कबीरा सोया क्या करे ? बैठा रहू अरु जाग
जिनके संग ते बिछलों वाही ते संग लाग
ज्यों तिल माही तेल है ज्यों चकमक में आग
तेरा साईं तुझ में, जाग सके तो जाग
माला फेरत जुग भया, मिटा न मन का फेर
कर का मनका छोड़ दे, मन का मनका फेर
माला तो कर में फिरे, जीभ फिरे मुख माही
मनवा तो चहुदिस फिरे, ये तो सुमिरत नाही
राम बुलावा भेजिया, दिया कबीरा रोये
जो सुख साधू संग में, सो बैकुंठ न होये
पारस में अरु संत में बडो अन्तरो जान
वो लोहा कंचन करे, ये कर दे आप समान
सुमिरन सूरत लगाये के मुख से कछु न बोल
बहार के पट बंद कर, अन्दर के पट खोल
श्वास श्वास पे नाम ले वृथा श्वास न खोये
न जाने यह श्वास का आवन होये न होये
जागो लोगों मत सुवो, न करो नींद से प्यार
जैसे सुपना रैन का, ऐसा ये संसार
कहे कबीर पुकार के दो बातें लिख दे
के साहब की बंदगी, भूखों को कुछ दे
कबीरा वा दिन याद कर पग ऊपर तल शीश
मृतुलोक में आये के बिसर गया जगदीश
चेत सवेरे बावरे फिर पाछे पछताए
तुझको जाना दूर है कहे कबीर जगाये
साईं उतना दीजिये जामें कुटुंब समाये
मैं भी भूखा ना रहू साधू ना भूखा जाए
कबीरा खडा बाज़ार में मांगे सबकी खैर
ना काहू से दोस्ती न काहू से बैर
कथा कीर्तन कलि विखे भवसागर की नाव
कहे कबीर भवतरन को, नाही और उपायों
कहना था सो कह दिया अब कछु कहा ना जाए
एक रहा दूजा गया दरिया लहर समाये
रचयिता – कबीर दास स्वरहरी ॐ शरण
What should Kabira do? keep sitting and awake
Whose company is with you?
As sesame is oil, as there is fire in the flint
Your sai in you, wake up if you can
Mala ferat jug bhaya, don’t erase the mind
Leave the bead of tax, change the bead of the mind
If the rosary turns around in tax, then the tongue spins in the mouth
If you want to go around, it is not good.
Sent Ram called, Diya Kabira cried
The happiness that is in the company of a sage, so don’t be back.
In Paras, there is a big difference in the saint’s soul.
Make that iron shine, do it like you
Do not speak anything from your mouth
closing the outer septum, opening the inner septum
Do not lose your breath by taking name on the breath
Don’t know if this breath is coming or not
Wake up people don’t listen, don’t fall in love with sleep
Like Supa Rain’s, this world like this
Tell Kabir to write two things after calling
K sir’s bandi, give something to the hungry
Remembering Kabira wa day, step up and down
Jagdish went away after coming to Mrityulok
Chet early morning again regrets
You have to go far, say Kabir wake up
Sai give as much as you can to your family
I too should not be hungry, don’t go hungry
Ask everyone’s well-being in Kabira Khada Bazaar
Neither friendship with Kahu nor hatred with Kahu
Katha Kirtan Kali Vikhe Bhavsagar’s boat
Say no to Kabir Bhavtaran, no more remedies
Had to say so said that now the tortoise should not be said
One remained and the river wave covered
Composer – Kabir Das Swarahari Om Sharan