जब तक “मै” है तब तक इच्छाएं हैं। ये शरीर मेरा मै भगवान का भक्त हू। भगवान् मेरे है। इन वाक्यों में भक्ति पूरण नहीं है। भक्त और भगवान दो रूप में दिखाई दे रहे हैं। लेकिन जिस दिन भक्त भगवान् में रम जाता है। तब भक्त कहता है कि सब कुछ तु ही है। इस कोठरी में मेरा कुछ भी नहीं है ये सब मेरे स्वामी आपने मुझे मान दिया है।करता कर्म और क्रिया सब प्रभु भगवान ही मालिक है। भक्त कहता है कि हे मालिक ये कोठरी भी तेरी तु ही दिपक तु ही बाती में जलने वाला तेल भी तु। तेरे मन में हो तब तक तु रोशन कर चाहे तु बुझा दे। ऐसे सच्चे भक्त कहते है कि सब कुछ प्रभु रुप है। मुझ में मेरापन मिट गया फिर कैसे मोक्ष के विषय में सोचु। जय श्री राम अनीता गर्ग
As long as there is “I”, there are desires. This body is mine, I am a devotee of God. God is mine. There is no devotion in these sentences. The devotee and the Lord are visible in two forms. But the day when the devotee gets absorbed in the Lord. Then the devotee says that everything is you. I have nothing in this cell, my lord, you have given me all this. Lord God is the master of all the deeds and actions that I do. The devotee says that O master, this closet is also yours, you are the lamp, you are the oil that burns in the wick. Till it is in your mind, you can illuminate it if you want to extinguish it. Such true devotees say that everything is the form of God. My self has disappeared in me, then how can I think of salvation. Jai Shri Ram Anita Garg