दृष्टा भाव संसार का सर्वोत्तम भाव है


दृष्टा भाव समर्पण का पूर्ण रूप होता है,, प्रभु को समर्पित होकर जीवन व्यतीत करना,, और जीवन में आने वाले हर सुख दुख को दृष्टा भाव से देखते रहना,, अपने कर्तव्य का पूर्ण निष्ठा के साथ पालन करना,, फल की इच्छा किए बिना कर्तव्य कर्म करते जाना,, आगे प्रभु की मर्जी वह क्या देते हैं,, प्रभु की ओर से जो भी मिले उसी में संतुष्ट रहना,, कभी किसी से किसी तरह का शिकवा गिला नहीं करना,, और जीवन में जो भी अच्छा बुरा मिले उसे प्रभु का प्रसाद समझकर ग्रहण करते जाना,, दृष्टा भाव आने पर ही मनुष्य प्रभु के स्वरूप को उनकी इच्छाओं को और उनकी लीला को अच्छी तरह से समझ पाता है,, बिना दृष्टा भाव के कोई उसकी कृपा को ठीक ठीक नहीं समझ पाता,, प्रभु को समर्पित होना ही दृष्टा भाव की उत्पत्ति का कारण है,, अपनी सारी इच्छाओं का त्याग करना और प्रभु पर पूरी तरह निर्भर हो जाना,, प्रभु की इच्छा के अनुसार अपना जीवन व्यतीत करना,, मैं और मेरा के बंधन से मुक्त होकर,, तू और तेरा,, में ही प्रसन्न रहना,, समर्पण की यही पहचान है,,



Seeing is the complete form of dedication, living a life dedicated to God, and observing every happiness and sorrow that comes in life with a seeing eye, performing one’s duty with full devotion, doing one’s duty without expecting any result. Go ahead, follow the will of God, what He gives, be satisfied with whatever you get from God, never hold any grudge against anyone, and whatever good or bad you get in life, keep accepting it as God’s Prasad. Only when one has the vision of vision, a person is able to understand the form of God, His desires and His activities well. Without vision, no one can understand His grace properly. Being dedicated to God is the reason for the origin of vision of God. To give up all one’s desires and become completely dependent on the Lord, to live one’s life according to the will of the Lord, to be free from the bondage of ‘I’ and ‘mine’, and to be happy in ‘you’ and ‘yours’, this is the identity of surrender. ,

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