अगर हमें सदा ही परम आनन्दित रहना है; तो फिर मोहसे सावधान रहना है! क्योंकि यह मोह ही सकल व्याधियोंकी मूल (जड़) है।
इसीलिये ही काकभुशुण्डिजी ने कहा है –
मोह सकल ब्याधिन्ह कर मूला। तिन्ह ते पुनि उपजहिं बहु सूला।।
इस मोहका अर्थात् अज्ञान और ज्ञान का निर्णय करनेवाला विवेक भी इसी मनुष्य शरीरमें ही होता है; क्योंकि ज्ञान-वैराग्य रूपी भक्ति भी इसी मनुष्य शरीरसे ही सम्भव हो सकती है। यह मनुष्य शरीर ही हम सभी को स्वर्ग या नरक में पहुँचाने के लिये एक सीढ़ी के समान ही होता है, इस मनुष्ययोनिको छोड़कर और सभी प्रकारकी योनियाँ केवल भोग योनियाँ ही कही जाती हैं।
इसीलिये काकभुशुण्डिजी भी कहते हैं –
नर तन सम नहिं कवनिउ देही। जीव चराचर जाचत तेही।।
नरक स्वर्ग अपबर्ग निसेनी। ग्यान बिराग भगति सुभ देनी।।
If we are to be eternally blissful; Then you have to be careful! Because this attachment is the root of all diseases. That is why Kakbhushundiji has said – Mohd gross marriage tax root. Tinh te puni upjahin bahu sula. This illusion, that is, the conscience, which decides ignorance and knowledge, is also in this human body; Because devotion in the form of knowledge and dispassion can be possible only from this human body. This human body is like a ladder to take all of us to heaven or hell, except this human yoni and all types of yonis are called only bhog yonis. That is why Kakbhushundiji also says – Male tan sam nahin kavaniu dehi. Only when the creatures are alive. Hell Heaven Upberg Nisseni. Gyan birag bhagati good luck.