गतांक से आगे –
मैं मन्दिर का पुजारी था ….उस प्रसिद्ध मन्दिर के पुजारी ने कहा ।
था ?
उन पुजारी को श्रीचक्रपाणि शरण जी ने ध्यान से देखा….ये परिचित थे इसलिये तो इनकी बात मानकर प्रसाद समझ इन्होंने स्वीकार किया था ।
किन्तु आप तो पुजारी हैं ….श्रीचक्रपाणि शरण जी ने कहा ।
नही , मेरी ये प्रेतयोनि है …..उन पुजारी ने कहा ।
क्या ? श्रीचक्रपाणि शरण जी चौंक गये थे….पुजारी को गौर से देखा …..शुक्लपक्ष था चन्द्रमा कि चाँदनी भरपूर थी पर पुजारी की परछाईं नहीं ?
पर आप इस योनि में कब और कैसे आये ? श्रीचक्रपाणि शरण जी ने पूछा ।
मन्दिर में ठाकुर जी के लिये सुवर्ण रजत के मुकुट आदि खूब आते थे ….मैं उनको चुराकर घर ले जाता था और अपनी पत्नी के गहने बना देता ….ये मैं चुरा कर करता था ।
भेंट पात्र की दूसरी चाबी मैंने बनवा रखी थी …मैं पैसे चुराता था ..इस तरह के कर्म ने मुझे आध्यात्मिक रूप से तो गिराया ही …मेरी मति भी अशुद्ध होती चली गयी …मदिरा आदि का सेवन मैंने करना प्रारम्भ कर दिया …एक दिन मदिरा का सेवन ज़्यादा हो गया था और मुझे किसी ने यमुना जी में धक्का दे दिया तो मेरी मृत्यु हो गयी । उन प्रेत बने पुजारी ने इस तरह अपने बारे में सम्पूर्ण बातें बता दीं थीं ।
रात्रि में श्रीवृन्दावन धाम की परिक्रमा का आनन्द अलग ही होता है …शान्त श्रीधाम और वाणी जी के पदों का गायन करते हुए श्रीचक्रपाणि शरण जी चले जा रहे थे …पानी घाट से आगे गये ही थे कि ..
“बाबा ! भण्डारो खाय ले”…
परिचय के पुजारी मिल गये …भण्डारा चल रहा है …बहुत लोग हैं सब भण्डारा खा रहे हैं ।
नही पुजारी जी , अभी नही …इतना कहकर श्रीचक्रपाणि शरण जी आगे बढ़ गये थे ।
अरे बाबा ! थोड़ा तो पा ले ….बृजवासी के बात को काटने का स्वभाव इनका था नही …ठीक है पुजारी जी ! इस थैले में थोड़ा प्रसाद दे दो ….कुटिया में जाकर मैं पा लूँगा ।
उन पुजारी ने थैले में कुछ लड्डू और पूड़ीयां रख दीं…..श्रीचक्रपाणि शरण जी प्रसाद लेकर आगे बढ़ गये थे …..चामुण्डा देवी मन्दिर के पास जैसे ही पहुँचे …समय देखा तो रात्रि के दो बज रहे हैं ….उन्हें आश्चर्य हुआ …कि रात्रि के एक दो बजे कौन भण्डारा रखता है । पर वो चलते रहे और जब अपने युगलभवन स्थान में पहुँचे तो थैला जैसे ही खोला उसमें मात्र हड्डियाँ थीं ….ये क्या ! हड्डियाँ !
तालाब में थैला ही फेंक दिया और स्नान करके वो भजन करने बैठ गये थे ….पर मन में यही था कि वो पुजारी ? किन्तु वो पुजारी जी तो परिचय के ही थे । फिर इन विचारों को बल ना देकर भजन में अपने मन को उन्होंने तल्लीन कर लिया था ।
नित्य नियम – श्रीचक्रपाणि शरण जी आज फिर रात्रि में परिक्रमा देने के लिए चले …..पानी घाट पर पहुँचे पर आज कोई नही था वहाँ ….कुछ देर ये सहज बैठ ही थे कि दूर कोई बैठा हुआ दिखाई दिया ….रात्रि के एक बज रहे हैं ….ये पास में गये …..तो वही पुजारी थे ……
तुम ? और कल तुमने क्या दिया मुझे ? तुम यहाँ क्यों हो ? आधी रात में ?
बहुत सारे प्रश्न एक साथ पूछ लिए थे चक्रपाणि शरण जी ने ।
बाबा ! मैं मन्दिर का पुजारी था …..उसने अपनी सारी बात बताई कि ये मेरी प्रेत योनि है …..और प्रेत योनि में मैं कैसे आया ये भी बताया ।
पुजारी की सम्पूर्ण बातें सुनकर ….लम्बी साँस ली श्रीचक्रपाणि शरण जी ने …..फिर बोले …अब प्रेत योनि से कैसे मुक्त होओगे ? प्रेत बने पुजारी ने कहा …..कोई शुद्ध श्रीमद भागवत जी का पाठ इसी स्थान पर शुक्ल पक्ष में मुझे सुना दे तो मेरा उद्धार हो जाएगा । फिर कुछ सोचकर पुजारी ने कहा ….आप कल से ही ….शुक्ल पक्ष है ….अष्टमी है …..मैं अपनी पत्नी को बोल दूँगा …..वो दक्षिणा आदि की व्यवस्था कर देगी ….आप मेरा ये काम कर दें । श्रीचक्रपाणि शरण जी ने कहा …पत्नी को कैसे बोलोगे ….पुजारी ने कहा – स्वप्न में …..ये कहकर वो वहाँ से ग़ायब हो गया था ।
एक अच्छे विद्वान द्वारा ….भागवत का पाठ पानी घाट में रखा गया …पत्नी आयी उसको स्वप्न में बता दिया था प्रेत योनि में गए पुजारी ने । और प्रत्यक्ष घटना कि उन पुजारी को सात दिन में प्रेत योनि से मुक्ति मिल गयी और दूसरा जन्म भी उसे तुरन्त प्राप्त हो गया था श्रीधाम वृन्दावन में ही ।
शेष कल –