“श्री राधारमण जी”

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एक बार श्री गोपाल भट्ट गोस्वामी जी अपनी प्रचार यात्रा के समय जब गण्डकी नदी में स्नान कर रहे थे, उसी समय सूर्य को अर्ध्य देते हुए जब अंजुली में जल लिया तो तो एक अद्भुत शलिग्राम शिला श्री गोपाल भट्ट गोस्वामी जी की अंजुली में आ गई। जब दुबारा अंजलि में जल लिया तो एक और शालिग्राम शिला उनकी अंजुली में आ गयी। इस तरह एक-एक कर के बारह शालिग्राम की शिलायें आ गयीं।

जिन्हें लेकर श्री गोस्वामी वृन्दावन धाम आ पहुँचे और यमुना तट पर केशीघाट के निकट भजन कुटी बनाकर श्रद्धा पूर्वक शिलाओं का पूजन- अर्चन करने लगे।

एक बार वृंदावन यात्रा करते हुए एक सेठ जी ने वृंदावनस्थ समस्त श्री विग्रहों के लिए अनेक प्रकार के बहुमूल्य वस्त्र आभूषण आदि भेट किये। श्री गोपाल भट्ट जी को भी उसने वस्त्र आभूषण दिए। परन्तु श्री शालिग्राम जी को कैसे वे धारण कराते

श्री गोस्वामी के हृदय में भाव प्रकट हुआ कि अगर मेरे आराध्य के भी अन्य श्रीविग्रहों की भांति हस्त-पद होते तो मैं भी इनको विविध प्रकार से सजाता एवं विभिन्न प्रकार की पोशाक धारण कराता, और इन्हें झूले पर झूलता।

यह विचार करते-करते श्री गोस्वामी जी को सारी रात नींद नहीं आई। प्रात: काल जब वह उठे तो उनके आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा, जब उन्होंने देखा कि श्री शालिग्राम जी त्रिभंग ललित द्विभुज मुरलीधर श्याम रूप में विराजमान हैं।

श्री गोस्वामी ने भावविभोर होकर वस्त्रालंकार विभूषित कर अपने आराध्य का अनूठा श्रृंगार किया। श्री रूप सनातन आदि गुरुजनों को बुलाया और राधारमणजी का प्राकटय महोत्सव श्रद्धापूर्वक आयोजित किया गया।

यह विग्रह आज भी श्री राधारमण मंदिर में गोस्वामी समाज द्वारा सेवित है। और इन्ही के साथ गोपाल भट्ट जी के द्वारा सेवित अन्य शालिग्राम शिलाएं भी मन्दिर में स्थापित हैं । राधारमण जी का श्री विग्रह वैसे तो सिर्फ द्वादश अंगुल का है, तब भी इनके दर्शन बड़े ही मनोहारी हैं। श्रीराधारमण विग्रह का श्री मुखारविन्द “गोविन्द देव जी” के समान, वक्षस्थल “श्री गोपीनाथ” के समान, तथा चरणकमल “मदनमोहन जी” के समान हैं। इनके दर्शनों से तीनों विग्रहों के दर्शन का फल एक साथ प्राप्त होता है। श्री राधा रमण जी का मन्दिर श्री गौड़ीय वैष्णव सम्प्रदाय के सुप्रसिद्ध मन्दिरों में से एक है।

श्री राधा रमण जी उन वास्तविक विग्रहों में से एक हैं, जो अब भी वृन्दावन में ही स्थापित हैं। अन्य विग्रह जयपुर चले गये थे, पर श्री राधा रमणजी ने कभी वृन्दावन को नहीं छोड़ा। मन्दिर के दक्षिण पार्श्व में श्री राधा रमण जी का प्राकट्य स्थल तथा गोपाल भट्ट गोस्वामीजी का समाधि मन्दिर है। "जय जय श्री राधे"


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