आज का प्रभु संकीर्तन#।।
हम सभी जानते और कहते हैं कि प्रत्येक कार्य करते समय ईश्वर को सदैव याद रखे।किन्तु परिस्थिति बदलने पर सब भूल जाते है। ज्ञान सतत नहि रहता। इसलिए रोज थोड़ा-थोड़ा सत्संग करो। सत्संग करने से मैल दूर होता है। जीव जन्म के समय तो शुद्ध होता है किन्तु संग का रंग चढ़ने के कारण वह भी उसी की तरह हो जाता है। हम सांसारिक प्राणी केवल अपना हित ही ऊपर रखते है।और अपना हित पाने के लिए अनेक लोग जाने अंजाने अनेतिक कार्य करते है।
सो हमेशा संतों के संग में रहो।
सन्त वह है,जो हर कही सौन्दर्य देखता है किन्तु मन में नहीं लाता। हमेशा प्रभु का ही चिंतन करता है। त्रिलोक का राज्य मिलने पर भी जो भगवान को न भूले,वही सच्चा संत है।
जब तक सांसारिक विषय प्रिय लगे,तब तक तुम संत नहीं बन सकते। मुक्ति के लायक नहीं हो।
जगत में दो मार्ग है – त्याग और समर्पण। जो त्याग मार्ग पर न जा सके उसके लिए समर्पण मार्ग बताया है। त्याग से आशय सभी गैर जरूरी भौतिक वस्तुओं का सेवन छोड़ दो,यदि ऐसा नहीं कर सकते तो स्वयं का परमात्मा के आगे समर्पण कर दो।
महात्माओं ने कहा है – सभी के साथ प्रेम करो पर उनमे आसक्त न हो। सर्व कार्य कृष्णार्पण बुद्धि से करो। अर्थात मै किसी का नहीं हूँ और कोई मेरा नहीं है,ऐसा मानकर सर्वस्व का त्याग करके प्रभु से प्रेम करो।
कायेन वाचा मनसेंद्रियैवा बुद्धयात्मना वा नृसूतस्वभावत।
करोति यद् यत सकलं परस्मै नारायणायेति समर्पयेतत।
शरीर,वाणी,मन,इन्द्रियाँ,बुद्धि तथा स्वभाव से किये जाने वाले सभी कर्मो को
नारायण को समर्पित करना ही सीधा सरल भगवत धर्म है।
इस प्रकार प्रतिक्षण प्रत्येक वृत्ति द्वारा भगवान के चरणकमलों का भजन करनेवाला व्यक्ति,प्रभु की प्रीति,प्रेममयी भक्ति तथा संसार के प्रति वैराग्य और भागवत-स्वरुप का अनुभव-ये सब एक साथ प्राप्त करना है।
आत्मस्वरूप भगवान समस्त प्राणियों में आत्मरूप-नियंतारूप से स्थित है।
जो भक्त, कही भी अधिकता या न्युनत्ता न देखकर सर्वत्र भागवत-सत्ता को ही देखता है,और,”समस्त प्राणी और पदार्थ आत्मस्वरूप भगवानका ही रूप है,भागवत -स्वरुप है”
ऐसा अनुभव करता है,उसे भगवान का परम प्रेमी भक्त मानो। (साभार: अज्ञात)
जय जय श्री राधेकृष्ण जी।श्री हरि आपका कल्याण करें।
Today’s Lord Sankirtan#. We all know and say that always remember God while doing every work. But when the situation changes, everyone forgets. Knowledge does not last forever. That’s why do a little satsang every day. The filth gets removed by doing satsang. A living being is pure at the time of birth, but due to being colored by the company, it also becomes like that. We worldly beings only keep our own interest above. And to get our own interest, many people knowingly or unknowingly commit unethical acts. So always be in the company of saints. A saint is one who sees beauty everywhere but does not bring it to mind. Always thinks of the Lord. The one who does not forget God even after getting the kingdom of Trilok, he is a true saint. As long as worldly subjects are dear, you cannot become a saint. You are not worthy of salvation. There are two ways in the world – renunciation and surrender. For those who cannot go on the path of renunciation, the path of dedication has been shown. Sacrifice means giving up consumption of all unnecessary material things, if you can’t do that then surrender yourself to God. Mahatmas have said – love everyone but don’t get attached to them. Do all work with Krishna’s dedication. That is, I do not belong to anyone and no one is mine, believing that by renouncing everything, love the Lord. Kayen Vacha Manasendriyaiva Buddhayatmana or Nrusutswabhavat. Karoti Yad Yat Saklam Parasmai Narayanayeti Samarpayetat. All actions performed by the body, speech, mind, senses, intellect and nature Surrendering to Narayan is the simple Bhagwat religion. In this way, a person who worships the lotus feet of the Lord with every attitude, love of the Lord, loving devotion and disinterest in the world and the experience of the divine form – all these are to be attained simultaneously. God in the form of self is situated in the form of self-controller in all the living beings. The devotee, who does not see excess or deficiency anywhere, sees the Divine-Existence everywhere, and “all beings and matter are the form of God as self, are Bhagwat-Swaroop”. One who feels like this, consider him as the supreme loving devotee of God. (Credits: Unknown) Jai Jai Shri Radhekrishna ji. May Shri Hari bless you.
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