एक बार की बात है तुलसीदास जी सत्संग कर रहे थे अचानक वे मौज में बोले
घट में है सूझत नहीं लानत ऐसी जिन्द
तुलसी या संसार को भयो मोतियाबिंद
अर्थात वो सर्वव्यापी भगवान और कहीं नहीं तेरे इसी घट (शरीर) में तो है पर तुझे दिखाई नहीं देता ऐसी जिन्दगी को लानत है। इस संसार को मोतियाबिंद हो गया है।
किसी शिष्य ने उत्सुकता से कहामहाराज जी ये मोतियाबिंद हो तो गया अब कटेगा कैसे तुलसी ने उत्तर दिया
सतगुरु पूरे वैध है अंजन है सतसंग
ग्यान सराई जब लगे तो कटे मोतियाबिंद
अर्थात वास्तविक सद्गुरु ही इसके वैद्य है और अंजन इसका सत्संग है..ये जब ग्यान रूपी सलाई से लगाया जाता है तो अग्यान रूपी मोतियाबिंद कट जाता है ं
कस्तूरी कुंडल बसे मृग ढूँढे वन मांहि
ऐसे घट घट राम है दुनिया देखे नांहि
इसका अर्थ बताना जरूरी नही पर कभी कभी कितना आश्चर्य होता है
मलहि कि छूटे मल के धोये , घ्रत पाव कोई वारि बिलोये
अर्थात गन्दगी से गन्दगी नहीं छूटती और पानी को बिलोने(छाछ की तरह ) से घी नहीं निकलता ये सच है कि माचिस में आग है पर उसको जलाना पङेगा। ये सच है कि दूध में घी है पर उसको निकालना पड़ेगा। ये सच है कि भगवान हमारे अंदर है .पर एक विशेष युक्ति जिसे हरिगुरू की अनन्य भक्ति और शरणागति कहते हैं, वो करके हमे उनको पाना होगा . जय गुरुदेव , जय जय श्री राधे
तुलसी इस संसार में, भाँति-भाँति के लोग। सबसे हँस-मिल बोलिए, नदी नाव संजोग॥ अर्थात : तुलसीदास जी कहते हैं, इस संसार में तरह-तरह के लोग रहते हैं. आप सबसे हँस कर बोलो और मिल-जुल कर रहो लेकिन आसक्ति घोर-संसार आसक्त लोगों से नहीं रखना है और ना किसी से कोई दुर्भावना रखना है , यहां तक कि राक्षसों से भी नहीं , तो जैसे नाव नदी से संयोग कर के पार लगती है वैसे ही आप भी इस भव सागर को पार कर लोगे। श्री राधे ।