जिसने राग-द्वेष कामादिक,
जीते सब जग जान लिया
सब जीवों को मोक्ष मार्ग का,
निस्पृह हो उपदेश दिया,
बुद्ध, वीर जिन, हरि,
हर ब्रह्मा या उसको स्वाधीन कहो
भक्ति-भाव से प्रेरित हो,
यह चित्त उसी में लीन रहो ॥
विषयों की आशा नहीं जिनके,
साम्य भाव धन रखते हैं
निज-पर के हित साधन में,
जो निशदिन तत्पर रहते हैं,
स्वार्थ त्याग की कठिन तपस्या,
बिना खेद जो करते हैं
ऐसे ज्ञानी साधु जगत के,
दुःख-समूह को हरते हैं ॥
रहे सदा सत्संग उन्हीं का,
ध्यान उन्हीं का नित्य रहे
उन ही जैसी चर्या में यह,
चित्त सदा अनुरक्त रहे,
नहीं सताऊँ किसी जीव को,
झूठ कभी नहीं कहा करूँ
पर-धन-वनिता पर न लुभाऊँ,
संतोषामृत पिया करूँ॥
अहंकार का भाव न रखूँ,
नहीं किसी पर खेद करूँ
देख दूसरों की बढ़ती को,
कभी न ईर्ष्या-भाव धरूँ,
रहे भावना ऐसी मेरी,
सरल-सत्य-व्यवहार करूँ
बने जहाँ तक इस जीवन में,
औरों का उपकार करूँ॥
मैत्रीभाव जगत में,
मेरा सब जीवों से नित्य रहे
दीन-दु:खी जीवों पर मेरे,
उरसे करुणा स्रोत बहे,
दुर्जन-क्रूर-कुमार्ग रतों पर,
क्षोभ नहीं मुझको आवे
साम्यभाव रखूँ मैं उन पर,
ऐसी परिणति हो जावे ॥
गुणीजनों को देख हृदय में,
मेरे प्रेम उमड़ आवे
बने जहाँ तक उनकी सेवा,
करके यह मन सुख पावे,
होऊँ नहीं कृतघ्न कभी मैं,
द्रोह न मेरे उर आवे
गुण-ग्रहण का भाव रहे नित,
दृष्टि न दोषों पर जावे ॥
कोई बुरा कहो या अच्छा,
लक्ष्मी आवे या जावे
लाखों वर्षों तक जीऊँ,
या मृत्यु आज ही आ जावे
अथवा कोई कैसा ही,
भय या लालच देने आवे।
तो भी न्याय मार्ग से मेरे,
कभी न पद डिगने पावे ॥
होकर सुख में मग्न न फूले,
दुःख में कभी न घबरावे
पर्वत नदी-श्मशान,
भयानक-अटवी से नहिं भय खावे,
रहे अडोल-अकंप निरंतर,
यह मन, दृढ़तर बन जावे
इष्टवियोग अनिष्टयोग में,
सहनशीलता दिखलावे॥
सुखी रहे सब जीव जगत के,
कोई कभी न घबरावे
बैर-पाप-अभिमान छोड़ जग,
नित्य नए मंगल गावे,
घर-घर चर्चा रहे धर्म की,
दुष्कृत दुष्कर हो जावे
ज्ञान-चरित उन्नत कर अपना,
मनुज-जन्म फल सब पावे ॥
ईति-भीति व्यापे नहीं जगमें,
वृष्टि समय पर हुआ करे
धर्मनिष्ठ होकर राजा भी,
न्याय प्रजा का किया करे,
रोग-मरी दुर्भिक्ष न फैले,
प्रजा शांति से जिया करे
परम अहिंसा धर्म जगत में,
फैल सर्वहित किया करे ॥
फैले प्रेम परस्पर जग में,
मोह दूर पर रहा करे
अप्रिय-कटुक-कठोर शब्द,
नहिं कोई मुख से कहा करे,
बनकर सब युगवीर हृदय से,
देशोन्नति-रत रहा करें
वस्तु-स्वरूप विचार खुशी से,
सब दु:ख संकट सहा करें ॥
The one who has love and hate,
know all the worlds live
of the path of salvation to all living beings,
unselfishly preached,
Buddha, Veer Jin, Hari,
every brahma or call him independent
be inspired by devotion,
Be absorbed in this mind.
Subjects not expected,
Equilibrium keeps wealth
In the interests of personal interests,
Those who are always ready,
The hard penance of self-sacrifice,
do without regret
Such wise sages of the world,
Destroy the sorrow-group
Always be his satsang,
their attention always
In the same manner as it,
The mind is always attached,
I will not hurt any living being,
never tell a lie
But don’t be tempted by wealth.
Let’s drink Santoshamrit.
Don’t have a sense of arrogance
no sorry no one
Watching others grow
never be jealous
my feeling is like this,
simple truth
Be as far as in this life,
thank others
In the world of friendship,
May I be eternal to all living beings
Me on the poor and sad creatures,
May the source of compassion flow from him,
On the wicked-cruel-wrathful nights,
don’t bother me
Let me be on them,
Let this be the result.
Seeing the virtuous in the heart,
let my love rise
As far as his service,
By doing this the mind gets happiness,
I am never ungrateful,
don’t hate me
Let there be a sense of merit-acceptance,
Do not go to the defects of sight.
say bad or good,
Lakshmi may come or go
live for millions of years
or death will come today
or any other way,
Come to give fear or greed.
Even then by the way of justice,
Never lose your position.
Don’t get engrossed in happiness
never be afraid of sorrow
mountain river-crematorium,
Don’t be afraid of the terrible-atvi,
be constant,
Let this mind become stronger
In Ishtaviyoga, in bad luck,
show tolerance
May all living beings be happy,
no one ever panic
Abandoning envy-sin-pride, the world
Everyday new auspicious villages,
Religion was discussed from house to house,
become evil
By improving your character of knowledge,
Manuj – everyone gets the fruits of birth.
Don’t be around in the world,
rain on time
Being a pious king,
Justice should be done for the people.
Do not spread disease and famine,
people live in peace
In the world of supreme non-violence religion,
Spread it all.
Spread love in each other’s world,
stay away from love
Unpleasant harsh words
No one should say with the mouth,
By becoming an all yugvir heart,
keep on promotion
Objective thoughts happily,
Suffer all sorrow and trouble