भगवान से कभी संसार मत मांगना क्योकि संसार मिलना कृपा नही है– बल्कि भगवान तो खुद भागवत मे कहते है की मै जिसपर कृपा करता हूं उसका धन धीरे धीरे छीन लेता हूं–
“यस्याहं अनुगृहामि हरिष्ये तद्धनं शनै:– यानि संसार छीन जाए तो ये भगवान की कृपा है– ओर लोग संसार छीन जाने पर भगवान को दोष देते है ओर संसार मिलने पर कृपा समझते है–
मनुष्य को संसार मिलता है तो मनुष्य का संसार मे आकर्षण हो जाता है ओर फिर मनुष्य भगवान को भुल जाता है —
जैसे सुग्रीव को जब राज्य मिला तो सुग्रीव राम को भुल गया था– धन का नशा,प्रभुता का नशा,सौंदर्य का नशा– यानि जितना संसार मिलेगा उतना ही संसार मे मनुष्य फंसता जाएगा–
” नहि कोऊ अस जनमा जग माहीं ,प्रभुता पाई जाहि मद नाही”–
किंतु भगवान अपने भक्तो के कल्याण के लिए भक्तो का संसार छीन लेते है– ताकि भक्तो का मन पुरी तरह बस भगवान मे लगा रहे–
जब नारद जी पुर्वजन्म मे दासी के पुत्र थे तो जब उनकी माता ने शरीर त्यागा था तो नारद जी ने ईसे भगवान की कृपा ही समझा था–
भगवान भक्तो पर अनुग्रह करने के लिए भक्तो का संसार छीन लेते है ताकि भक्तो का मन संसार मे ना उलझ पाए–
जैसे सर्दियो मे अगर बच्चा कहीं से आईसक्रीम ले आऐ तो मां उस बच्चे के कल्याण के लिए वो आईसक्रीम छीन लेती है उसी प्रकार भगवान भी भक्तो के कल्याण के लिए संसार छीन लेते है —
वैसे एक जिज्ञासा यहां उठती है की ध्रुव को भी तो राज्य मिला था तो क्या ये कृपा नही है???–
देखिये सबसे बडी बात भगवान के स्मरण करने की है– ध्रुव तो बचपन मे ही मायातीत होकर भगवान को प्राप्त कर चुके थे–
अगर प्रारब्ध अनुसार संसार मिलने पर भी भक्त का मन भजन मे ही पुर्ण रुप से लगा रहे तो ये कृपा है लेकिन अगर संसार मिलने पर मन संसार मे फंस जाए तो ये कृपा नही है —
तभी तो गीता मे भगवान ने कहा की जो शुभ वस्तुओ यानि जो संसार पाकर हर्षित नही होता ओर संसार छीन जाने पर दुखी नही होता वही सच्चा भक्त है —
यानि हर स्थिति मे पुर्ण रुपेण कृष्ण मे ही मन लगाकर रखना है– वैसे तो भगवान के अनुग्रह करने के बहुत लक्षण है लेकिन कुछ लक्षण भगवान ने बताए है की–
” देशत्यागो महानव्याधि: विरोधो बन्धुभि: सह–
धनहानि अपमानं च मदनुग्रहलक्षणम्”—
भगवान कहते है की व्यक्ति को घर अथवा देश त्यागना पडे,,महान व्याधियां आ जाए,,घर परिवार के लोग अगर विरोध करने लग जाएं,धन की हानि हो जाए,,अपमान होने लगे तो ये सब मेरी कृपा ही समझना—
यानि सब बातो का सार ये है की संसार छीन जाए तो ये कृपा है– ओर संसार मिलने पर भी भगवान मे मन का पुर्ण समर्पण रहे तो ये भी कृपा है–
लेकिन जब सुग्रीव जैसे महापुरुष संसार मिलने पर भगवान को भुल गये थे तो हम तो सामान्य प्राणी है– ईसलिए बस भगवान से प्रार्थना करनी चाहिये की हे प्रभु ,,हम बस निष्काम भाव से आपकी शरण मे बने रहें–
निष्काम भाव से हम आपका भजन करते रहें क्योकि भजन मे ही वास्तविक सुख है- प्रहलाद जी महाराज से जब भगवान ने वर मांगने को कहा तो प्रहलाद जी ने कहा की हे प्रभु अगर आप मुझे वर देना चाहते हो तो केवल ये वर दे दीजिये की मै कभी भी आपसे कुछ ना मांगू–
यानि हमेशा निष्काम बना रहूं क्योकि भगवान को भी निष्काम भक्त बहुत प्रिय है– खुद गीता मे भगवान कहते है की –
” यो न ह्रष्यति न द्वेष्टि न शोचति न काङ्क्षति,,शुभाशुभपरित्यागी भक्तिमान: स मे प्रिय: “
अर्थात् जो शुभ वस्तुओ के प्राप्त होने पर उनमे मन नही लगाता,ओर जो द्वेष नही करता,जो शोक नही करता ओर जो मुझसे कुछ नही चाहता वही भक्त मुझे अत्यंत प्रिय है–
ईसलिए निष्काम भाव से भजन करते रहना चाहिये– हम भगवान के है ओर केवल भगवान हमारे है–
सो कुल धन्य उमा सुनु जगत पूज्य सुपुनीत।
श्रीरघुबीर परायन जेहिं नर उपज बिनीत॥
भावार्थ:-हे उमा! सुनो वह कुल धन्य है, संसारभर के लिए पूज्य है और परम पवित्र है, जिसमें श्री रघुवीर परायण (अनन्य रामभक्त) विनम्र पुरुष उत्पन्न हों॥
बोलिए सियावर रामचंद्र की जय।