मन्दिर में सगुण साकार की पुजा की जाती है हम मन्दिर में जाकर सभी भगवान के सामने धुप दिपक जलाते हैं। आरती करते हैंं फल फूल चढाते हैं।
कुछ पाठ करके मस्तक नवाते हैं। हमे सबसे पहले भगवान को भगवान मानना होगा। भगवान एक है। ब्रह्म एक है चाहे राम कहो चाहे कृष्ण भक्त के दिल मे राम जी बस जाते हैं। नाम और रूप से भक्त भगवान को नमन और वन्दन करता है नाम की पुकार लगाते लगते भक्त नाम भगवान मे समर्पित हो जाता है। नाम भगवान हर क्षण भक्त के साथ रहता है। मां अपने बच्चों का शरीर रुप मे पालन करती है यह सगुण रूप हैं छोटा बच्चा जब स्कूल जाता है तब मां के हर भाव में बच्चा है यह दिल का भाव है। ऐसे ही भक्त भगवान को दिल में बिठा लेता है तब भक्त के हर भाव में भगवान है। भक्त फिर अन्दर झांक कर देखता है कि तु भगवान को उपरी मन से तो नहीं भज रहा तेरे भाव में प्रेम की उत्पत्ति हो रही है या लोक दिखाई भाव है। एक समय था जब दिल में इतनी उथल पथल थी कि कैसे भगवान से मिलन हो। हर समय नाम जप करता है फिर भी तृप्त नहीं होता है क्योंकि मनमे मैं है। मै भगवान को भज रहा हूं तब बस अभी दर्श हो जाए। धीरे धीरे मैं मर जाती है ये अहसास भी नहीं रहता है मै भगवान को भज रहा हूं ।क्योंकि भक्त कहता है ये सब भगवान करवा रहे हैं मै तो हूँ ही नहीं सबकुछ करने वाले भगवान नाथ श्री हरी है।आनन्द और तङफ दोनों में सम भाव आ जाता है। प्रेम की प्रकाशठा में भक्त नहीं है बस भगवान ही है जगत के व्यवहार को निभाते हुए भी वह नहीं है क्योंकि अन्दर जो संसार बसा हुआ था उसमें प्रभु प्राण नाथ का प्रवेश हो जाता है दर्श के भाव भी गौण होने लगते हैं। अन्तर्मन से प्रभु प्राण नाथ को ध्यान में जीवन की सत्यता हैं। दिल तो एक था दिल प्रभु का बन जाता है तब भगवान लीला अन्तर्मन मे कर जाते हैं।
हम शीश सबको नवाये पुजा किसी एक की दिन रात करे। अपना एक ही पार लगा देगा। रोज अनेक देवी देवता की पूजा करते हैं। अपना भगवान किस को कहोगे। किस की पुकार लगाओगे।हे प्रभु प्राण नाथ हे हरि हे राघव हे भगवान तुम मेरे स्वामी भगवान् नाथ कोन आपकी पुकार को सुन कर आयेगा। किसी एक भगवान को आप दिल में बिठा लो। अपने भगवान् से आप जब मन करे तभी समर्पित हो सकते हैं। इस तरह से जब आप उठते-बैठते, सोते जागते, चलते फिरते एक ही भगवान् को पुकारोगे तब वह छवि आपके दिल में बस जाएगी। नींद में गलत सपने आने पर आप अपने उसी भगवान् की नींद में पुकार करोगे डरोगे नहीं। भगवान् को पुकारते हुए, चिन्तन, मन्न, वन्दन और ध्यान लगाते हुए छवि भी नहीं रहेगी। भक्त को किसी बात का पता नहीं है बस वह भगवान पर आश्रित हैं। निर्गुण निराकार परमात्मा आ जाएँगे। सगुण साकार भगवान् के दर्शन के लिए साधक मन्दिर जाता है। निर्गुण निराकार परमात्मा के लिए कहीं जाने की आवश्यकता नहीं है। परमात्मा हर क्षण आपके दिल में बैठा अनेक लिला करता है। परमात्मा भी साधक के साथ लीला करने के लिए आने लगता है। परमात्मा के खेल निराले हैं। परम प्रकाश रुप कभी स्पर्श का अहसास कराता तो कभी ध्वनी में जप धुन सुनाता कभी साधक पर प्रकाश बिखेरता।भगवान कहते हैं मै तो प्रेम का भुखा हूँ। कोई प्रेम से पुकारे तभी मैं चला आता हूँ। कबीर जी कहते हैं कि ढाई अक्षर प्रेम के पढे सो पण्डित होय। भगवान् की शान्त पुजा दिल को शान्ति और प्रेम प्रदान करने वाली है। साधक के दिल में जब प्रेम प्रकट होता है। प्रकृति में परमात्मा का निवास देखकर साधक झुम उठता है। जय श्री राम
भक्त के दिल में एक ही तङफ होती है। किस तरह से अपने स्वामी भगवान् नाथ का बन जाऊँ ।हर क्षण भक्त भगवान् का बन जाना चाहता है ।कभी वन्दन करता है कभी पुकार लगाता है ।फिर भगवान के भाव मे ढुब जाता है। भक्त भगवान् नाथ मे इतना समा जाता है कि अपने आप का अहसास भुल जाता है। भगवान को हर चीज़ में खोजता है। प्रैस करते हुए चलते हुए भोजन बनाते हुए भगवान के भाव चल रहे है अपने आप को भुल गया है। चल रहा है पैरों से नाम ध्वनि निकल ह्दय से स्तुति करता हुआ चल रहा है। हे प्रभु हे स्वामी भगवान् नाथ सब कुछ तुम ही हो ।हे परमात्मा जी ये शरीर तुम्हारा बनाया हुआ है। इस तन में मन में स्वामी आप का ही निवास है। हे स्वामी आत्मा रुप में भी तुम ही विराजते हो हे स्वामी भगवान् इन नैनो में और दिल में तुम्हारा निवास है ।हे प्राण प्रिय सब कुछ तुम ही हो तुम चाहे जैसे इस कोठरी को रख अन्तर्मन में नाम ध्वनि और प्रेम का संचार तुम ही करते हो मुझमें अस्मित आनंद प्रेम तुम ही मुझ दासी में भरते हो। हे परमात्मा जी मै तुम्हारी लीला को समझ नहीं पाती हू ।कभी कभी तो ऐसा लगता है कि जैसे ये तुम ही तुम हो ।हे परमात्मा जी कभी ऐसा क्यों लगता है कि तुम ही सब कुछ कर रहे हो। कण-कण में तुम्हारा स्पर्श पाकर दिल झुमने लगता है। दिल करता तुम्हें गोद में बिठालु नैन नीर बहाते हैं दिल थामे नहीं थमता है। प्रभु प्रेम में वाणी मोन हो जाती है इस दिल में आंखों में सपने तुम सजाते हो।इन नैनो में तुम समा गए हो फिर इस जगत के लिए ये नैन उठते नहीं है। नैनो में भगवान के समा जाने पर भक्त अपने भगवान को अन्तर्मन मे खोजता है
जब मेरापन मर जाता है। तब भक्त संसारिक दृष्टि में सब कुछ करता है पर भक्त उसमे नहीं है। भक्त की हर किरया भगवान करते हैं।भगवान भक्त को क्षण भर में आन्नद से तृप्त करते हैं। भक्त भगवान की लीला को शब्द रूप देने में असमर्थ है। भक्त भोजन कर रहा है अन्तर्मन से भगवान के भाव में लिन भाव विभोर हो स्तुति करता हैं हे परम प्रभु मै भोजन को स्पर्श करता हूँ तो मुझे तुम्हारे होने का अहसास होता है जैसे तुम कह रहे हो मै रोटी में समाया हू। हे परमात्मा जी ये रोटी भी तुम्हारी है रोटी को खाने और खिलाने वाले सब कुछ मेरे दिल के स्वामी आप ही हो।ये सब गुरु की कृपा पर सब निर्भर है। जय श्री राम
अनीता गर्ग
Sagun Sakar is worshiped in the temple, we go to the temple and light incense lamps in front of all the Gods. Aarti is performed, fruits and flowers are offered. They bow their heads after reciting something. First of all we have to accept God as God. There is one God. Brahma is one, whether you call it Ram or not, Ram ji resides in the heart of a devotee of Krishna. The devotee bows down and worships God by name and form. While calling the name, the devotee becomes devoted to the name of God. Naam Bhagwan stays with the devotee every moment. Mother takes care of her children in physical form, this is Saguna form. When a small child goes to school, there is a child in every sense of the mother. This is the feeling of the heart. Similarly, a devotee makes God sit in his heart, then there is God in every sense of the devotee. The devotee then peeps inside and sees that you are not worshiping God with the upper mind, is love being born in your feelings or is it a visible feeling of the world. There was a time when there was so much turmoil in the heart as to how to meet God. Chants the name all the time, yet is not satisfied because I am in the mind. I am worshiping God, then it should be visible now. I die slowly, I don’t even realize that I am worshiping God. Because the devotee says that God is getting all this done, I am not there, the one who does everything is Lord Nath Shri Hari. There is equal feeling in both joy and agony. comes There is no devotee in the light of love, there is only God, even while following the behavior of the world, he is not there, because Lord Pran Nath enters the world that was settled inside, the feelings of vision also become secondary. Prabhu Pran Nath has the truth of life in meditation from the heart. The heart was only one, the heart becomes that of the Lord, then God does the Leela in the inner heart.
Let us all bow our heads and worship one day and night. Will cross only one of his own. Everyday many deities are worshipped. Whom will you call your God? Whom will you call? O Lord Pran Nath O Hari O Raghav O God you are my Lord Lord Nath who will come listening to your call. Make any one God sit in your heart. You can surrender to your God only when you feel like it. In this way, when you call on the same God while waking up, sleeping, walking, then that image will settle in your heart. If you have wrong dreams in your sleep, you will call out to that same God in your sleep, you will not be afraid. While calling God, thinking, chanting, worshiping and meditating, even the image will not remain. The devotee is not aware of anything, just he is dependent on God. Nirgun formless God will come. The seeker goes to the temple to see the Sagun Sakar God. There is no need to go anywhere for the Nirgun formless God. Every moment God sits in your heart and performs many pastimes. God also starts coming to do leela with the seeker. The games of God are unique. Sometimes the form of supreme light gives a feeling of touch, sometimes it recites chanting tunes in sound, sometimes it spreads light on the seeker. God says that I am hungry for love. I come only when someone calls me with love. Kabir ji says that if you read two and a half letters with love, you become a scholar. Quiet worship of the Lord gives peace and love to the heart. When love appears in the heart of the seeker. The seeker gets excited seeing the abode of God in nature. Jai Shri Ram
There is only one yearning in the heart of a devotee. How to become of my Lord Lord Nath. Every moment the devotee wants to become of God. Sometimes he worships, sometimes he calls out. The devotee gets so absorbed in Lord Nath that he forgets the feeling of self. Seeks God in everything. While walking while preparing food, God’s feelings are running, he has forgotten himself. He is walking, chanting his name from his feet, praising him from his heart. O Lord, Lord, Lord, You are everything. O Lord, this body is made by You. You are the abode of Lord in this body and mind. O Lord, you reside in the form of the soul. O Lord, you reside in these eyes and in the heart. O beloved of life, you are everything. You are the one who fills my maid with unlimited joy and love. O God, I do not understand your leela. Sometimes it seems as if it is you. Oh God, why sometimes it seems that you are doing everything. My heart starts fluttering after getting your touch in every particle. The heart makes you sit in the lap, the eyes shed tears, the heart does not stop holding it. In God’s love, the speech becomes silent, in this heart, you decorate the dreams in the eyes. You are absorbed in these eyes, then these eyes do not rise for this world. The devotee searches for his God in the inner heart when the God is absorbed in the nano. When mineness dies. Then the devotee does everything in worldly view but the devotee is not in it. God does everything for the devotee. God satisfies the devotee with joy in a moment. The devotee is unable to give words to the pastimes of the Lord. The devotee is eating food, he praises God, O Supreme Lord, when I touch the food, I feel your presence, as you are saying, I am included in the bread. O God, this bread is also yours, you are the master of my heart, the one who eats and feeds the bread. It all depends on the grace of the Guru. Jai Shri Ram Anita Garg