मेरे मोहन तुम्हे अपनों को तडपाने की आदत है,
मगर अपनो को भी है जुल्म सह जाने की आदत है,
मेरे मोहन तुम्हे अपनों को तडपाने की आदत है,
चाहे सो बार ठुकराओ चाहे लो इमन्ताह मेरा,
जला दो शौक से प्यारे चाहे लो आशियाँ मेरा,
छमा पर जान दे देना ये परवानों की आदत है,
मेरे मोहन तुम्हे अपनों को तडपाने की आदत है,
बाँध कर प्रेम की डोरी से तुमको खीँच लाऊंगा,
तुम्हे आना पड़ेगा श्याम मैं जब भी बुलाऊंगा,
की मैं जब भी बुलाऊँगा की दामन से लिपट जाना,
ये दीवानों की आदत है मेरे मोहन तुम्हे अपनों को,
तडपाने की आदत है ……
My Mohan, you have a habit of tormenting your loved ones,
But you also have a habit of suffering oppression.
My Mohan, you have a habit of tormenting your loved ones,
Whether you reject it so many times, whether it is mine,
Burn your love with your hobby, whether you want my homes,
It is the habit of people to give their lives on Chhama.
My Mohan, you have a habit of tormenting your loved ones,
I will tie you and pull you with the string of love,
You have to come Shyam whenever I call,
that whenever I call that to cling to the arm,
This is the habit of lovers, my dear, to your loved ones.
There is a habit of torment……