“अनन्यचेताः सततं यो मां स्मरति नित्यशः।
तस्याहं सुलभः पार्थ नित्ययुक्तस्य योगिनः।।”
(श्रीमद्भगवद्गीता, ८/१४)
“हे अर्जुन! जो अनन्य भाव से निरन्तर मेरा स्मरण करता है उसके लिए मैं सुलभ हूँ, क्योंकि वह मेरी भक्ति में प्रवृत्त रहता है।
हरि दुरलभ नहिं जगत में, हरिजन दुरलभ होय ।
हरि हेर्याँ सब जग मिलै, हरिजन कहिं एक होय ॥
हरि से तू जनि हेत कर, कर हरिजन से हेत ।
हरि रीझै जग देत हैं, हरिजन हरि ही देत ॥
संसार में भगवान् दुर्लभ नहीं हैं, प्रत्युत उनके शरणागत भक्त दुर्लभ हैं। कारण कि भगवान् को ढूँढ़ें तो वे सब जगह मिल जायँगे, पर भगवान् का प्यारा भक्त कहीं-कहीं ही मिलेगा । भगवान् प्रसन्न होकर मनुष्य-शरीर देते हैं तो उस शरीर से जीव नरकों में भी जा सकता है; परन्तु भक्त तो भगवान् की ही प्राप्ति कराता है । भक्त का संग करनेवाला नरकों में नहीं जा सकता ।
परम् सिद्धि किसे प्राप्त होती है?
“मामुपेत्य पुनर्जन्म दु:खालयमशाश्र्वतम् ।
नाप्नुवन्ति महात्मानः संसिद्धिं परमां गताः ।। आब्रह्मभुवनाल्लोकाः पुनरावर्तिनोअर्जुन |
मामुपेत्य तु कौन्तेय पुनर्जन्म न विद्यते।।”
(श्रीमद्भगवद्गीता, ८/१५ – १६)
“मुझे प्राप्त करके महापुरुष, जो भक्ति योगी हैं, कभी भी दुखों से पूर्ण इस अनित्य जगत् में नहीं लौटते, क्योंकि उन्हें परम सिद्धि प्राप्त हो चुकी होती है।
इस जगत् में सर्वोच्च लोक से लेकर निम्नतम सारे लोक दुखों के घर हैं, जहाँ जन्म तथा मरण का चक्कर लगा रहता है। किन्तु हे कुन्तीपुत्र! जो मेरे धाम को प्राप्त कर लेता है, वह फिर कभी जन्म नहीं लेता।”
“He who always remembers Me with an exclusive mind. I am easily accessible to him, O Arjuna, the ever-steadfast Yogi. (Srimad Bhagavad Gita, 8/14)
“O Arjuna! I am accessible to the one who constantly remembers Me with exclusive devotion, because he is engaged in my devotion.
Hari is not rare in the world, Harijan is rare. Hari Hariyan all the worlds are found, Harijans are the same. Do you want to be born with Harijan, and do good to Harijan. Hari Rizhai gives the world, Harijan Hari only gives.
The Lord is not rare in the world, but the devotees who take refuge in Him are rare. Because if you search for the Lord, you will find him everywhere, but the beloved devotee of the Lord will be found somewhere. If the Lord is pleased and gives a human body, then from that body the soul can go to hell; But the devotee makes attainment of God only. One who associates with a devotee cannot go to hell.
Who attains the supreme perfection?
“Having attained Me, rebirth is an eternal abode of misery. The great souls who have attained the supreme perfection do not attain it. The worlds of the Abrahma world are recurring, O Arjuna But having attained Me, O Arjuna, there is no rebirth. (Srimad Bhagavad Gita, 8/15 – 16)
“By attaining Me, great men, who are bhakti yogis, never return to this impermanent world full of miseries, because they have attained the ultimate perfection. In this world, from the highest to the lowest, all the worlds are houses of misery, where the cycle of birth and death keeps happening. But O son of Kunti! One who attains my abode, never takes birth again.”