प्रभु की भक्ति चाहे कितने कष्ट, कठिनाइयां, निन्दा तथा हानि सहन करने पर प्राप्त हो तो सस्ता सौदा समझो क्योंकि उसमें जो आनन्द निहित है, वह अमूल्य है।
ज़रा सोचो तो सही कि वह कौन सी महान शक्ति है जिसके बल पर तुम इतने बड़े-बड़े काम कर रहे हो? तुम्हारे इस निर्बल शरीर से तो यह काम होने असम्भव हैं।
वह शक्ति सद्गुरु की कृपा से गुप्तरूप से तुम्हारे अंदर काम कर रही है इसलिए तुम्हें सदगुरु का आभारी होना चाहिये और हर समय उनकी सेवा-पूजा में सलंग्न रहना चाहिये।
आंखों से प्रतिदिन देखते हो और कानों से सुनते हो कि सन्सारी लोग क्षणभंगुर सुख के लिए सिर भी देने से नहीं टलते, तुम उनसे शिक्षा ग्रहण करो कि भक्ति जो स्थायी सुख है उस पर अपना सर्वस्व न्यौछावर करना पड़े तो भी कम है।
जब तुम्हारे भीतर मन का राज्य था तब तुममें न कुर्बानी थी, न सच्चा प्रेम था, न नम्रता थी, न विश्वास था। एक पाई की हानि भी असहनीय थी-थोड़ी -थोड़ी बात के लिए क्रोध आकर अधिकार जमा लेता था और मोह व लोभवश तुम सदैव चिन्तातुर रहते थे।
अब परमात्मा ने आत्मिक धन प्रदान किया है तो तुम्हारी दशा और की और हो गई है, अब सन्सार को धर्मशाला समझते हो।
शारीरिक सुखों को सदगुरु की कृपा पर न्यौछावर करते हो। कोई कम-अधिक बोले तो इधर से सुना और उधर से निकाला। भय के स्थान पर निर्भयता ने वास किया।
इससे यह प्रकट होता है कि तुम्हारे अंदर निर्भीक सद्गुरुदेव का राज्य है जो तुममें बैठकर आत्मिक शक्ति व नित्य आनन्द से परिपूर्ण कर रहे हैं ।
वे ही आनन्द की खान हैं। सदैव उनकी कृपा के आभारी रहो और उनकी महिमा गायन करो।
No matter how much suffering, hardships, condemnation and loss you get, then consider the devotion of God as a cheap deal because the joy contained in it is priceless.
Just think, what is that great power on whose strength you are doing such great things? This work is impossible to do with this weak body of yours.
That power is secretly working within you by the grace of Sadguru, so you should be grateful to Sadguru and be engaged in his service-worship all the time.
Everyday you see with your eyes and hear with your ears that worldly people do not shy away from giving their heads for fleeting happiness, you should learn from them that even if you have to sacrifice everything for devotion which is permanent happiness, it is less.
When there was a kingdom of mind within you, there was neither sacrifice, nor true love, nor humility, nor faith in you. Even the loss of a pie was unbearable – for every little thing, he used to get angry and take possession and you were always worried due to attachment and greed.
Now that God has given you spiritual wealth, your condition has become worse, now you consider the world as a hospice.
You sacrifice physical pleasures on the grace of Sadguru. If someone spoke more or less, he listened from here and removed from there. Fearlessness resided in the place of fear.
This shows that inside you is the kingdom of the fearless Sadgurudev who is filling you with spiritual strength and eternal joy by sitting in you.
He is the source of joy. Always be grateful for His grace and sing His glory.