श्रीकृष्ण भक्त ताज बीबी की कथा 3⃣ अंतिम भाग

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।।श्रीहरिः।।


एक दिन ताज बीबी गोविंददेव मंदिर आयी और चौखट पर प्रणाम कर कुछ प्रणय कोप से श्री गोविंददेव जी से कहने लगी “आप तो दया के सागर हैं, फिर मुझसे ऐसी निष्ठुरता क्यों ? क्या मैं आपके दर्शन भी नहीं कर सकती ! तो मैं अब आपके मंदिर कभी नहीं आउंगी और जब तक आप स्वयं आकर दर्शन नहीं देंगे तब तक अन्न जल भी ग्रहण नहीं करूँगी।”

ठाकुर जी से ऐसा कह कर ताज बीबी अपने कुटिया पर लौट आयी। 3 दिन बीत गए ताज बीबी को अन्न जल ग्रहण किये। शरीर कमज़ोर हो गया लेकिन वह श्री कृष्ण का स्मरण कर रोती रही। मध्य रात्रि में ताज बीबी को असह्य पीड़ा होने लगी। उसी समय उसने एक गंभीर वाणी सुनी “ताज, देखो मैं तुम्हारे लिए भोजन और जल लाया हूँ ।”

ताज बीबी ने देखा तो नीला प्रकाश फ़ैल रहा है और उसमे नीलमणि श्री गोविंददेव जी भोजन और जल लिए खड़े हैं। श्री गोविंददेव जी के दर्शन करते ही ताज बीबी को मूर्छा आ गयी। श्री गोविंददेव जी भोजन और जल को वहीँ रख कर अंतर्ध्यान हो गए। जब ताज बीबी की मूर्छा गयी तो वह सोचने लगी की यह कोई स्वप्न था या सत्य। पुरे कुटिया में एक दिव्य सुगंध व्याप्त थी। जब ताज बीबी ने भूमि पर देखा तो वही भोजन की थाल और जल की झारी रखी थी जो ठाकुर जी के हाथों में थी। ताज बीबी समझ गयी की ठाकुर जी सत्य में आये थे। ताज बीबी ने सोचा की मेरे प्रण के कारण ही ठाकुर जी को रात्रि में यहाँ आने का कष्ट करना पड़ा। ताज बीबी बहुत पश्चाताप हुआ। अपने को धैर्य देते हुए ताज बीबी ने ठाकुर जी का प्रसाद ग्रहण किया। प्रसाद का ऐसा स्वाद ताज बीबी ने जीवन में कभी अनुभव नहीं किया था। उसका शरीर रोमांचित होने लगा और हृदय एक नवीन उत्साह से भर गया। ताज बीबी को लीलाओं की स्फूर्ति होने लगी। उन लीलाओं को ताज बीबी पद्य में लिपिबद्ध कर लेती। श्री कृष्ण दर्शन का पद इस प्रकार है –

छैल जो छबीला, सब रंग में रंगीला बड़ा चित्त का अड़ीला, कहूं देवतों से न्यारा है।
माल गले सोहै, नाक मोती सेत जो है कान, कुण्डल मन मोहै, लाल मुकुट सिर धारा है॥
दुष्टजन मारे, सब संत जो उबारे ताज, चित्त में निहारे प्रन, प्रीति करन वारा है।
नन्दजू का प्यारा, जिन कंस को पछारा, वह वृन्दावन वारा, कृष्ण साहेब हमारा है॥

अगले दिन सुबह श्री गोविंददेव जी के मंदिर में पुजारीगण ठाकुरजी के भोग की थाल और जल की झारी खोजने लगे लेकिन वह किसी को भी नहीं मिली। मंदिर के पुजारीगण आश्चर्यचकित थे की मंदिर तो बंद था तो भोग की थाल और जल की झारी कैसे गायब हो सकती है। यहाँ कुटिया में ताज बीबी ने भोग की थाल और जल की झारी को मांज कर दासी के हाथों से मंदिर भिजवा दिया। दासी भोग की थाल और जल की झारी लेकर मंदिर पहुंची तो मंदिर के पुजारी स्तब्ध हो गए। उन्होंने दासी से पूछा की “तुमको भोग की थाल और जल की झारी कैसे मिली” दासी ने कहा “महारानी ताज बीबी ने यह भिजवाया है।”

पुजारीगण ताज बीबी के पास आये और ताज बीबी से पूछने लगे “भोग की थाल और जल की झारी आपके पास कैसे आयी।” ताज बीबी ने सब वृतांत सुना दिया। पुजारीगण ताज बीबी के भाग्य की सराहना करने लगे। यह बात धीरे-धीरे पुरे ब्रज मंडल में फ़ैल गयी। दूर-दूर से लोग ताज बीबी के दर्शनों के लिए आने लगे जिससे ताज बीबी को भजन में विक्षेप होने लगा। कुछ दिन बाद ताज बीबी यमुना पार कर गोकुल महावन चली गयीं और अपने जीवन का शेष समय वहीँ व्यतीत किया।

ताज बीबी ने अनेक पदों की रचना की है जिसमें विनय, रूप माधुरी, ऐश्वर्य, प्रेम, आदि के पद सम्मिलित हैं। उदहारण के लिए –

अल्ला बिसमिल्ला रहिमान और रहीम छोड़, पीर और शहीदों की चर्चा न चलाऊँगी।
सूथना उतार पहिन घांघरा घुमावदार, फरिया को फार शीश चूनरी चढ़ाऊँगी ॥
कहत शहजादी ठाकुर कवी सों पैज कर, वृन्दावन छोड़ अब कितहूँ न जाऊँगी।
बांदी बनूँगी राधा-महारानी जू की, तुर्किनी बहाय नाम गोपिका कहाऊँगी ॥

ताज बीबी ने गोकुल महावन में ही देह त्याग कर गोपी स्वरुप से श्री राधा कृष्ण की लीलाओं में सम्मिलित हो गयी । यहीं पर ताज बीबी की समाधि है..!!

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