विनय के संदर्भ में शास्त्रों में कहा गया है कि, विनय संपत्ति प्रदान कर सकता है, विनय प्रीति प्रदान कर सकता है, विनय सन्मति प्रदान कर सकता है और इससे भी बढ़कर विनय मुक्ति प्रदान करने की सामर्थ्य भी रखता है। *मुक्ति अर्थात् क्रोध से मुक्ति, ईर्ष्या से मुक्ति, प्रतिस्पर्धा से मुक्ति, राग - द्वेष से मुक्ति और सबसे बड़ी बात वो ये कि अहंकार से भी मुक्ति। जिस मनुष्य के भीतर विनय रूपी सद्गुण विद्यमान रहेगा उसका जीवन बहुत सारे दुर्गुणों से स्वतः मुक्त हो जायेगा। जीवन में सबको झुकाकर चलने वाला हार सकता है मगर सबसे झुककर चलने वाला कभी नहीं हार सकता । आँधी और तूफान भी पेड़ को तो उखाड़ कर बहा और उड़ा सकते हैं मगर एक तिनके को नहीं।
प्रकृति त्रिगुणात्मक सत, रज और तम है। और.प्रकृति निर्मित इस शरीर में तीनों गुण विद्यमान रहते है। लेकिन उसी गुण का विकास होता है। जैसे माता पिता द्वारा परवरिश की जाती है। संस्कार दिये जाते है।
साथ साथ ही साथ संगत का भी बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है। अच्छी संगत से हमारे अच्छे गुणों का विकास होता है और बुरी संगत से बुरे गुणों का विकास होता है रावण ऋषि पुत्र था, लेकिन उसकी परवरिश राक्षस कुल में होने के कारण वह राक्षसी वृत्ति का हो गया, अपने अच्छे गुणों का विकास करें ,और जीवन में सुख शान्ति समृद्धि प्राप्त करें।हमारे कर्मों के परिणाम को हम दूर तक नहीं देख पाते हैं, और जब वे सक्षम-फलित होते हैं,तो हमारे हाथ में उसे भोगने के अलावा कुछ नहीं रहता।