इच्छाओं के त्यागने से संतुष्टि का भाव उतपन्न होता है

हम में से अधिकांश लोग अच्छा दिखने की कोशिश करते हैं, और दिखाने के लिए इतनी अच्छी और ज्ञान भरी बातें करते हैं कि जिससे सामने वाला व्यक्ति हमे बहुत ही अच्छा या सज्जन समझे।जबकि वास्तविकता इससे बहुत दूर होती है।क्योंकि हमारे कथनी और करनी में बहुत अंतर होता है।दिल के अच्छे लोग कभी किसी से अपने को बेहतर बताने के लिए बहस नही करते।अच्छा बनने के लिए बहुत सी मर्यादाओं का पालन करना पड़ता है।किंतु हम अपने हित की बात को उचित मानकर उसे ही श्रेष्ठ समझते हैं।

जीवन मे देने वाला सदैव महान होता है।परमात्मा ने असंख्य पदार्थ हमे निशुल्क दिए हैं।जो हमारे पास है, यदि हमें जरूरत नही है, तो उसे जरूरतमंद को जरूर देना चाहिए।स्वयं के पास से देते रहना या अपने हक में से अपने परिवार के लिए छोड़ना,या सदैव दुसरो की मदद करना,अपनी इच्छाओं का त्याग है।जिसने अपनी इच्छाओं का त्याग कर दिया,उससे उत्तम संसार मे कुछ भी नही।इच्छाओं के त्यागने से संतुष्टि का भाव उतपन्न होता है, और सन्तुष्ट मनुष्य विपरीत परिस्थितियों में धैर्य ,साहस और विश्वास नही छोड़ता।
जीवन मे बिना किसी की सहायता के कोई भी जीवित नही रह सकता।ठीक इसी प्रकार बिना माता-पिता की सहायता के हमारा जन्म नहीं हो सकता और न ही उनके पोषण के बिना हम ज्ञान, बल व शक्ति अर्जित कर सकते हैं। संसार का यह समस्त ज्ञान परमात्मा का ही है। परमात्मा ने ही इस सृष्टि को बनाया है और हमें व संसार के सभी प्राणियों को माता-पिता द्वारा जन्म दिया है। सभी सुख के साधन भी परमात्मा के द्वारा हमारे लिए बनायें गये हैं। हमें इन साधनों का आवश्यकतानुसार त्यागपूर्वक उपयोग करने का ही अधिकार है। हमारा अपना, यहां तक की हमारा शरीर भी, हमारा नहीं है। यह ईश्वर व हमारे माता-पिता की हमें निःस्वार्थ देन व भेंट हैं। हमें इन सबके प्रति हमेशा कृतज्ञ रहना है। जो ऐसा नहीं करता वह मनुष्य कहलाने योग्य नहीं होता।इसी का अनुसरण करते हुए हमे भी अपने हक में से परिवार में अपने से छोटो को देते रहना चाहिए।छणिक सुख के लिए हम जीवन भर कितना सामान ढोते फिरते हैं, जबकि सब कुछ यही पड़ा रहा जायेगा।लघु कथा पढ़े।कमल और उसकी पत्नी के दो बच्चे थे,कमल और उसकी पत्नी ने जीवन भर स्वयं पर खर्च नही किया।और अपने बच्चों के लिए मकान ,और कुछ धन एकत्रित किया।इनके बच्चे बड़े होकर अपने अपने परिवार में खुश रहने लगे।बच्चे माता पिता का ध्यान केवल लोक लिहाज के हिसाब से रखते थे।उनके माता पिता अंदर से दुख अनुभव करते थे।फिर समय आने पर पहले पिता की ,फिर माता की म्रत्यु हो गयी।बड़ा पुत्र अत्यंत समझदारी की बाते करता था।सब उसे अच्छा मानते थे किंतु उसके कार्य ऐसे थे कि लोगो के अंतर्मन में उसकी छवि दिखावा वाली थी। पिता की संपत्ति के बंटवारे में बड़े भाई ने अपनी सोच और इच्छा को इतना संकीर्ण कर लिया कि छोटे भाई के मन मे उसके प्रति घृणा के भाव बन गए।हम सबको चिंतन करना चाहिए, कि कही हम भी तो जीवन मे ऐसा व्यवहार नही करतें।यही स्थिति हम सब की है परमात्मा हमारे माता पिता है,उन्होंने कितना कुछ हमें निशुल्क दिया,फिर भी हम दूसरों को देते समय बराबरी का भाव रख कर अपने को महान बताने का पर्यास करते हैं।
जय जय श्री राधेकृष्ण।श्री हरि आपका कल्याण करें।



Most of us try to look good, and speak such nice and knowledgeable things to show that the person in front of us thinks we are very good or gentlemanly. Whereas the reality is far from this. Because our words and actions There is a lot of difference. Good people at heart never argue with anyone to show that they are better. To become good, one has to follow many limits. But we consider what is in our interest as appropriate and consider it to be the best. .

जीवन मे देने वाला सदैव महान होता है।परमात्मा ने असंख्य पदार्थ हमे निशुल्क दिए हैं।जो हमारे पास है, यदि हमें जरूरत नही है, तो उसे जरूरतमंद को जरूर देना चाहिए।स्वयं के पास से देते रहना या अपने हक में से अपने परिवार के लिए छोड़ना,या सदैव दुसरो की मदद करना,अपनी इच्छाओं का त्याग है।जिसने अपनी इच्छाओं का त्याग कर दिया,उससे उत्तम संसार मे कुछ भी नही।इच्छाओं के त्यागने से संतुष्टि का भाव उतपन्न होता है, और सन्तुष्ट मनुष्य विपरीत परिस्थितियों में धैर्य ,साहस और विश्वास नही छोड़ता। जीवन मे बिना किसी की सहायता के कोई भी जीवित नही रह सकता।ठीक इसी प्रकार बिना माता-पिता की सहायता के हमारा जन्म नहीं हो सकता और न ही उनके पोषण के बिना हम ज्ञान, बल व शक्ति अर्जित कर सकते हैं। संसार का यह समस्त ज्ञान परमात्मा का ही है। परमात्मा ने ही इस सृष्टि को बनाया है और हमें व संसार के सभी प्राणियों को माता-पिता द्वारा जन्म दिया है। सभी सुख के साधन भी परमात्मा के द्वारा हमारे लिए बनायें गये हैं। हमें इन साधनों का आवश्यकतानुसार त्यागपूर्वक उपयोग करने का ही अधिकार है। हमारा अपना, यहां तक की हमारा शरीर भी, हमारा नहीं है। यह ईश्वर व हमारे माता-पिता की हमें निःस्वार्थ देन व भेंट हैं। हमें इन सबके प्रति हमेशा कृतज्ञ रहना है। जो ऐसा नहीं करता वह मनुष्य कहलाने योग्य नहीं होता।इसी का अनुसरण करते हुए हमे भी अपने हक में से परिवार में अपने से छोटो को देते रहना चाहिए।छणिक सुख के लिए हम जीवन भर कितना सामान ढोते फिरते हैं, जबकि सब कुछ यही पड़ा रहा जायेगा।लघु कथा पढ़े।कमल और उसकी पत्नी के दो बच्चे थे,कमल और उसकी पत्नी ने जीवन भर स्वयं पर खर्च नही किया।और अपने बच्चों के लिए मकान ,और कुछ धन एकत्रित किया।इनके बच्चे बड़े होकर अपने अपने परिवार में खुश रहने लगे।बच्चे माता पिता का ध्यान केवल लोक लिहाज के हिसाब से रखते थे।उनके माता पिता अंदर से दुख अनुभव करते थे।फिर समय आने पर पहले पिता की ,फिर माता की म्रत्यु हो गयी।बड़ा पुत्र अत्यंत समझदारी की बाते करता था।सब उसे अच्छा मानते थे किंतु उसके कार्य ऐसे थे कि लोगो के अंतर्मन में उसकी छवि दिखावा वाली थी। पिता की संपत्ति के बंटवारे में बड़े भाई ने अपनी सोच और इच्छा को इतना संकीर्ण कर लिया कि छोटे भाई के मन मे उसके प्रति घृणा के भाव बन गए।हम सबको चिंतन करना चाहिए, कि कही हम भी तो जीवन मे ऐसा व्यवहार नही करतें।यही स्थिति हम सब की है परमात्मा हमारे माता पिता है,उन्होंने कितना कुछ हमें निशुल्क दिया,फिर भी हम दूसरों को देते समय बराबरी का भाव रख कर अपने को महान बताने का पर्यास करते हैं। जय जय श्री राधेकृष्ण।श्री हरि आपका कल्याण करें।

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