प्रेम से वंचित व्यक्ति अस्तित्व के केंद्र से पृथक होकर अकेला जीता है। प्रेम के बिना हर कोई अकेला इकाई है, अपने जैसे दूसरे लोगों के साथ भी किसी तरह का संबंध से वंचित।
आज, मनुष्य स्वयं को पूर्णत अकेला पाता है। हम सब एक-दूसरे के प्रति अपने द्वार बंद किए हुए हैं, और अपने ही भीतर कैद हैं। यह ऐसे है जैसे हम किसी कब्र में हों। जीवित होकर भी व्यक्ति एक लाश है।
जब व्यक्ति अपनी नसों में बहते हुए प्रेम के उस बहाव को महसूस नहीं कर सकते, और यदि हृदय में प्रेम ने धड़कना बंद कर दिया है, तब भलीभांति समझ जाना चाहिए कि वास्तव में अमुक व्यक्ति जीवित ही नहीं है।
मनुष्य के भाषाकोश जो शब्द बहुमूल्य है, वह प्रेम है, और प्रेम ही ईश्वर है। प्रेम की किरण पर सवार होकर व्यक्ति ईश्वर के संबुद्ध राज्य में प्रवेश पा जाता है।
यह कहना बेहतर है कि प्रेम ईश्वर है, बजाय यह कहने के कि सत्य ईश्वर है, क्योंकि सामंजस्य, सौन्दर्य, जीवन ऊर्जा और आनंद जो कि प्रेम का हिस्सा हैं, सत्य का हिस्सा नहीं हैं।
सत्य को केवल जानना होता है; प्रेम को जानना और महसूस दोनों करना होता है। प्रेम का विकास और पूर्णता ईश्वर के साथ परम मिलन में ले जाने की दिशा देतें है।
प्रेम का अभाव सबसे बड़ी दरिद्रता है। जिस व्यक्ति ने अपने प्रेम करने की क्षमता को विकसित नहीं किया है वह अपने स्वयं के बनाए नर्क में जीता है।
जो व्यक्ति प्रेमपूर्ण है स्वर्ग में जीता है। हम व्यक्ति को एक अद्भुत और अद्वितीय वृक्ष की तरह देख सकते हैं, एक ऐसा वृक्ष जो अमृत और विष दोनों देने की क्षमता रखता है।
यदि व्यक्ति घृणा में जीता है तो वह विष की फसल काटता है; यदि वह प्रेम से जीता है तो वह अमृतरस से भरपूर फसल को बटोरता है। ।। जय जय श्री सीताराम ।।
A person deprived of love lives alone, separated from the center of existence. Without love everyone is a lonely entity, deprived of any connection even with others like oneself.
Today, man finds himself completely alone. We are all closed to each other, and imprisoned within ourselves. It’s as if we are in a tomb. Even though alive, a person is a corpse.
When a person cannot feel that flow of love flowing in his veins, and if love has stopped beating in the heart, then it should be understood very well that in reality a certain person is not alive.
The most valuable word in the human dictionary is love, and love is God. By riding on the ray of love a person enters the enlightened kingdom of God.
It is better to say that love is God than to say that truth is God, because harmony, beauty, life energy and joy which are part of love are not part of truth.
Truth simply has to be known; Love has to be both known and felt. The development and perfection of love leads to ultimate union with God.
Lack of love is the greatest poverty. The person who has not developed his capacity to love lives in a hell of his own making.
The person who is loving lives in heaven. We can see the individual as a wonderful and unique tree, a tree that has the ability to give both nectar and poison.
If a person lives in hatred he reaps the harvest of poison; If he lives with love he gathers a harvest rich in nectar. , Jai Jai Shri Sitaram.