(अलौकिक निकुंज लीला श्री जी की दया कृपा से,सभी आनद लीजिए और चिंतन कीजिये हम सब सहचरी भी madhvi कुंज में श्यामा श्याम के संग इस लीला का आनंद ले रहे हैं तो आइए चले)
एक दिन दोपहर में प्रिया प्रियतम निकुंज में बिराजमान थे। श्री ललिता जी ने सुंदर रसीले फलो का रस पिलाया। श्रीस्वामिनी जी के नयन अधर पर सहज प्रसन्ता की आभा जलक रही थी।
तभी विशाखा जी ने श्रीस्वामिनी जी से विनती की! हे स्वामीनीजी! श्याम सुंदर आज आपकी मधुर बीणा बादन सुनना चाहते है। वे बोल नहीं पा रहे, पर में उनकी तरफ से आपसे निवेदन करती हुं।
श्रीस्वामिनी जी बोली! ये भी कोई कहने की बात है, मेरा तो सारा जीवन ही प्रियतम के सुख और आनंद के लिए है। और श्रीस्वामिनी जी ने विनती स्विकार कर ली।
संध्या को यमुना किनारे “माध्वी कुंज” में प्रिया प्रियतम आये और मखमली बिछावन पर बिराजमान हुए हैं।
श्रीस्वामिनी जी की “रुद्रावल्लकी” नामक बीणा है, पास में सितार, सारंगी, मंजीरा, और अलग अलग वाद्य रखे हैं।
श्रीस्वामिनी जी ने बीणा बादन से पूर्व बीणा को पुष्प अर्पण किये और बिणा से मन ही मन प्रार्थना की, हे बीणा! आज मेरा साथ भली प्रकार से निभाना, और बीणा के तारो पर सातो स्वर सारे राग स्वतः ही अवतरित होने लगे ।
श्रीस्वामिनी जी बीणा, विशाखा जी और चित्रा जी सितार, तुंगविद्या जी मंजीरे और सभी सखियों ने अपने अपने बाद्य यंत्र लिए।
जैसे ही श्रीस्वामिनी जी ने बिणा के तारो पर अपनी उंगली का स्पर्श किया, कि तुरंत ही स्वर जंकृत हो उठे और बीणा की झंकार सारे निकुंज में फैल गयी।
बीणा की झंकार सुनते ही मोर, मोरनी, हिरन, हिरनी, कोयल, चातक, हर कोई “माधवी कुंज ” की तरफ आने लगे। कौन इस अवसर से वंचित रहना चाहेगा !!!
जैसे ही श्रीस्वामिनी जी ने अपना मनपसंद मल्हार राग और धनश्री राग बीणा पर बजाया, सारा निकुंज एक अलग ही आनंद से पुलकायमान हो गया, हर कोई नृत्य करने लगे यहां तक कि तितलियाँ भी अनुपम मधुर नृत्य करने लगी।
समग्र निकुंज मधुरमय बीणा के झंकार से महा आनंदित हो गया। कोयल अपनी कूक भूल गयी, मयूर, सुक, सारिका, अपना अस्त्तिव भूल गए।
श्यामसुंदर का रोम रोम महा आनंद घन से भर गया। प्रियतम जय घोस करने लगे और श्री राधे श्री राधे कहते हुए नाचने लगे।
सारी सखिया, मंजरियाँ बलिहार जा रही है श्रीस्वामिनी जी की बीणा वादन पर।
श्यामसुंदर का रोम रोम पुलकित हो उठा महाघन आनंद प्राप्त हुआ। सखियों को भी बीणा वादन सुन कर महा घन आनंद की प्राप्ति होने लगी।
यहां तक कि श्रीयमुना जी की धारा भी रुक गयी, सारे पेड़ पौधे लताये हर कोई भाव भिभोर हो उठे।
अब जैसे ही श्रीस्वामिनी जी ने मधुर स्वर में अलाप शुरू किया, सबके नयन बरसने लगे। श्यामसुन्दर ने सोचा मैं भी बंसी बादन करता हुं। और जैसे ही बंसी को अधरों से लगाया बंसी अधरों से अलग अलग हो गई।
महा कौतुक होने लगा, क्योंकि आज तो बंसी को प्रियतम के अधर भी नहीं लुभा पा रहे थे। बंसी भी बीणा के मधुर धुन सुनकर पुलकित हो उठी।
आज तो कौतुक होने लगा, क्युंकी बार बार प्रियतम बांसुरी को अधरों पर रखते और बंशी अधर से अलग हो जाये।श्यामसुंदर की बंसी भी , जो सबको महा आनंद प्रदान करती है, मोहित करती है। आज वो ही बंसी भी स्वयं महाआंनद पान कर रही है , बीणा की मधुर धुन सुनकर।
तब श्याम सन्दर ने अपनी बंसी को श्रीस्वामिनी जी के चरणों में समर्पण करा दिया। आज बंशी का भी भाग्योदय हो गया।
सारे निकुंज में हर्ष और उल्लास भरा वातावरण हो गया। सारा निकुंज अलौकिक आनंद और अलौकिक सुख से भर गया।
जिस बंसी की मधुर धुन के सामने हर कोइ समर्पण करता है, आज उसी बंसी ने श्रीस्वामिनी जी के श्री चरणों में महा समर्पण कर दिया। कितना मधुरमय होगा, श्रीस्वामिनी जी का बीणा बादन……
आशा है कि आप सभी को इस लीला से अलौकिक आनंद की प्राप्ति हुई होगी ।