गुरू ओर सतगुरु में रात दिन का अन्तर है।

हरि ॐ तत् सत् जय सच्चिदानंद

गुरू ओर सतगुरु में रात दिन का अन्तर है।
गुरू
वो होता है जो हमारे जीवन में सत्कर्म करवा कर हमारे भीतर इंसानियत भर देते हैं।
वो सत्कर्मों के नींव की स्थापना करके स्वर्ग की प्राप्ति का मार्ग बताते हैं।
लेकिन
सतगुरु वो होता है जो तुम्हें संसार के शुभ कर्म ओर अशुभ कर्म इनके बंधनों से मुक्त करके, जन्म मरण से मुक्त कर देते हैं।वो देह भाव से छुड़ाकर तुम्हें सत्य का बोध कराते हैं ।सत्य के मार्ग पर चलना सिखाते हैं।
सतगुरु वो जिसे सत्य की पहचान हो, सतगुरु इच्छा, वासना कामना से रहित हो
जो सदा अपने स्व स्वरूप में स्थित हो
जो नाम रूप देह आकार आकृति से छुड़ाकर,तुम्हें स्वतंत्र परमपद की प्राप्ति करा दे
जब तुम्हें ये संसार उस परमात्मा का विराट स्वरूप लगने लगे
तब समझ लेना कि
ये उस सत्य सतगुरु का ही विराट रूप है।
हम इस संसार के कण कण में, ज़र्रे ज़र्रे में,उस सतगुरु का ही दिव्य रूप देखते हैं।
परमात्मा सत्य, चेतन, आनंद स्वरूप को ही सच्चिदानंद स्वरुप,या सतगुरु,को ही कहा गया है।
उनके इस स्वरूप को हम केवल दिव्य ज्ञान की दृष्टि से देख सकते हैं।
सतगुरु की कृपा से ही हमें वो ज्ञान की दिव्य दृष्टि प्राप्त होती है।
तभी हमें धरती के कण-कण में उसकी महिमा दिखाई देती है।
वो इतना महान, इतना महान
कि
उससे महान कोई नहीं
उसी की उपासना का ही मनुष्य का कर्तव्य बनता है।
किसी ओर का नही
वहीं सतगुरु इस संसार रूपी भवसागर में मनुष्य का अवतार लेकर आए हैं।
ओर मनुष्य की भांति साधारण लीला करके खड़े हैं।
पर हम उन्हें पहचान नहीं पाते
अज्ञान ही माया का परदा हैं। जब तक अज्ञान रूपी माया का परदा हैं
तब तक सतगुरु के दिव्य विराट स्वरूप का बोध नहीं हो सकता न ही उनकी अनुभूति कर सकतें



Hari Om Tat Sat Jai Sachchidanand

There is a difference of night and day between Guru and Satguru. guru He is the one who fills us with humanity by doing good deeds in our lives. He shows the path to attain heaven by establishing the foundation of good deeds. But Satguru is the one who frees you from the bondage of good deeds and inauspicious deeds of the world, frees you from birth and death. He frees you from the feeling of the body and makes you realize the truth. He teaches you to walk on the path of truth. Satguru is one who knows the truth, Satguru is one who is free from desires and wishes. who always remains in his true form The one who frees you from name, form, body, shape and makes you attain the independent supreme state. When this world starts appearing to you as the vast form of God. then understand that This is the great form of that true Satguru. We see the divine form of that Satguru in every particle of this world. God’s form of truth, consciousness and bliss has been called Sachchidanand form, or Satguru. We can see this form of his only from the point of view of divine knowledge. It is only by the grace of Satguru that we attain the divine vision of knowledge. Only then can we see His glory in every particle of the earth. he’s so great, so great That no one is greater than him It is man’s duty to worship Him only. not from anyone else At the same time, Satguru has brought human incarnation in this world like ocean of existence. And like humans, they are standing doing ordinary activities. but we don’t recognize them Ignorance is the veil of illusion. As long as there is a veil of illusion in the form of ignorance Till then, the divine and vast form of the Satguru cannot be understood nor can we experience him.

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