चित्त की एकाग्रता के लिए ही नामस्मरण की आवश्यकता है… चित्त की एकाग्रता बहुत ऊँची अवस्था है…. चित्त चंचल होता है, उसे कहीं-न-कहीं स्थिर करना पड़ता है, इसलिए उसे नामस्मरण में व्यस्त रखना चाहिए… एकाग्रता के बिना नामस्मरण करना व्यर्थ है और नामस्मरण के बिना एकाग्रता हो नहीं पाती
नामस्मरण करते समय हजार तरह के विचार मन में आते हैं, इन विचारों को रोकने के लिये उपाय है उनका पीछा न करना…. यदि विचार मन में आ ही गए तो उनके विस्तार को प्रयत्न पूर्वक रोकना चाहिए अर्थात मनोराज न करना… विचार जैसे आएँगे वैसे चले भी जाएँगे, उधर ध्यान ही न दिया जाए
सतत् नाम स्मरण करते रहें
हे साँवरे…. प्रीत की चादरिया, ओढ़ के साँवरिया, गाऊँ भजन झुमके, दीवानी हूँ मैं श्याम की
अपने अपने गुरुदेव की जय
श्री कृष्णाय समर्पणं
One Response
It’s nearly impossible to find educated people in this particular subject, however, you seem like you know what you’re talking about! Thanks