सब भगवान का दिया हुआ हैं।

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तुम्हारे पास जो धन संपत्ति है सुख-सुविधा के साधन है सब भगवान के दिए हुए हैं।

भगवान ने उन्हें इसलिए तुम्हें दिया है तुम उनके द्वारा अभाव में पड़े हुए और दुख भोगते हुए और असुविधा में फंसे हुए प्राणियों की सेवा करो।

अपने सुख सुविधा और धन संपत्ति का अभाव और दुख ग्रस्त प्राणियों की सेवा में लगाने का सदुपयोग करो,यही तुम्हारा धर्म है।

इसी का नाम यज्ञ है। जो यज्ञ से बचा हुआ खाता है अर्थात सबको यथा योग्य वितरण करने के पश्चात थोड़े का अपने लिए उपयोग करता है वह अमृतभोजी है और जो सब कुछ अपना मान कर उसे अपने ही उपयोग में लाता है वह पाप खाता है।*

*किसी दूसरे प्राणी की सेवा करके कभी अभिमान न करो। यही समझो,मैंने उसका हक उसे दिया है।

भगवान के कृतज्ञ बनो जो उनकी कृपा से तुम्हारे हृदय में दूसरों की सेवा करने की सद्बुद्धि उत्पन्न हुई और तुम्हें सेवा का अवसर मिला।

किसी की सेवा करके उस पर न तो एहसान करो न उससे बदला चाहो न उसका भगवान से ही कोई अलौकिक या पारलौकिक फल चाहो।

ऐसा करोगे तो तुम पर भगवान की कृपा सुधा बरस पड़ेगी जो तुम्हें परम कल्याण का भागी बना देगी।

हम बदलेंगे,युग बदलेगा।



The wealth and property that you have, the means of comfort and convenience, are all given by God.

God has given them to you so that you may serve the creatures who are in want through them and who are in misery and inconvenience.

Make good use of your happiness and wealth, and use it in the service of the suffering beings, this is your religion.

Its name is Yagya. The one who eats the leftovers from the sacrifice, that is, after distributing it to everyone, uses some for himself, he is a nectar-bhoji and one who takes everything as his own and uses it for his own use, he eats sin.

*Never be proud by serving any other creature. Understand this, I have given her the right.

Be grateful to the Lord who by His grace aroused goodwill in your heart to serve others and you got the opportunity to serve.

Do not do any favor to anyone by serving him, nor do you want revenge from him, nor do you want any supernatural or transcendental fruit from God.

If you do this, then the grace of God will shower on you, which will make you a part of ultimate welfare.

We will change, times will change.

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