।।श्रीहरिः।।
ताज बीबी गुसाईं जी का सत्संग भी सुनने के लिए आया करती थी। वह सत्संग में जिस लीला का श्रवण करती उसी के चिंतन में डूबी रहती। अब ताज बीबी का हृदय श्री कृष्ण विरह में जलने लगा और वह श्री कृष्ण के दर्शन के लिए रोती रहती। ताज बीबी की वेश भूषा भी बदल गयी थी।
एक दिन बादशाह अकबर आगरा आया। आगरा में अकबर की दूसरी पत्नियों ने अकबर से ताज बीबी की शिकायत की कि “ताज बीबी बिलकुल बदल चुकी है, उसकी वेश भूषा भी बदल गयी है। कलमा- कुरान छोड़कर श्री कृष्ण का चित्र हृदय से लगाए रोती रहती है। सदैव कृष्ण-कृष्ण जपती रहती है। उसका खान-पान भी बदल गया है। आप ताज बीबी का ध्यान दीजिये वरना कल को बदनामी होगी।”
बादशाह अकबर ने जब रानियों से ताज बीबी का विवरण सुना तो वे हृदय से बहुत प्रसन्न हुए। अकबर ने ताज बीबी को कुछ नहीं कहा और किसी चीज़ के लिए रोका नहीं। ताज बीबी की दासी ने ताज बीबी को बताया की “आपके विरोध में समस्त रानियां अकबर आपकी शिकायत कर रही हैं।” ताज बीबी ने किसी को कुछ नहीं कहा और अपने इष्ट श्री कृष्ण से प्रार्थना करने लगी –
सुनो दिल जानी मेरे दिल की कहानी तुम, हुस्न की बिकानी बदनामी भी सहूँगी मैं।
देव पूजा ठानी हौं निवाज हूँ भुलानी तजे, कलमा कुरान सारे गुनन गहूँगी मैं॥
श्यामला सलोना सिरताज सिर कुल्ले दिये, तेरे नेह दाग में निदाग है दहूँगी मैं।
नन्द के कुमार कुरवान ताणी सूरत पै, हौं तो मुगलानी हिन्दुआनी है रहूँगी मैं॥
ताज बीबी अब हर समय श्री कृष्ण से ब्रजवास के लिए प्रार्थना करने लगी। महल में न कोई सत्संग था, न कीर्तन, इसलिए ताज बीबी दुखी रहने लगी। उसे ब्रज के मंदिर और संतों की याद आने लगी। ताज बीबी का खाना भी कम हो गया जिससे उसका शरीर कमज़ोर होने लगा। एक दासी ने ताज बीबी की इस अवस्था के बारे में अकबर को बताया। अकबर ताज बीबी के पास आया और उससे पूछने लगा “तुम बहुत दिनों से दुखी रहती हो और रोती रहती हो, तुम्हें किस बात का दुःख है ?”
ताज बीबी ने कहा “मुझे वृन्दावन वास करना है, जहाँ नित्य सत्संग प्राप्त होगा और संतो के दर्शन होंगे।”
अकबर ने कहा “तुम्हारे हृदय में श्री कृष्ण भक्ति है, जो बड़े भाग्य से किसी-किसी को ही प्राप्त होती है, तुम चिंता मत करो, मैं वृन्दावन में तुम्हारे रहने की व्यवस्था करा दूंगा, तुम जाओ और वृन्दावन वास करो।”
ताज बीबी वृन्दावन आ गयी और एक कुटिया में रहने लगी। उस समय वृन्दावन में श्री गोविंददेव जी का मंदिर प्रसिद्ध था। ताज बीबी को श्री गोविंददेव जी के दर्शन करने की इच्छा थी लेकिन अपने को म्लेच्छ मानकर वह मंदिर के भीतर नहीं जाती थी । यद्यपि ताज बीबी को मंदिर में आने पर रोक नहीं थी। ताज बीबी नित्य श्री गोविंददेव मंदिर के द्वार पर चौखट पर प्रणाम कर लौट जाती थी। लेकिन ताज बीबी के हृदय में श्री गोविंददेव जी के दर्शन की इच्छा थी। वह यही विचार करती की “मैं इस म्लेच्छ शरीर से मंदिर के भीतर प्रवेश नहीं कर सकती, श्री गोविंददेव जी के दर्शन नहीं कर सकती। लेकिन ठाकुर जी तो अंतर्यामी हैं, मेरे हृदय की बात जानते हैं, जब वे किसी पुजारी के हृदय में प्रेरणा द्वारा मुझे मंदिर के भीतर बुलाएँगे तो मैं उनके दर्शन का सुख प्राप्त कर पाऊँगी।”
ऐसा विचार कर वह प्रतिदिन मंदिर के द्वार पर आती, चौखट पर प्रणाम करती और अपने कुटिया में लौट आती। ऐसा करते बहुत दिन बीत गए, लेकिन किसी भी पुजारी ने उसे मंदिर के भीतर नहीं बुलाया..!!
क्रमशः