भगवद लीला

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आन्तरिक भाव की बाह्य अभिव्यक्ति किसी दर्शक या अनुमोदक की अपेक्षा नहीं करती… आन्तरिक भाव का स्वाभाविक विकास वहीं होता है, जहाँ जन-समूह नहीं होता, जन-समूह में कारण उपस्थित होने पर भी आन्तरिक भाव प्रकट नहीं होता…. अकेले में निस्संकोच भाव से आन्तरिक भाव प्रकट होते हैं, किसी के असली स्वभाव को जानना हो तो वह अकेले में क्या करता है, इसे देखना चाहिये; इससे उसका वास्तविक रूप प्रकट होगा…. श्रीकृष्ण ने यशोदा मैया के दूध उतारते चले जाने पर अकेले में क्रोध करके दही के मटके को फोड़ डाला था और भाग गये थे – यह दिखाने का नाट्य नहीं था, असली भाव था।भगवान माता को अपना प्रेम भाव प्रकट करना चाहते हैं।
मधुर लीला, प्रेमी पार्षदों का अधिक जुटाव, रूप-माधुर्य और वेणु-माधुर्य – ये चार प्रकार के माधुर्य श्रीव्रजराजनन्दन में विशेष रूप से विद्यमान हैं और ये व्रज में ही रहते हैं, उनके साथ मथुरा और द्वारका नहीं जाते।
भगवान के प्रेम रहस्य को प्रेमी भक्त खोलना नहीं चाहते और न खुलवाना ही चाहते हैं।
श्रीयशोदाजी के हृदय में अपने पुत्र श्रीकृष्ण के सिवा और कुछ रहता ही नहीं, प्रेम भावमय होता है। उसके हृदय-पटल पर भगवान श्रीकृष्ण का बाल-विग्रह सदा अंकित रहता है क्योंकि उनका हृदय-पट भावरस से आप्लावित हैं प्रेम का विश्व विद्यालय है वृंदावन, प्रेम हमें कृष्ण मुल्क का नागरिक बना देता है।



The outward expression of the inner feeling does not expect any spectator or approver… The natural development of the inner feeling takes place only where there is no mass, the inner feeling does not appear even if the cause is present in the mass. In solitude, inner feelings are manifested without hesitation, if one wants to know the true nature of one, then what he does in solitude, it should be seen; This will reveal his real form…. I want to express my love. Sweet lila, more mobilization of loving councilors, Roop-melody and Venu-melody – these four types of melody are specially present in Sri Vrajarajanandan and they remain in Vraja, do not go with them to Mathura and Dwarka. Loving devotees do not want to open the love secret of God and do not want to be opened. Nothing remains in the heart of Shri Yashodaji except his son Shri Krishna, love is full of emotion. Lord Krishna’s child-deity is always inscribed on his heart-plate because his heart-plate is filled with emotion. Vrindavan is the world school of love, love makes us citizens of Krishna country.

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