भगवान की चरण स्पर्श का भाव प्रकट करती हूँ
भक्त के अन्दर भगवान की चरण वन्दन का भाव कुट कुट कर भरा होता है। घर में आरती करते हुए मन्दिर में दर्शन करते हुए भगवान के चरणों में नतमस्तक हो जाता है बार बार प्रभु प्राण नाथ को अन्तर्मन से वन्दन करते हुए निहारता है। दिल है कि चरणों से हटना ही नहीं चाहता है दिल में ठहर ठहर कर भाव बनता है भगवान श्री हरि के चरणो का वन्दन कर लु। ऐसे मन्दिर में बैठी हुई मै भगवान को निहारती रहती भगवान को निहारते हुए नैन नीर बहाते भजन गाते हुए निहारती प्रणाम करती फिर चरणो में दिल को टिका देती भजन गाते हुए अन्तर्मन भगवान को भाव में भर लेता ऐसे में तर्ज भी नहीं बन पाती लेकिन जो अन्तर्मन से प्रभु को निहारने समर्पित भाव बनता वह बाहरी गायन मे नहीं है भगवान के चरणो की वन्दना जंहा कहीं भी कर लेती एक दिन रात के ग्यारह बज रहे हैं। मै बैड पर बैठी हुई हूँ। टीवी चल रहा है। पर दिल अभी इसी समय परमात्मा का बन जाना चाहता है ।भगवान् श्री हरि के चरणों का स्पर्श करना चाहता है। दिल मे हलचल मच जाती है। मेरे पास भगवान का इस समय मुर्ति रूप में रूप नहीं है । कैसे मेरे स्वामी के चरणों को निहारूं मै अभी चरण वन्दन करु। मै बैठी हुई धीरे-धीरे बैड पर हाथ से स्पर्श करती। नैनो से नीर बहने लगता है मानो गंगा और यमुना नैनो में समा गई हो मै धीरे से स्पर्श करती और प्रणाम कर देती हूँ। ये मेरे प्रभु प्राण प्यारे के चरण है। मै चरणों के स्पर्श पाकर अपने आप को भुल जाती हूँ। जय श्री राम
अनीता गर्ग
I express the feeling of touching the feet of God The feeling of worshiping God’s feet is filled in the devotee. While performing aarti in the house, while visiting the temple, bows down at the feet of God, again and again, the Lord looks at Pran Nath while worshiping him. There is a heart that does not want to move away from the feet, by staying in the heart, the feeling is formed by worshiping the feet of Lord Shri Hari. Sitting in such a temple, I used to gaze at God, while singing bhajans, singing bhajans, bowing down to the feet, then while singing hymns, keeping my heart at my feet, my soul fills God with emotion, in such a way the lines could not be formed, but the inner being The feeling of being devoted to the Lord is created, it is not in the external singing, wherever you can worship the feet of God, it is eleven o’clock in the night one day. I am sitting on the bed. TV is on. But right now the heart wants to become of God. Lord wants to touch the feet of Shri Hari. There is a stir in the heart. I do not have the form of God in the form of an idol at this time. How can I look at the feet of my lord, I should worship my feet now. Sitting slowly, I would touch the bed with my hand. Neer starts flowing from Nano as if Ganga and Yamuna have merged in Nano, I touch and bow softly. This is the feet of my Lord Prana Pyare. I forget myself at the touch of feet. Long live Rama
Anita Garg