कभी फुर्सत हो तो जगदम्बे, निर्धन के घर भी आ जाना |
जो रूखा सूखा दिया हमें, कभी उस का भोग लगा जाना ||
ना छत्र बना सका सोने का, ना चुनरी घर मेरे टारों जड़ी |
ना पेडे बर्फी मेवा है माँ, बस श्रद्धा है नैन बिछाए खड़े ||
इस श्रद्धा की रख लो लाज हे माँ, इस विनती को ना ठुकरा जाना |
जो रूखा सूखा दिया हमें, कभी उस का भोग लगा जाना ||
जिस घर के दिए मे तेल नहीं, वहां जोत जगाओं कैसे |
मेरा खुद ही बिशोना डरती माँ, तेरी चोंकी लगाऊं मै कैसे ||
जहाँ मै बैठा वही बैठ के माँ, बच्चों का दिल बहला जाना |
जो रूखा सूखा दिया हमें, कभी उस का भोग लगा जाना ||
तू भाग्य बनाने वाली है, माँ मै तकदीर का मारा हूँ |
हे दाती संभाल भिकारी को, आखिर तेरी आँख का तारा हूँ ||
मै दोषी तू निर्दोष है माँ, मेरे दोषों को तूं भुला जाना |
जो रूखा सूखा दिया हमें, कभी उस का भोग लगा जाना ||
If you have time, Jagdambe, come to the house of the poor.
Whoever gave us the dry dryness, sometimes it should be enjoyed.
Neither could the umbrella be made of gold, nor the chunari house was studded with stars.
Na pede barfi is nuts, mother is just reverence, standing on the floor.
Take care of this reverence, oh mother, don’t turn down this request.
Whoever gave us the dry dryness, sometimes it should be enjoyed.
How to wake up the holdings in the house where there is no oil in the lamp?
Bishona afraid of my own mother, how should I apply your chonki ||
Mother sit where I sat
Whoever gave us the dry dryness, sometimes it should be enjoyed.
You are the maker of fortune, mother, I am the slain of fate.
O beggar handle to the beggar, after all I am the apple of your eye.
I am guilty, you are innocent, mother, forget my faults.
Whoever gave us the dry dryness, sometimes it should be enjoyed.