गतांक से आगे –
साँई ! मैं द्वारिका जा रहा हूँ …आपको अगर द्वारिकाधीश के दर्शन करने हैं तो चलिये ।
बग़दाद से कोई भक्त सिन्धी व्यापारी द्वारिका जा रहा था …व्यापार के ही सिलसिले में …तो वो मीरपुर आया हुआ था ..सत्संग के बाद कोकिल साँई के चरणों में बैठकर उसने ये प्रार्थना की थी ।
भगवान श्रीकृष्ण ? कोकिल जी के आँखों में चमक आगयी थी ।
हाँ , आप चलिये आपको दर्शन भी हो जाएँगे कुछ दिन वहाँ वास कीजिएगा ।
उस व्यापारी की बात सुनते ही कोकिल साँई उसी क्षण चलने के लिये तैयार हो गये थे ।
पर हम यहाँ अब किसके सहारे रहेंगे ? साधकों सत्संगियों के नेत्रों से अश्रु बहने लगे ।
साँई ! अब हम आपको नही छोड़ सकते ।
पर तुम्हारा कौन है ? मेरी तो लाड़ली सिया जू हैं …वहीं मेरे साथ रहती हैं …..
फिर आप क्यों द्वारिका जाएँगे ? आपकी सिया सुकुमारी तो आपके साथ हैं ही ना ! आप मीरपुर में ही रहिये ….यहीं दरबार में नित्य सत्संग होता है आप के कारण हम भी अध्यात्म में लग गये हैं ….आप मत जाइये । साधक सब कहने लगे थे ।
तभी कोकिल साँई हिलकियों से रोने लगे ….और रोते हुये बोले ….मेरे दोनों युगल अलग अलग रह रहे हैं ….मेरी लाड़ली ऋषि वाल्मीकि के आश्रम में हैं और मेरे रघुनाथ अवधपति बने बैठे हैं …दोनों मिलें …मेरी सिया जू का दुःख कम हो इसलिये मैं द्वारिका जाना चाहता हूँ ।
कोकिल जी के इन भावों को वहाँ कोई समझ नही पाता था …पर प्रेम को तो सब समझते ही हैं ।
कोकिल जी अपने कुछ साधकों के साथ द्वारिका के लिये चल दिये ……रेल गाड़ी में ही सत्संग होता था …….
एक घटना जो इसी द्वारिका यात्रा के समय घटित हुयी थी ।
सुबह का समय था रेल रुकी थी …कोकिल साँई रेल से उतर गये …रेल एक घण्टे रुकने वाली थी तो सबने बाहर आकर स्नान किया ….फिर सत्संग शुरू हो गया ….सत्संग में इतने खो गये कोकिल जी …और कोकिल जी ही नही उनके सभी सत्संगी भी । रेल चल दी …पर किसी को कोई भान नही है …कोकिल जी के नेत्रों से अश्रु बह रहे हैं और सत्संग चल रहा है ।
एक घण्टे तक ये सत्संग चला …जब सबको भान हुआ तब सबने देखा रेलगाड़ी वहाँ नही है ।
सब दुखी हो गये ….तब कोकिल साँई ने कहा था – साधक होकर इतनी बात में दुखी हो गये !
अरे ! मेरी सिया जू को लक्ष्मण जी जब वन में छोड़कर चले गये तब मेरी लाड़ली को कैसा लगा होगा ? ये कहते हुये कोकिल जी फिर रोने लगे थे ।
तभी सामने से रेल चालक दौड़ा हुआ आया …..और हाथ जोड़कर बोला …बहुत समय हो गया आगे जाकर रेल रुकी पड़ी है …..कारण कुछ समझ में नही आरहा आप लोग उसी रेल के यात्री हैं ना ? कोकिल जी अपने आँसुओं को पोंछते हुये साधकों से बोले थे …..देखा ! मेरी लाड़ली हमारा कितना ध्यान रखती हैं ….पर हमारा कर्तव्य है उन्हें कष्ट न देना ….चलो ! रेल में बैठो।
इतना कहकर दूर खड़ी रेल में बैठने के लिये सब चल पड़े ….और आश्चर्य ! इनके बैठते ही रेल चल दी थी ।
पर कोकिल जी इन अब बातों को महिमामण्डित नही करते थे …इन्हें चमत्कार के रूप में देखना पसंद नही था ये तो सारी बातें अपनी सिया जू के ऊपर ही छोड़ देते और कहते “वो करती हैं” ।
दुसायत मोहल्ला है श्रीवृन्दावन में , जो श्रीबाँके बिहारी मन्दिर के बिल्कुल पास में ही है …वहीं “सुखनिवास” आश्रम है ………
भण्डारे का प्रसाद हमने ले लिया ….फिर उन सिन्धी भक्त से हमने आगे का प्रसंग सुनाने की प्रार्थना की ….तो वो अतिउत्साह से हमें आगे का प्रसंग सुनाने लगे थे ।
द्वारिका में गये कोकिल साँई ….साधक भी साथ में ही थे …सबने मिलकर गोमती स्नान किया ..समुद्र स्नान किया फिर रुक्मिणी मन्दिर के निकट ही एक सिन्धी धर्मशाला था वहीं सब लोग ठहरे ।
पाँच दिन रुके द्वारिका में कोकिल जी …..ये घटना अन्तिम दिन की है इसके बाद कोकिल जी द्वारिका से चल देते हैं ….”मेरा स्वार्थ पूरा हो गया अब क्यों रहूँ द्वारिका” ये बात बड़ी सहजता और प्रेम से बोले थे ।
पर क्या स्वार्थ था कोकिल साँई के द्वारिका जाने का ? गौरांगी ने प्रश्न किया ।
सुनो , बताता हूँ ….वो सिन्धी भक्त हमें बताने लगे ।
रात्रि की वेला थी ….समुद्र का कोलाहल था पर कोकिल जी सोते कहाँ थे ….वो समुद्र के तट पर आगये थे ….समुद्र को ही देख रहे थे …”सत्य ये है कि द्वारिका समुद्र में है …..मूल द्वारिका समुद्र में समा गयी है …अभी भी समुद्र में ही है द्वारिका ….रुक्मिणी और द्वारिकाधीश वहीं रहते हैं ….भक्त सब उनकी सेवा में लगे हुये हैं ….नारद जी , ब्रह्मा जी , रूद्र सब द्वारकेश की स्तुति गा रहे हैं “। ऐसा चिन्तन करते करते कोकिल जी भाव जगत में चले गये …….वो बिलखने लगे ….हे द्वारकेश ! हे विदर्भनन्दिनी ! मुझे दर्शन दो ….तुम्हारी द्वारिका में जगतजननी जानकी जू की सहचरी आयी है उसे दर्शन नही दोगे ? इतने निष्ठुर तो मत बनो । यही प्रार्थना जब गहरी और गहरी होती गयी ….तब समुद्र में से एक दिव्य लोक प्रकट हुआ …उसमें दरबार था …..दरबार में नारदादि सब थे …..सिंहासन उच्च मनोहर था ….द्वारकेश उसमें विराजे थे …वाम भाग में विदर्भकुमारी रुक्मणी विराजमान थीं ।
उस रूप को देखते ही कोकिल जी दौड़ पड़े और साष्टांग चरणों में लेट गये ।
क्या चाहिये ?
कोकिल जी , सहचरी भावापन्न हो गये थे …..
हे द्वारकेश ! ये बालिका आपसे कुछ माँगने ही आयी है …आपके इस धाम में आने का मेरा उद्देश्य कोई निःस्वार्थ नही है….स्वार्थ है ।
फिर एकाएक रुक्मणी जी की ओर देखा कोकिल सखी ने ।
आप तो समझ सकती हैं ….आपतो नारी हैं ना ?
क्या माँगना है ….माँगो ! द्वारिकाधीश इतना ही बोले ।
मेरी सिया जू ऋषि वाल्मीकि के आश्रम में हैं ….वो वहाँ बहुत दुखी हैं ….मैं बस यही चाहती हूँ कि राघवेंद्र और मेरी सिया दोनों मिल जायें ….आप से मैं यही माँगने आयी हूँ …मुझे कुछ नही चाहिये …..कुछ नही ….बस यही वरदान दे दीजिये कि दोनों मिल जायें और ख़ुश रहें ….ख़ुश रहें …..अनादि काल तक उनकी ख़ुशी में किसी की नज़र ना लगे ।
द्वारकेश मुस्कुराये …..तो कोकिल जी बोले – नही नही आप मुस्कुराये नहीं…..मेरी सिया और राघवेंद्र को आशीर्वाद दीजिए – अब वे कभी बिछुड़ें नहीं ….दोनों सुखी रहें …दोनों मग्न रहें एक दूसरे में ।
द्वारकेश ने जैसे ही “हाँ” बोला …..आनन्द से उछल पड़े थे कोकिल साँई ….भाव जगत से बाहर आकर सबको बोल दिया आज ही चलना है यहाँ से ।
क्यों ? साधकों के इस प्रश्न का कोकिल साँई ने यही उत्तर दिया था – हम सिन्धी है अपने काम पर ही हमारा ध्यान रहता है ….अब चलो , मेरीh लाड़ली और राघवेंद्र को आशीष मिल गया है वो दोनों अब मिल जाएँगे ।
और द्वारिका से चल दिये कोकिल जी अपने साधकों के साथ …….
शेष कल –
📖✨ Bhakta Kokil ✨📖
Part – 4
ahead of speed
Sai! I am going to Dwarka… If you want to visit Dwarkadhish, then go.
A devout Sindhi merchant from Baghdad was going to Dwarka…in connection with business…so he had come to Mirpur…after the satsang he offered this prayer sitting at the feet of Kokil Sai.
Lord Shri Krishna? Kokil ji’s eyes were shining.
Yes, you go, you will also get darshan, stay there for a few days.
On listening to that merchant, Kokil Sai was ready to walk at the same moment.
But on whom will we live here now? Tears started flowing from the eyes of the devotees and satsangis.
Sai! We can’t leave you now.
But who is yours? Siya Joo is my darling…she stays with me there…..
Then why would you go to Dwarka? Your Siya Sukumari is with you anyway! You stay in Mirpur only….Satsang takes place daily in the court because of you we have also got engaged in spirituality….You don’t go. The devotees started saying everything.
That’s why Kokila Sai started crying with hiccups….and said while crying….my both couples are living separately….my beloved is in Rishi Valmiki’s ashram and my Raghunath is sitting as Awadhapati…both meet…my Siya Ju’s sorrow is reduced Yes, that’s why I want to go to Dwarka.
No one there could understand these feelings of Kokil ji… but everyone understands love.
Kokil ji left for Dwarka with some of his sadhaks……Satsang used to take place in the train itself…….
An incident which happened during this Dwarka Yatra.
It was early in the morning, the train had stopped… Kokil Sai got down from the train… The train was about to stop for an hour, so everyone came out and took bath…. Then satsang started…. All satsangi too. The train has started…but no one has any idea…Tears are flowing from Kokil ji’s eyes and the satsang is going on.
This satsang went on for an hour… When everyone became aware, then everyone saw that the train was not there.
Everyone became sad…. Then Kokil Sai had said – being a seeker, you became sad because of so many things!
Hey ! When Laxman ji left my sister-in-law in the forest, how would my darling have felt? Saying this, Kokil ji started crying again.
That’s why the train driver came running from the front…..and folded hands and said…it’s been a long time, the train has stopped ahead…..you don’t understand the reason, are you the passengers of the same train, aren’t you? Kokil ji had spoken to the devotees while wiping his tears…..look! My darling takes care of us so much….But it is our duty not to trouble them….Come on! sit in the train
Having said this, everyone left to sit in the train that was standing far away….and surprise! The train started as soon as he sat down.
But Kokil ji did not glorify these things anymore… He did not like to see them as miracles, he would have left all the things to his Siya Ju and said “she does”.
Dusayat Mohalla is in Sri Vrindavan, which is very close to Sribanke Bihari Temple… There is “Sukhnivas” Ashram………
We took the prasad from the Bhandara….then we requested that Sindhi devotee to narrate the further incident….then he started narrating the further incident with great enthusiasm.
Kokil Sai went to Dwarka…Sadhaks were also with him…they all took bath in Gomti together…they took sea bath, then there was a Sindhi Dharamshala near Rukmini temple where everyone stayed.
Kokil ji stayed in Dwarka for five days…..this incident is of the last day, after that Kokil ji leaves from Dwarka….”My selfishness has been fulfilled, now why should I stay in Dwarka” he spoke with great ease and love.
But what was the selfishness of Kokil Sai going to Dwarka? Gaurangi asked the question.
Listen, let me tell you… those Sindhi devotees started telling us.
It was night time….There was noise of the sea but where did Kokil ji sleep….He had come to the sea shore….He was looking at the sea only…” The truth is that Dwarka is in the sea…..The original Dwarka is in the sea. Dwarka is still in the sea….Rukmini and Dwarkadhish live there….The devotees are all engaged in their service….Narad ji, Brahma ji, Rudra all are singing praises of Dwarkesh”. While thinking like this, Kokil ji went into the world of feelings….he started crying….O Dwarkesh! Hey Vidarbha Nandini! Give me a darshan….Jangjanani Janaki Ju’s companion has come to your Dwarka, won’t you give her darshan? Don’t be so cruel. When this prayer became deeper and deeper…..then a divine world appeared from the sea…..there was a court…..there were all Naradadis in the court….the throne was high and beautiful…..Dwarkesh was sitting in it…Vidarbha Kumari Rukmani in the left part Was sitting
As soon as he saw that form, Kokil ji ran and prostrated himself at his feet.
What do you want ?
Kokil ji, Sahachari Bhavapann Ho Gaye The…..
Hey Dwarkesh! This girl has come to ask something from you… My aim of coming to this abode of yours is not selfless….it is selfish.
Then suddenly Kokil Sakhi looked at Rukmani ji.
You can understand….you are a woman, aren’t you?
What to ask….Ask! Dwarkadhish only said this much.
My sis is in Rishi Valmiki’s ashram….She is very sad there….I just want that both Raghavendra and my sis should meet….This is what I have come to ask from you…I want nothing….nothing ….just give this boon that both of them get together and be happy….be happy…..no one should be able to see their happiness till eternity.
Dwarkesh smiled….. then Kokil ji said – no no you didn’t smile…..bless my Siya and Raghavendra – now they never get separated….both stay happy…both stay engrossed in each other.
As soon as Dwarkesh said “yes”… Kokiel Sai jumped with joy… coming out of the emotional world told everyone that he has to leave from here today itself.
Why ? Kokil Sai had given the same answer to this question of the seekers – We are Sindhi, we focus only on our work….Now come on, my dear and Raghavendra have got blessings, both of them will meet now.
And Kokil ji left from Dwarka with his devotees…….
rest of tomorrow