भक्ति प्राप्त करने के लिए भगवान का बनना होता है। परमात्मा को पुकारते पुकारते समर्पण भाव जागृत हो जाता है। भक्त हर घङी हर क्षण परम प्रभु से जुड़े रहना चाहते हैं। हाथ कार्य करे तो करे पैर चले तो चले पर दिल प्रभु भगवान नाथ का बन जाना चाहता है ।दिल मे हर क्षण परमात्मा से मिलन की तङफ बन जाती है। नैनो में भगवान को बसा लेता है। फिर भी भक्त कहता है कि हे प्रभु तुने मुझे ये पहाड़ सा जीवन दिया मैंने इसे माटी में रोल दिया। तेरा सच्चा चिन्तन मन्न और सिमरण नहीं किया है।जिस के दिल में परमात्मा से मिलन की तङफ जगी है उसी ने हर क्षण भगवान नाथ को ध्याया है। ऐसे भक्तो को बाहरी दिखावे की जरूरत नहीं है। भक्त अन्तर्मन में झांकता अन्तर्मन में भगवान दिखते बाहर झांकता बाहर भगवान दिखते हैं।
कर्म करते हुए प्रभु प्राण नाथ को करता कर्म और क्रिया में ये सब मुझमें बैठे मेरे स्वामी ही कर रहे हैं। मै सब्जी कंटिग करता हूँ सब्जी में परमात्मा समाए है हाथ में भी परमात्मा समाए है सबकुछ प्रभु भगवान ही कर रहे हैं मै तो निमित मात्र हू। इस तरह से भक्त भगवान से कर्म करते हुए मन ही मन परमात्मा से कभी विनती करता है तो कभी वस्तु विशेष मे भगवान को ढूँढता है। भक्त और भगवान की लीला को क्या शब्द रूप दे सकते हैं।
मन में लोभ बिठाकर परमात्मा को ध्यान सिमरण और मनन करेगें। तो मन को कुछ प्राप्त नहीं होगा। प्रेम में प्रभु खिंचे चले आते हैं। प्रेमी के दिल में कोई इच्छा नहीं रहती है। प्रभु से जो प्रेम करता है। उसके दिल में एक ही इच्छा होती है कि प्राण नाथ प्यारे को मै ध्याता रहु ।प्रभु प्रेमी अपने भगवान को माला मुर्ति पाठो में नहीं ढुढता। वह अपने हृदय में प्रभु को बिठाकर हर किरया कर्म में भगवान के साथ खेलता है। जैसे मीराबाई भगवान के साथ खेलती थी।
परम पिता परमात्मा का सिमरण करते हुए हमें परमेशवर को हृदय में ले आये और परमात्मा से कहे कि हे परमात्मा जी तुम मेरे स्वामी भगवान् नाथ हो ।ये सिमरण अन्तर्मन में बैठ कर तुम ही करवा रहे हो।
जय श्री राम अनीता गर्ग
One has to become God in order to attain devotion. While calling out to the Supreme Soul, the spirit of surrender gets awakened. Devotees want to be connected with the Supreme Lord every moment, every hour. If the hands work, then the feet move, but the heart wants to become of Lord Lord Nath. Every moment in the heart becomes towards the union with God. Settles God in Nano. Still the devotee says that O Lord, you have given me this mountain-like life, I have given it a roll in the soil. Your true contemplation has not been chanted and simran. The one whose heart has awakened towards union with God, he has meditated on Lord Nath every moment. Such devotees do not need external appearances. The devotee peeping into the inner being sees God in the inner being, peeping outside, God is seen outside. While doing work, doing all these deeds to Prabhu Pran Nath and in action, all these are being done by my lord sitting in me. I do vegetable contig, God is contained in the vegetable, God is also in the hand, everything is being done by the Lord God, I am just an instrument. In this way, the devotee, while working with God, sometimes prays to God in his mind and sometimes seeks God in a particular object. What words can give form to the Leela of the devotee and the Lord.
By instilling greed in the mind, we will meditate and meditate on God. So the mind will not get anything. The Lord is drawn in love. There is no desire in the lover’s heart. One who loves the Lord. There is only one desire in his heart that I should meditate on Pran Nath Pyare. Lord lover does not find his God in rosary and idols. By keeping the Lord in his heart, he plays with the Lord in every action. Like Mirabai used to play with God. Remembering the Supreme Father, the Supreme Soul, bring us to the Supreme Lord in our heart and say to the Supreme Lord that you are my lord, Lord Nath.
Jai Shri Ram Anita Garg