एक संत थे ……..
वे अपने ठाकुर “श्रीगोपीनाथ” की तन्मय होकर सेवा-अर्चना करते थे।
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उन्होंने कोई शिष्य नहीं बनाया था परन्तु उनके सेवा-प्रेम के वशीभूत होकर कुछ भगवद-प्रेमी भक्त उनके साथ ही रहते थे।
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कभी-कभी परिहास में वे कहते कि -“बाबा ! जब तू देह छोड़ देगो तो तेरो क्रिया-कर्म कौन करेगो?”
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बाबा सहज भाव से उत्तर देते कि -“कौन करेगो? जेई गोपीनाथ करेगो ! मैं जाकी सेवा करुँ तो काह जे मेरो संस्कार हू नाँय करेगो !”
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समय आने पर बाबा ने देह-त्याग किया। उनके दाह-संस्कार की तैयारियाँ की गयीं। चिता पर लिटा दिया गया।
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अब भगवद-प्रेमी भक्तों ने उनके अति-प्रिय, निकटवर्ती एक किशोर को अग्नि देने के लिये पुकारा तो वह वहाँ नहीं था…
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कुछ लोग उसे बुलाने गाँव गये परन्तु वह न मिला, इसके बाद दूसरे की खोज हुयी और वह भी न मिला।
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संध्या होने लगी थी, लोग प्रतीक्षा कर रहे थे कि वह किशोर शीघ्र आवे तो संस्कार संपन्न हो।
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अचानक प्रतीत हुआ कि किसी किशोर ने चिता की परिक्रमा कर उसमें अग्नि लगा दी।
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बाबा की देह का अग्नि-संस्कार होने लगा।
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दाह-संस्कार करने वाले को श्वेत सूती धोती और अचला [अंगोछा] धारण कराया जाता है..
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सो भगवद-प्रेमियों ने उनके निकटवर्ती किशोर का नाम लेकर पुकारा ताकि उसे वस्त्र दिये जा सकें।
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किन्तु वह किशोर तो वहाँ था ही नहीं। सब एकत्रित हुए, आपस में पूछा कि किसने दाह-संस्कार किया परन्तु किसी के पास कोई उत्तर न था।
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संभावना व्यक्त की गयी कि कदाचित वायुदेव ने इस कार्य में सहायता की सो उन श्वेत वस्त्रों को उस चिता में ही डाल दिया गया। सब लौट आये।
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प्रात: ठाकुर श्रीगोपीनाथ का मंदिर, मंगला-आरती के लिये खोला गया और क्या अदभुत दृष्य है !
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ठाकुर गोपीनाथ श्वेत सूती धोती को ही धारण किये हुए हैं और उनके कांधे पर अचला पड़ा है, इसके अतिरिक्त अन्य कोई वस्त्र अथवा श्रंगार नहीं है। नत-मस्तक हो गये सभी।
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भक्त और भगवान ! कैसा अदभुत प्रेम ! कैसा अदभुत विश्वास ! एक-दूसरे को कैसा समर्पण ! जय हो-जय हो से समस्त प्रांगण गुँजायमान हो गया।
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हे मेरे श्यामा-श्याम ! दास की भी यही आपसे प्रार्थना है। दास के पास देने को वैसा प्रेम और समर्पण तो नहीं है परन्तु आप तो सर्व-शक्तिमान और परम कृपालु प्रेमी हैं..
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और दास का प्रेम-समर्पण भले ही न हो परन्तु विश्वास में तो आपकी कृपा से कोई न्यूनता नहीं है। तो हे प्रभु ! समय आने पर एक बार फ़िर…!!
🙏श्रीनिताईगौरहरि बोल🙏🏻
There was a saint ……..
He used to worship his Thakur “Shrigopinath” with devotion. , He had not made any disciples, but due to his love for service, some God-loving devotees lived with him. , Sometimes in ridicule he would say – “Baba! When you leave the body, who will do your rituals?” , Baba would easily answer that – “Who will do it? Jee Gopinath will do it! If I do Jaki service, then why should I do my sanskar? , When the time came, Baba renounced the body. Preparations were made for his cremation. was laid on the pyre. , Now when the Lord-loving devotees called to their dearest, a teenager nearby to give fire, he was not there… , Some people went to the village to call him but he could not be found, after that another search was done and he too was not found. , Evening was starting, people were waiting for that teenager to come soon so that the rituals would be completed. , Suddenly it appeared that a teenager revolved around the pyre and set fire to it. , Agni-sanskar of Baba’s body started. , The person performing the cremation is made to wear a white cotton dhoti and achala [trowel]. , So the God-lovers called the teenager near him by name so that clothes could be given to him. , But that teenager was not there at all. Everyone gathered, asked among themselves who performed the cremation but no one had any answer. , The possibility was expressed that perhaps Vayudev helped in this work, so those white clothes were thrown in that pyre itself. Everyone returned. , In the morning the temple of Thakur Shrigopinath was opened for Mangla-Aarti and what a wonderful sight! , Thakur Gopinath is wearing only a white cotton dhoti and is lying on his shoulder, apart from this there is no other clothes or adornment. Everyone bowed their heads. , devotee and God ! What a wonderful love! What a wonderful belief! What a dedication to each other! The whole courtyard resonated with Jai Ho-Jai Ho. , Oh my shyam and shyam! Das also has the same prayer for you. The servant does not have that much love and dedication to give, but you are the almighty and most merciful lover. , And the slave’s love-surrender may not be there, but in faith there is no less than your grace. So Lord! Once again when the time comes…!!
SrinitaiGourhari Bol