“वृंदावन बिहारीलाल का हिसाब”

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एक बार मैं ट्रेन से आ रहा था, मेरी साथ वाली सीट पर एक वृद्ध औरत बैठी थी जो लगातार रो रही थी…
मैंने बार-बार पूछा मईया क्या हुआ, मईया क्या हुआ?
बड़ी मिन्नतों के बाद मईया ने एक लिफाफा मेरे हाथ पर रख दिया। मैंने लिफाफा खोल कर देखा उसमें चार पेड़े, 200 रूपये और इत्र से सनी एक कपड़े की कातर थी।

मैंने मईया से पूछा, मईया ये क्या है?
मईया बोली मैं वृंदावन बिहारी जी के मंदिर गई थी, मैंने मंदिर की गुल्लक में 200 रूपये डाले और दर्शन के लिऐ आगे बिहारी जी के पास चली गई। वहाँ गोस्वामी जी ने मेरे हाथ मे एक पेड़ा रख दिया। मैंने गोस्वामी जी को कहा मुझे दो पेड़े दे दो पर गोस्वामी जी ने मना कर दिया। मैंने उससे गुस्से में कहा कि मैंने 200 रूपये डाले हैं, मुझे पेड़े भी दो चाहिए पर गोस्वामी जी नहीं माने। मैंने गुस्से में वो एक पेड़ा भी उन्हें वापिस दे दिया और बिहारी जी को कोसते हुए बाहर आ कर बैठ गई।
मैं जैसे ही बाहर आई तभी एक बालक मेरे पास आया और बोला मईया मेरा प्रसाद पकड़ लो, मुझे जूते पहनने हैं। वो मुझे प्रसाद पकड़ा कर खुद जूते पहनने लगा और फिर हाथ धोने चला गया। लेकिन फिर वो वापस नहीं आया। मैं पागलों की तरह उसका इंतजार करती रही। काफी देर के बाद मैंने उस लिफाफे को खोल कर देखा, उसमें 200 रूपये, चार पेड़े और एक कागज़ पर लिख रखा था (मईया अपने लाला से नाराज ना हुआ करो) ये ही वो लिफाफा है! भाव बिना बाज़ार में वस्तु मिले न मोल, तो भाव बिना "हरी " कैसे मिले, वो तो है अनमोल!! *देने के बदले लेना तो एक बीमारी है* *और जो कुछ देकर भी कुछ ना ले* *वो बांके बिहारी हैँ ।*



Once I was coming by train, in the seat next to me was an old lady who was crying incessantly… I asked again and again what happened, Mayya, what happened? After many pleas, Maya put an envelope on my hand. I opened the envelope and saw that there were four pedas, 200 rupees and a cloth lined with perfume.

I asked Maya, Maya what is this? Maya said I went to the temple of Vrindavan Bihari ji, I put 200 rupees in the piggy bank of the temple and went to Bihari ji for darshan. There Goswami ji placed a peda in my hand. I told Goswami ji give me two pedas but Goswami ji refused. I told him angrily that I have put 200 rupees, I want to give pedas too, but Goswami ji did not agree. In anger, I also gave that one peda back to him and came out cursing Bihari ji and sat down. As soon as I came out, a boy came to me and said, may I hold my prasad, I have to wear shoes. He took me prasad and started wearing shoes himself and then went to wash hands. But then he didn’t come back. I kept waiting for him like crazy. After a long time I opened that envelope and saw 200 rupees, four pedas and a paper written on it (Mayya don’t be angry with your Lala) This is the envelope! Without price, you can not get the commodity in the market, so how can you get “green” without the price, that is priceless!! * Taking instead of giving is a disease.

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