देख दुखो का वेष धरे मैं नहीं डरूँगी तुमसे, नाथ!
जहाँ दुःख वहाँ देख तुम्हें मैं पकडूँगी जोरों के साथ॥
नाथ! छिपा लो तुम मुँह अपना, चाहे अति अँधियारे में।
मैं लूँगी पहचान तुम्हें इक कोनेमें, जग सारे में॥
रोग-शोक, धन-हानि, दुःख, अपमान घोर, अति दारुण क्लेश।
सबमें तुम, सब ही है तुममें, अथवा सब तुम्हरे ही वेश॥
तुम्हरे बिना नहीं कुछ भी जब, तब फिर मैं किस लिये डरूँ।
मृत्यु-साज सज यदि आओ, तो चरण पकड़ सानन्द मरूँ॥
दो दर्शन चाहे जैसा भी दुःख-वेष धारणकर, नाथ!
जहाँ दुःख वहाँ देख तुम्हें, मैं पकडूँगी जोरोंके साथ॥
Look, I will not be afraid of you wearing the guise of sorrow, Nath! Wherever there is sorrow, I will catch you with full force. God! Hide your face, even if it is very dark. I will recognize you in one corner, in the whole world. Disease-grief, wealth-loss, sorrow, humiliation, severe, very severe tribulation. You are all in you, all are in you, or all are disguised as you. Nothing without you when, then why should I be afraid. If you come, then hold your feet and die peacefully. No matter how misery and disguise, Nath! Seeing you where there is sorrow, I will catch you with full force.