प्रेम पाना नहीं चाहता प्रेम देना जानता है। प्रभु प्राण नाथ के प्रेम में भक्त मिट जाना चाहता है। प्रेम शब्दों से परे हैं प्रेम मौन है
प्रभु प्राण नाथ के भाव मे भक्त दिन और रात को भुल जाता है। प्रेम दिपक और आरती से ऊपर है। क्योंकि प्रभु प्रेमी एक पल के लिए भी अपने स्वामी से दूर नहीं रहता है। उसका हर भाव परमात्मा से प्रारम्भ होकर परमपिता परमात्मा में सिमट जाता है।
यही प्रेम की रीत हैं। भगवान मे गहरे ढुबते है तब ह्दय में प्रभु प्रेम उमङ आता है नैन नीर बहाते हैं ।दर्द को हम खामोश पी लेते हैं। पर प्रभु प्राण नाथ का प्रेम बङी अनुठी भक्ति पर झलकता है। जिसने इस रस को पीया वो मालामाल हुए।
हे मेरे भगवान् हे मेरे स्वामी हे परम पिता परमात्मा तुम मेरी ओर नजर कब करोगे ।मेरे भगवान मेरे तो सब कुछ आप ही हो ।मेरे प्रभु तुम चाहो तो मुझे प्रेम से सरोबर करो तुम नहीं चाहोगे तो तेरे विरह वेदना में तङफ लेगे हम।
प्रेम ही प्रभु का विधान है वा प्रेम ही भक्ति है। तुम जीते हो ताकि तुम प्रेम करना सीख लो। तुम प्रेम करते हो ताकि तुम जीना सीख लो। जब तक ऐसा अखण्ड प्रेम तुम्हारे अंदर पैदा नहीं होगा तुम प्रभु के भक्त या प्रेमी हो ही नहीं सकते।
प्रेम एक दीवानगी है , प्रेम एक सम्मोहन है , प्रेम वह अमृत है जिसे पीने के लिए प्रभु भी अपने भक्त के दीवाने हो उसके आगे पीछे घूमते हैं, जिस दिन से तुम्हारे दिल में ऐसा प्रेम पैदा हो जाएगा उसी दिन से तुम्हारे जीवन में ना कोई समस्या बचेगी ना ही कोई शिकायत। ना तुम्हे ये बताने की जरूरत रह जाएगी कि मैं भगवान का बहुत बड़ा भक्त हूं। प्रेम भक्त और भगवान के बीच का अन्तर समाप्त कर दोनों को एकाकार कर देता है।
इश्क का बहुत बड़ा लोकतंत्र हैं। प्रभु प्रेम के बैगर इश्क नहीं होता। प्रेम की गलियां बहुत संकरी भी है और बहुत बड़ा जाल बिछा हुआ है। जो हर पल प्रेमी को झुलाता है। पल पल याद दिलाता है। तङफ जब बढ जाती है। तब आन्नद की वर्षा होती है। पर हम जैसो को तङफन में आन्नद आता है। तङफ जैसी कोई दवा नहीं। तङफ दिल के तार झंकारती है।
बारिश के बाद इन हवाओं का यूँ मचल के चलना
अपने कन्हैया से मिल कर गोपियां इतराई हो जैसे
दिल में मिलन की तङफ को बढा जाता है। अ हवाओ तुम आंचल में स्वामी की महक समेट कर लाती तो दिल को कुछ सकुन मिल जाता। जय श्री राम अनीता गर्ग