आजु सुफल तपु तीरथ त्यागू।

आजु सुफल तपु तीरथ त्यागू।
आजु सुफल जप जोग बिरागू।।

सफल सकल सुभ साधन साजू।
राम तुम्हहि अवलोकत आजू।।

लाभ अवधि सुख अवधि न दूजी।
तुम्हरे दरस आस सब पूजी।।

अब करि कृपा देहु बर एहू।
निज पद सरसिज सहज सनेहू।।

करम बचन मन छाड़ि छलु जब लगि जनु न तुम्हार।
तब लगि सुखु सपनेहुँ नहीं किएँ कोटि उपचार।।


भरद्वाज जी कहते हैं- हे राम ! आपका दर्शन करते ही आज मेरा तप, तीर्थसेवन और त्याग सफल हो गया। आज मेरा जप, योग और वैराग्य सफल हो गया और आज मेरे सम्पूर्ण शुभ साधनों का समुदाय भी सफल हो गया।

लाभ की सीमा और सुख की सीमा (प्रभु के दर्शन को छोड़कर) दूसरी कुछ भी नहीं है। आपके दर्शन से मेरी सब आशाएँ पूर्ण हो गयीं।

अब कृपा करके यह वरदान दीजिये कि आपके चरणकमलों में मेरा स्वभाविक प्रेम हो।

जब तक कर्म, वचन और मन से छल छोड़कर मनुष्य आपका दास नहीं हो जाता, तब तक करोड़ों उपाय करने से भी, स्वप्न में भी वह सुख नही पाता।भारद्वाज जी भगवान राम से कहते हे राम तप ध्यान योग से आपके दर्शन हुए हैं यह सब ध्यान साधना से सफल हो पाया है आपके दर्शन का फल क्या है तब भगवान राम कहते हैं मेरे दर्शन का फल है भरत दर्शन है। श्री रामाय नमः ।।

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