आज का प्रभु संकीर्तन।
सत्संग बहुत दुर्लभ है और जिसे सत्संग मिलता है उस पर ईश्वर की विशेष कृपा होती हैं।
बिनु सतसंग बिबेक न होई। राम कृपा बिनु सुलभ न सोई॥
सतसंगत मुद मंगल मूला। सोई फल सिधि सब साधन फूला॥
यानी सत्संग के बिना विवेक नहीं होता और श्री हरि की कृपा के बिना वह सत्संग सहज में मिलता नहीं। सत्संगति,आनंद और कल्याण की जड़ है। सत्संग की सिद्धि (प्राप्ति) ही फल है और सब साधन तो फूल है॥
हमारे ग्रन्थ पुराणों, संत-महात्माओं और भगवन ने सत्संग की अनंत महिमा गाई है। श्रीमद भागवत पुराण में आया है की सत्संग करो। जब आसक्ति संसार के प्रति होती है तो वह बंधन बन जाती है और जब यही आसक्ति भगवान के प्रति हो जाती है तो मोक्ष के द्वार खुल जाते हैं।
सत्संग का अर्थ :- ‘सत्’ का अर्थ है परम सत्य। इसलिए सत्य का संग करना ही सत्संग कहलाता है। यहाँ पर सत्य का अर्थ केवल भगवान से है। क्योंकि वो परम सत्य है। आप यहाँ पर सत्संग का अर्थ पढ़ रहे हैं। ये सत्य है। थोड़ी देर बाद आप अपने काम करेंगे। ये भी सत्य है। लेकिन परम सत्य नही है। क्योंकि परम सत्य वो है जो अब भी यहाँ है। कल भी था और कल भी रहेगा।
इसलिए केवल भगवान ही परम सत्य है। जब आप भगवान के साथ हैं तभी आप सत्संग कर रहे हैं। इसके लिए आपको केवल किसी कथा पंडाल या सत्संग भवन में जाने की जरुरत नही है। आपके पास समय है तो कथा में जरूर जाइये लेकिन समय नही है तो आप जहाँ पर भी हैं यदि आपको भगवान की याद आ गई तो आप सत्संग में हैं। आप कोई अच्छी पुस्तक पढ़ रहे हैं वो भी सत्संग है। अपने दोस्तों से भगवत चर्चा कर रहे हैं वो भी सत्संग है। सबके कल्याण की आप सोच रहे हैं तो वो भी सत्संग है।
यदि आपसे कोई भगवान की कथा पूछना चाहे तो बता दो, ये सत्संग है। यदि आपको कोई भगवान की कथा, चर्चा सुनाना चाहे तो आप सुन लो ये भी सत्संग है। अगर कोई नही है तो भगवान को ह्रदय से याद कीजिये ये भी सत्संग है। क्योंकि सत्संग से ह्रदय में प्रकाश आ जाता है। और वो प्रकाश भगवान ही हैं। और एक बार ह्रदय में भगवान आ गए तो किसी की भी कमी महसूस नही होगी।
कृष्ण ने उद्धव से जाते हुए कहा था कि उद्धव मुझे अफसोस है कि मुझे जीवन में अच्छे लोग नहीं मिले। जाते-जाते कह गए यदि कोई भूले से अच्छा आदमी आपके पास आए तो बाहों में भर लेना, दिल में उतार लेना। बड़ा मुश्किल है दुनिया में अच्छे आदमी को ढूंढऩा, नहीं मिलेंगे। आपको ऐसा लगता है कि आपने माता-पिता की सेवा कर ली, सत्संग भी कर लिया लेकिन चिंतन करके आपने जो भी कुछ किया है, रात को सोने से पहले स्वयं से एक बार पूछ लीजिएगा कि आज सबकुछ ठीक रहा।
भगवान कहते हैं – जो लोग सहनशील, दयालु, समस्त देहधारियों के अकारण हितू, किसी के प्रति भी शत्रुभाव न रखनेवाले, शान्त, सरलस्वभाव और सत्पुरुषों का सम्मान करनेवाले होते हैं, जो मुझमें अनन्यभाव से सुदृढ़ प्रेम करते हैं, मेरे लिए सम्पूर्ण कर्म तथा अपने सगे-संबंधियों को भी त्याग देते हैं और मेरे परायण रहकर मेरी पवित्र कथाओं का श्रवण, कीर्तन करते हैं तथा मुझमें ही चित्त लगाए रहते है- उन भक्तों को संसार के तरह-तरह के ताप कोई कष्ट नहीं पहुंचाते हैं।
सत्पुरुषों के समागम से मेरे पराक्रमों का यथार्थ ज्ञान करानेवाली तथा हृदय और कानों को प्रिय लगनेवाली कथाएँ होती हैं । उनका सेवन करने से शीघ्र ही मोक्षमार्ग में श्रद्धा, प्रेम और भक्ति का क्रमशः विकास होगा।
सत्संग मतलब -अच्छे विचार। सत्संग से शांति मिलती है। सत्संग हमे अच्छे बुरे की पहचान बताता है । ‘पुण्य कर्म के प्रभाव से ही इंसान को साधु व संतों का संग व वचन-प्रवचन सुनने को मिलते हैं। सत्संग संत बनाता है। सत्संग राम बनने की प्रेरणा देता है। जबकि कुसंग हमें पापी बनाता है। सत्संग से हमें अपने साधना-पथ पर दृढता से आगे बढने की प्रेरणा मिलती है।
जय जय श्री राधेकृष्ण जी …
आज का प्रभु संकीर्तन। सत्संग बहुत दुर्लभ है और जिसे सत्संग मिलता है उस पर ईश्वर की विशेष कृपा होती हैं। बिनु सतसंग बिबेक न होई। राम कृपा बिनु सुलभ न सोई॥ सतसंगत मुद मंगल मूला। सोई फल सिधि सब साधन फूला॥ यानी सत्संग के बिना विवेक नहीं होता और श्री हरि की कृपा के बिना वह सत्संग सहज में मिलता नहीं। सत्संगति,आनंद और कल्याण की जड़ है। सत्संग की सिद्धि (प्राप्ति) ही फल है और सब साधन तो फूल है॥ हमारे ग्रन्थ पुराणों, संत-महात्माओं और भगवन ने सत्संग की अनंत महिमा गाई है। श्रीमद भागवत पुराण में आया है की सत्संग करो। जब आसक्ति संसार के प्रति होती है तो वह बंधन बन जाती है और जब यही आसक्ति भगवान के प्रति हो जाती है तो मोक्ष के द्वार खुल जाते हैं। सत्संग का अर्थ :- ‘सत्’ का अर्थ है परम सत्य। इसलिए सत्य का संग करना ही सत्संग कहलाता है। यहाँ पर सत्य का अर्थ केवल भगवान से है। क्योंकि वो परम सत्य है। आप यहाँ पर सत्संग का अर्थ पढ़ रहे हैं। ये सत्य है। थोड़ी देर बाद आप अपने काम करेंगे। ये भी सत्य है। लेकिन परम सत्य नही है। क्योंकि परम सत्य वो है जो अब भी यहाँ है। कल भी था और कल भी रहेगा। इसलिए केवल भगवान ही परम सत्य है। जब आप भगवान के साथ हैं तभी आप सत्संग कर रहे हैं। इसके लिए आपको केवल किसी कथा पंडाल या सत्संग भवन में जाने की जरुरत नही है। आपके पास समय है तो कथा में जरूर जाइये लेकिन समय नही है तो आप जहाँ पर भी हैं यदि आपको भगवान की याद आ गई तो आप सत्संग में हैं। आप कोई अच्छी पुस्तक पढ़ रहे हैं वो भी सत्संग है। अपने दोस्तों से भगवत चर्चा कर रहे हैं वो भी सत्संग है। सबके कल्याण की आप सोच रहे हैं तो वो भी सत्संग है। यदि आपसे कोई भगवान की कथा पूछना चाहे तो बता दो, ये सत्संग है। यदि आपको कोई भगवान की कथा, चर्चा सुनाना चाहे तो आप सुन लो ये भी सत्संग है। अगर कोई नही है तो भगवान को ह्रदय से याद कीजिये ये भी सत्संग है। क्योंकि सत्संग से ह्रदय में प्रकाश आ जाता है। और वो प्रकाश भगवान ही हैं। और एक बार ह्रदय में भगवान आ गए तो किसी की भी कमी महसूस नही होगी। कृष्ण ने उद्धव से जाते हुए कहा था कि उद्धव मुझे अफसोस है कि मुझे जीवन में अच्छे लोग नहीं मिले। जाते-जाते कह गए यदि कोई भूले से अच्छा आदमी आपके पास आए तो बाहों में भर लेना, दिल में उतार लेना। बड़ा मुश्किल है दुनिया में अच्छे आदमी को ढूंढऩा, नहीं मिलेंगे। आपको ऐसा लगता है कि आपने माता-पिता की सेवा कर ली, सत्संग भी कर लिया लेकिन चिंतन करके आपने जो भी कुछ किया है, रात को सोने से पहले स्वयं से एक बार पूछ लीजिएगा कि आज सबकुछ ठीक रहा। भगवान कहते हैं – जो लोग सहनशील, दयालु, समस्त देहधारियों के अकारण हितू, किसी के प्रति भी शत्रुभाव न रखनेवाले, शान्त, सरलस्वभाव और सत्पुरुषों का सम्मान करनेवाले होते हैं, जो मुझमें अनन्यभाव से सुदृढ़ प्रेम करते हैं, मेरे लिए सम्पूर्ण कर्म तथा अपने सगे-संबंधियों को भी त्याग देते हैं और मेरे परायण रहकर मेरी पवित्र कथाओं का श्रवण, कीर्तन करते हैं तथा मुझमें ही चित्त लगाए रहते है- उन भक्तों को संसार के तरह-तरह के ताप कोई कष्ट नहीं पहुंचाते हैं। सत्पुरुषों के समागम से मेरे पराक्रमों का यथार्थ ज्ञान करानेवाली तथा हृदय और कानों को प्रिय लगनेवाली कथाएँ होती हैं । उनका सेवन करने से शीघ्र ही मोक्षमार्ग में श्रद्धा, प्रेम और भक्ति का क्रमशः विकास होगा। सत्संग मतलब -अच्छे विचार। सत्संग से शांति मिलती है। सत्संग हमे अच्छे बुरे की पहचान बताता है । ‘पुण्य कर्म के प्रभाव से ही इंसान को साधु व संतों का संग व वचन-प्रवचन सुनने को मिलते हैं। सत्संग संत बनाता है। सत्संग राम बनने की प्रेरणा देता है। जबकि कुसंग हमें पापी बनाता है। सत्संग से हमें अपने साधना-पथ पर दृढता से आगे बढने की प्रेरणा मिलती है। जय जय श्री राधेकृष्ण जी …