श्री राधा, भाग :- 2

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“जय हो जगत्पावन प्रेम कि जय हो उस अनिर्वचनीय प्रेम कि

उस प्रेम कि जय हो, जिसे पाकर कुछ पानें कि कामना नही रह जाती ।

उस ‘चाह” कि जय हो जिस “प्रेम चाह” से कामनारूपी पिशाचिनी का पूर्ण रूप से नाश हो जाता है ।

और अंत में हे यादवकुल के वंश धर वज्रनाभ तुम जैसे प्रेमी कि भी जय हो जय हो ।

महर्षि शाण्डिल्य से “श्रीराधाचरित्र” सुननें कि इच्छा प्रकट करनें पर महर्षि के आनन्द का ठिकाना नही रहा वो उस प्रेम सिन्धु में डूबनें और उबरनें लगे थे ।

हे द्वारकेश के प्रपौत्र मैं क्या कह पाउँगा श्रीराधा चरित्र को ?

जिन श्रीराधा का नाम लेते हुए श्रीशुकदेव जैसे परमहंस को समाधि लग जाती है वो कुछ बोल नही पाते हैं ।

हाँ प्रेम अनुभूति का विषय है वज्रनाभ ये वाणी का विषय नही है कुछ देर मौन होकर फिर हँसते हुए बोलना प्रारम्भ करते हैं महर्षि शाण्डिल्य हा हा हा हागूँगे के स्वाद कि तरह है ये प्रेम गूँगे को गुड़ खिलाओ और पूछो – बता कैसा है ?

क्या वो कुछ बोल कर बता पायेगा ? हाँ वो नाच कर बता सकता है वो उछल कूद करके पर बोले क्या ?

ऐसे ही वत्स तुमनें ये मुझ से क्या जानना चाहा

तुम कहो तो मैं वेद का सम्पूर्ण वर्णन करके तुम्हे बता सकता हूँ तुम कहो तो पुराण इतिहास या वेदान्त गूढ़ प्रतिपादित तत्व का वर्णन करना मुझ शाण्डिल्य को असक्य नही हैं पर प्रेम पर मैं क्या बोलूँ ?

प्रेम कि परिभाषा क्या है ? परिभाषा तो अनन्त हैं प्रेम कि अनेक कही गयी हैं अनेकानेक कवियों नें इस पर कुछ न कुछ लिखा है कहा है पर सब अधूरा है क्यों कि प्रेम कि पूरी परिभाषा आज तक कोई लिख न सका ।

पूरी परिभाषा मिल ही नही सकती क्यों कि प्रेम, वाणी का विषय ही नही है ये शब्दातीत है इतना कहकर महर्षि शाण्डिल्य फिर मौन हो गए थे ।

हे महर्षियों में श्रेष्ठ शाण्डिल्य आपनें “प्रेम” के लिए जो कुछ कहा वो तो ब्रह्म के लिए कहा जाता है तो क्या प्रेम और ब्रह्म एक ही हैं ? अंतर नही है दोनों में ?

मैं अधिकारी हूँ कि नही हे महर्षि मैं प्रेम तत्व को नही जानता आप कि कृपा हो तो मैं जानना चाहता हूँयानि अनुभव करना चाहता हूँ आप कृपा करें ।

हाथ जोड़कर श्रीकृष्ण के प्रपौत्र वज्रनाभ नें महर्षि शाण्डिल्य से कहा ।

हाँ, ब्रह्म और प्रेम में कोई अंतर नही है फिर कुछ देर कालिन्दी यमुना को देखते हुए मौन हो गए थे महर्षि ।

नही नही ब्रह्म से भी बड़ा है प्रेम मुस्कुराते हुए फिर बोले महर्षि शाण्डिल्य ।

तभी तो वह ब्रह्म अवतार लेकर आता है केवल प्रेम के लिए ।

प्रेम” उस ब्रह्म को भी नचानें कि हिम्मत रखता है क्या नही नचाया ? क्या इसी बृज भूमि में गोपियों नें उन अहीर कि कन्याओं नें माखन खिलानें के बहानें से उस ब्रह्म को अपनी बाहों में भर कर उस सुख को लूटा है जिस सुख कि कल्पना भी ब्रह्मा रूद्र इत्यादि नही कर सकते ।

उन गोपियों के आगे वो ब्रह्म नाचता है आहा ये है प्रेम देवता का प्रभाव नेत्रों से झर झर अश्रु बहनें लग जाते हैं महर्षि के ये सब कहते हुए ।

कृष्ण कौन हैं ? शान्त भाव से पूछा था वज्रनाभ नें ये प्रश्न ।

चन्द्र हैं कृष्ण महर्षि आनन्द में डूबे हुए हैं ।

कहाँ के चन्द्र ? वज्रनाभ नें फिर पूछा ।

श्रीराधा रानी के हृदय में जो प्रेम का सागर उमड़ता रहता है उस प्रेम सागर में से प्रकटा हुआ चन्द्र है – ये कृष्ण ।

महर्षि नें उत्तर दिया ।

श्रीराधा रानी क्या हैं फिर ? वज्रनाभ नें फिर पूछा ।

वो भी चन्द्र हैं , पूर्ण चन्द्र महर्षि का उत्तर ।

कहाँ कि चन्द्र ? वज्रनाभ आनन्दित हैं , पूछते हुए ।

वत्स वज्रनाभ श्रीकृष्ण के हृदय समुद्र में जो संयोग वियोग कि लहरें चलती और उतरती रहती हैं उसी समुद्र में से प्रकटा चन्द्र है ये श्रीराधा ।

तो फिर ये दोनों श्रीराधा कृष्ण कौन हैं ?

दोनों चकोर हैं और दोनों ही चन्द्रमा हैं कौन क्या है कुछ नही कहा जा सकता इसे इस तरह से माना जाए राधा ही कृष्ण है और कृष्ण ही राधा है क्या वज्रनाभ प्रेम कि उस उच्चावस्था में अद्वैत नही घटता ? वहाँ कौन पुरुष और कौन स्त्री ?

उसी प्रेम कि उच्च भूमि में विराजमान हैं ये दोनों अनादि काल से इसलिये राधा कृष्ण दोनों एक ही हैं ये दो लगते हैं पर हैं नही ?

हे वज्रनाभ जो इस प्रेम रहस्य को समझ जाता है वह योगियों को भी दुर्लभ “प्रेमाभक्ति” को प्राप्त करता है ।

इतना कहकर भावसमाधि में डूब गए थे महर्षि शांडिल्य ।

हे राधे जय राधे जय श्री कृष्ण जय राधे

“ये आवाज काफी देर से आरही है देखो तो कौन हैं ?

विशाखा सखी नें ललिता सखी से कहा ।

कहो ना ज्यादा शोर न मचाएं वैसे भी हमारे “प्यारे” आज उदास हैं उनका कहीं मन भी नही लग रहा ।

पर ऐसा क्या हुआ ? ललिता सखी नें विशाखा सखी से पूछा ।

प्यारे अपनी प्राण “श्रीजी” को चन्द्रमा दिखा रहे थे और दिखाते हुये बोले “तिहारो मुख तो चन्द्रमा कि तरह है मेरी प्यारी

बस रूठ गयीं हमारी राधा प्यारी विशाखा सखी नें कहा ।



Hail to the universal love, hail to the indescribable love

Victory to that love, after getting which there is no desire to get anything.

Hail to that “desire” by which the “desire of love” completely destroys the vampire of desire.

And in the end, O descendant of Yadav clan, Vajranabh, victory be to a lover like you.

Expressing his desire to listen to “Shriradha Charitra” from Maharishi Shandilya, Maharishi’s joy knew no bounds, he started drowning and recovering in that love-indus.

O great-grandson of Dwarkesh, what would I be able to say about Shriradha’s character?

Those Paramhans like Shri Shukdev who get samadhi by taking the name of Shriradha, they are unable to speak anything.

Yes love is a matter of feeling Vajranabh it is not a matter of speech Maharishi Shandilya after being silent for some time then starts laughing ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ge gurgae ki love feed jaggery to a dumb person and ask – tell me how is it?

Will he be able to say something? Yes, he can tell by dancing, he jumps and jumps, but what did he say?

Just like that what did you want to know from me

If you say, I can tell you by describing the Vedas completely, if you say, I am not unable to describe the Purana history or Vedanta’s esoteric propounded elements, but what should I say about love?

What is the definition of love? The definition of love is eternal, many have been said, many poets have written something or the other on it, but everything is incomplete because no one has been able to write the complete definition of love till date.

The complete definition cannot be found because love is not a matter of speech, it is beyond words, saying this, Maharishi Shandilya again became silent.

Oh Shandilya, the best of sages, whatever you said for “love” is said for Brahma, so are love and Brahma the same? Is there no difference between the two?

Am I entitled or not, O Maharishi, I do not know the essence of love, if you have grace, I want to know, that is, I want to experience, please bless me.

Vajranabh, the great-grandson of Shri Krishna with folded hands said to Maharishi Shandilya.

Yes, there is no difference between Brahma and love, then Maharishi became silent for some time looking at Kalindi Yamuna.

No, no, love is greater than Brahma, then Maharishi Shandilya said smilingly.

That’s why he comes with Brahma avatar only for love.

Love has the courage to make even that Brahma dance, didn’t he make it dance? Have the Gopis in this Brij Bhoomi, on the pretext of feeding butter to those Ahir girls, filled that Brahma in their arms and robbed them of the happiness that Brahma Rudra etc. cannot even imagine?

That Brahma dances in front of those Gopis Oh, this is the effect of the God of love Tears start flowing from the eyes while saying all this of Maharishi.

Who is Krishna? Vajranabh had asked this question in a calm manner.

Krishna is the moon, Maharishi is immersed in joy.

Where’s the moon? Vajranabh asked again.

The ocean of love that keeps rising in the heart of Shriradha Rani is the moon that has emerged from that ocean of love – this Krishna.

Maharishi replied.

What is Shriradha Rani then? Vajranabh asked again.

They are also moon, Purna Chandra Maharishi’s answer.

Where is the moon? Vajranabh rejoices, asking.

Vats Vajranabh Shri Radha is the moon manifested from the same ocean in which the waves of coincidence and separation keep moving and descending in the heart of Shri Krishna.

Then who are these two Shriradha Krishna?

Both are squares and both are moons, who is what, nothing can be said, it can be considered in this way that Radha is Krishna and Krishna is Radha, doesn’t Advait happen in that exalted state of Vajranabha love? Who is male and who is female there?

These two are sitting in the high land of the same love since time immemorial, that’s why both Radha and Krishna are the same, they seem to be two but they are not?

One who understands this secret of love, O Vajranabha, attains “prema-bhakti”, rare even for yogis.

By saying this, Maharishi Shandilya had drowned in Bhavasamadhi.

O Radhe Jai Radhe Jai Shri Krishna Jai ​​Radhe

′′ This voice has been coming for a long time, look who is it?

Vishakha Sakhi said to Lalita Sakhi.

Don’t say don’t make too much noise anyway our “beloved” are sad today, they don’t feel like anywhere.

But what happened? Lalita Sakhi asked Visakha Sakhi.

Pyare was showing the moon to his soul “Shriji” and while showing it said “Tiharo Mukh is like the moon my dear

Our beloved Vishakha Sakhi just got angry.

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