नाम धार कर मौन हो जन राधे भगवान ;*
बीज गुप्त रह भूमि मे बनता वृक्ष महान !
एकदा एक बालक ने श्रद्धेय स्वामी श्री रामसुखदास जी महाराज से पूछा – आपको भगवान के दर्शन हुए हैं क्या ?
जवाब देते हुए तर्क की मुद्रा में श्री स्वामी जी महाराज बोले – तुम अपना खजाना बताते हो क्या ?
बालक समझ भी नहीं पाया और बोल भी नहीं पाया कि अब क्या कहना चाहिये ?फिर किसी ने बालक को वहीं रोक दिया !
श्री रामसुखदास जी महाराज का कहना है कि जब लोग अपने लौकिक धन को भी (हरेक को) बताना नहीं चाहते ;बताने योग्य नहीं समझते तो फिर अलौकिक धन पारमार्थिक खजाना क्या बताने योग्य है ?अर्थात् हरेक को बताने योग्य नहीं है
लोगों को अगर कह दिया जाय कि हाँ मेरे को भगवान के दर्शन हुए हैं तो लोगों के जँचेगी नहीं उल्टे तर्क पैदा होगा दोषदृष्टि करेंगे (इससे उनका ही नुकसान होगा) लोगों को बताने से विघ्न बाधाएँ भी आती है !
सेठ श्री जयदयाल जी गोयन्दका ने कहा है कि भक्त प्रह्लाद की भक्ति में इतनी बाधाएँ इसलिये आयीं कि उन्होंने भक्ति को (लोगों के सामने) प्रकट कर दिया था अगर प्रकट न करते तो इतनी बाधाएँ नहीं आतीं !
सेठ जी ने भी गुप्त रीति से ही साधन किया और सिद्धि पायी !
चूरू की हवेली के ऊपर कमरे में उनको चतुर्भुज भगवान विष्णु के दर्शन हुए थे !
श्री रामसुखदास जी महाराज ने वहाँ पधार कर वह जगह बताई थी कि यहाँ सेठ जी को भगवान के दर्शन हुए थे !
सेठ जी मुँह पर चद्दर ओढ़े सो रहे थे उस समय भगवान ने दर्शन दिये !
ऊपर चद्दर ओढ़ी होने पर भी भगवान दिखलायी कैसे पड़ रहे हैं ?उन्होंने चद्दर हटा कर देखा तो भगवान वैसे ही दिखाई दिये जैसे चद्दर के भीतर से (साफ) दीख रहे थे बीच में चद्दर की आड़ होने पर भी भगवान के दीखने में कोई फर्क नहीं पड़ा ऐसे चाहे बीच में पहाड़ भी आ जाय तो भी भगवान के दीखने में कोई फर्क नहीं पड़ेगा !