हैं। उनकी आँखें दहशत से भरी हैं और तेजी से साँस लेने के कारण तीन रेखाओं से अंकित उनके गले में पड़ी मोतियों की माला हिल रही है। उन परम भगवान् दामोदर को, जिनका उदर अपनी माता के शुद्ध प्रेम से बँधा है, मैं प्रणाम करता हूँ।
३. इन अद्भुत बाल्यलीलाओं से श्रीकृष्ण सभी गोकुलवासियों का आनन्द के सागर में निमग्न कर देते हैं। इस प्रकार वे भगवान् के ऐश्वर्य ज्ञान में लीन लोगों के समक्ष घोषणा करते हैं, ‘‘मैं केवल अपने प्रेमी भक्तों द्वारा ही जीता जा सकता हूँ।’’ मैं प्रेमपूर्वक ऐसे दामोदर भगवान् को शत-शत प्रणाम करता हूँ।
४. हे भगवन्! यद्यपि आप सभी प्रकार के वर देने में सक्षम हैं, मैं न तो मुक्ति की, न वैकुण्ठ निवास की और न ही अन्य किसी वरदान की आशा करता हूँ। हे भगवन्! मेरी केवल यही इच्छा है कि आपका यह बाल-गोपाल रूप सदैव मेरे हृदय में प्रकट होता रहे। इसके अतिरिक्त अन्य वरदानों का मेरे लिए क्या लाभ?
५. हे भगवन्! माता यशोदा बारम्बार आपके कमलमुख का चुम्बन लेती हैं, जो लालिमायुक्त कोमल काली लटाओं तथा आपके बिम्ब फल के समान सुन्दर होंठो से सुसज्जित है। आपके कमलमुख का यह रूप सदैव मेरे हृदय में प्रकट होता रहे। मेरे लिए अन्य हजारों-हजारों वरदानों का कोई लाभ नहीं है।
६. हे देव, मैं आपको प्रणाम करता हूँ। हे दामोदर! हे अनन्त! हे विष्णु! हे नाथ! हे भगवन्, कृपया मुझपर प्रसन्न होइये। अपनी कृपादृष्टि मुझपर डालिये और इस सांसारिक कष्टों के सागर में डूबे इस दीन-हीन का उद्धार कीजिए तथा मेरे आँखों के समक्ष प्रकट होइये।
७. हे दामोदर! ऊखल से बँधे अपने शिशु रूप में आपने नारद द्वारा शापित दो कुवेर-पुत्रों को मुक्त करके उन्हें महान् भक्त बना दिया। इसी प्रकार कृपया मुझे भी अपनी शुद्ध प्रेमभक्ति प्रदान कीजिए। मैं केवल इसकी कामना करता हूँ और मुक्ति की कोई इच्छा नहीं करता।
८. हे दामोदर, आपके उदर को बाँधने वाली दैदीप्यमान रस्सी को प्रणाम! आपके उदर को प्रणाम जो सम्पूर्ण जगत् का धाम है! आपकी सर्वप्रिया श्रीमती राधारानी को प्रणाम! और अनन्त लीला करने वाले हे भगवन्, आपको भी मेरा प्रणाम है।
Jai Gopal, I bow to God, the form of true bliss The glittering earrings shone in the cowshed. Yashodabhiyolukhaladdhavamanam Then the cowherd woman rushed to the scene.
crying and rubbing his eyes again and again Satanka eyes with a pair of hands and lotuses. Muhu:breathing trembling-three-line throat Standing in the grave-Damodara, bound with devotion.
Thus in the pool of bliss by his own pastimes He was telling his voice as he drowned. Conquest by devotees among those who know His Lordship Again I offer my obeisances to him a hundred times.
Better, God! Moksha, not the killing of liberation I do not ask for anything else here even from the lord of the boons This is your body, O cowherd boy Always in my mind, what else?
This is your face with the most blue- The gopīs were covered with locks of greasy red hair I kissed my red lips again and again The mind is immaculate with the gains of lakhs.
O Lord Damodara, infinite Vishnu Please, Lord, I am drowning in the ocean of suffering. Tell me the poorest of the rain of mercy O Lord accept me, the ignorant, the sacrificial, the visible.
Just as the sons of Kubera are bound in idols You have redeemed them and made them vessels of devotion. and give me your devotion to Pre I have no home in liberation, O Damodara.
O Damna, the source of sparkling radiance, I offer my obeisances to you For your abdomen, the abode of the universe. O Radhika, your beloved O Lord of infinite pastimes, I offer my obeisances to You.
1. The Supreme Lord, the embodiment of eternal knowledge and bliss, whose coils are swaying here and there, who looks very beautiful in Gokula, who (to escape the punishment of breaking the pot of curd being churned by Mother Yashoda and stealing butter) (for) jumps from the jumper and runs fast, but is finally caught by Yashoda by running faster – I bow to such Lord Damodar, who performs eternal pastimes.
2. Seeing the stick in his mother’s hand, he weeps and repeatedly rubs his eyes with his lotus hands. His eyes are filled with terror and the string of pearls around his neck marked with three lines is shaking as he breathes rapidly. I bow to the Supreme Lord Damodar, whose belly is bound by the pure love of his mother.
3. With these wonderful child-lilas, Shri Krishna immerses all the people of Gokul in the ocean of joy. Thus he declares before the people absorbed in the opulent knowledge of the Lord, “I can be conquered only by my loving devotees.” I offer my wholehearted obeisances to such a dear Lord with love.
4. O Lord! Although you are capable of giving all kinds of boons, I do not expect neither liberation, nor Vaikuntha abode, nor any other boon. O Lord! My only wish is that this Bal-Gopal form of yours may always appear in my heart. Apart from this, what are the benefits of other boons for me?
5. O Lord! Mother Yashoda kisses your lotus-mouth again and again, which is adorned with soft black vines with redness and beautiful lips like the fruit of your image. May this form of your lotus face always appear in my heart. Thousands and thousands of other boons are of no use to me.
6. Oh god, I salute you. Oh Damodar! O Eternal! Oh Vishnu! Oh Nath! O Lord, please be pleased with me. Cast your grace upon me and deliver this poor man who is drowned in this ocean of worldly miseries and appear before my eyes.
7. Oh Damodar! You, in your infant form, tied to the neck, freed the two kuvara-sons cursed by Narada and made them great devotees. Similarly, please give me your pure love-bhakti. I only wish for it and have no desire for salvation.
8. O Damodar, salutations to the dazzling rope that binds your abdomen! Salutations to your abdomen which is the abode of the whole world! Salute to your dearest Mrs. Radharani! And my obeisances to you too, O Lord who performs eternal pastimes.