भक्ति की यात्रा बाहर से शुरु होकर
भीतर मुड़ती है और ज्ञान की यात्रा आत्म-चितंन से , माने भीतर से ही शुरु होकर भीतर ही ख़त्म हो जाती है !
ज्ञानी आत्मा से शुरु होता है ! वह चितंन करता है , खोज करता है कि आत्मा कौन है ? मै कोन हूँ ? मेरा अस्तित्व क्या है ? मै शरीर हूँ , मन हूँ या बुद्धि हूँ ?
कौन हूँ मै ?
जब वह अपनी ‘ मै ‘ को ढूँढने निकलता है , तो ढूँढते फिर इसी ‘ मै ‘ में ब्रह्म को खोज लेता है !
भक्त जो है , वह भीतर से शुरु
नही होता ! भक्त की शुरुआत तो बाहर से शुरु होती है ! जैसे मीरा बाहर से शुरु हुई क्योंकि वह समझती थी , कृष्ण बाहर है , गोबिन्द बाहर है , ठाकुर जी के पास जाना है ! ठाकुर जी के दर्शन करने है ! जैसे -जैसे प्रेम मार्ग में उसकी तरक़्क़ी होती गई, वैसे-वैसे वह अन्तर्मुखी होती गई , समझ आने लगी कि जिसको बाहर ढूँढती थी वह तो भीतर ही विराज मान था ! प्रेम दिवानी तो मीरा पहले भी थी ! मस्तानी तो वह पहले से ही थी ! भाव समाधि के बाद उसे अब भीतर उतरने की जुगत मिल गई थी ! भीतर ही डूबे रहने के लिए फिर से तड.प उठने लगी मन में ! घर वाले तो नाराज़
हो गए थे , उन्होंने राजमहल में आने से मना कर दिया था !
मीरा के लिए यह परिस्थिति एक वरदान हो गई ! एकतारा उठाया वृंदावन जा पहुँची ! कोई नाराज़गी नही घर वालों के प्रति !
निंदा करने वाला तो मेरे मन से पाप की , अभिमान की मैल को दूर करता है ! निंदा करने वाला तो बड़ी कृपा करता है !
प्रेम की प्यासी मीरा अपने प्रियतम को मिले बिना नही रुकी ! अगर तुम भी प्रभु के प्रेम के प्यासे हो , तो उससे मिले बिना रुकना मत !
तलाश जारी रखना, छोड़ना नही, साधना जारी रखना , ध्यान जारी रखना सिमरन जारी रखना , उसे छोड़ मत देना ! अपनी मंज़िल तक ना पहुँचने के पहले अगर तुम रुक गए तो समझ लो , फिर ज़िंदगी तुम्हारी बेकार गई , क्या मिला फिर !
The journey of devotion starts from outside It turns within and the journey of knowledge begins with self-contemplation, it means that it starts from within and ends within!
The wise begins with the soul! He contemplates, searches who is the soul? Who am I? what is my existence Am I body, mind or intellect? who am i When he sets out to find his ‘I’, then while searching he finds Brahma in this ‘I’! What a devotee is, starts from within Doesn’t happen! The beginning of a devotee starts from outside. Like Meera started from outside because she understood, Krishna is outside, Gobind is outside, she has to go to Thakur ji! Have to visit Thakur ji! As she progressed in the path of love, in the same way she became introverted, she started to understand that the one whom she was looking for outside, was supposed to be sitting inside! Meera was crazy about love earlier too! Mastani was already there! After Bhav Samadhi, he had now got the chance to get inside! To stay immersed inside again, the yearning started rising in the mind! family members are angry
Had happened, he had refused to come to the palace! This situation became a boon for Meera. Picked up Ektara and reached Vrindavan! No resentment towards the family members! The one who criticizes removes the filth of sin and pride from my mind! The one who criticizes does a lot of kindness! Thirsty for love, Meera did not stop without meeting her beloved! If you are also thirsty for the Lord’s love, don’t stop without meeting Him!
Keep on searching, don’t give up, keep on practicing, keep on meditating, keep on chanting, don’t give up! If you stop before not reaching your destination, then understand, then your life has gone in vain, what have you got then!