संत कबीर जुलाहा थे ।
संत रविदास जी मोची थे ।
संत मीरा क्षत्रिय थी।
संत चरणदास जी धूसर वैश्य थे।
संत सहजोबाई धूसर थी।
संत नानकदेव जी सिक्ख थे।
संत रूणीचे के रामदेव क्षत्रिय थे।
संत रामसुख दास जी खत्ती थे ।
संत धन्ना भगत जाट थे ।
संत तेजा जी जाट थे।
संत पलटु दास जी कानु (भड़भुजा) थे।
संत धर्मदास जी वैश्य थे।
संत बुल्लेशाह जी सैयद थे।
संत तुकाराम जी कुनकार थे।
संत दादु द्याल जी ब्राह्मण थे।
संत शुकदेवजी ब्राह्मण थे।
परमात्मां के प्यारे सेंकड़ो भक्तो ने इस धरती पर जन्म लिया! किस कुल में किस जाति में जन्म लिया! यह महत्वपूर्ण नहीं है ,महत्वपूर्ण ये है कि उन्होंने अती विकट परिस्थितियों में भी परमात्मां को पाने के लिए कठिन संघर्ष किया और नाम जप ध्यान साधना द्वारा परमात्मा का साक्षात्कार किया।।
🔸संतो ने जहां बैठकर ध्यान (विपश्यना) किया, वह
” ध्यान स्थल ” ही धर्म स्थल कहे जाते है।
आज धर्म स्थलों की पुजा आराधना हो रही है।
परंतु उन संतों के पद चिन्हों पर चल कर ! सच्चे शबद कि
धुन अनाहत नाद में लीन हो जाना साधु जन भी नहीं चाहते।
क्योंकि अंतर्मुखी साधना के लिए बाहरी दुनिया के मोह को त्यागना पड़ता है। पंथो और अखाड़ो का घमंड, आश्रमों का मोह, ऊंची पदवी का त्याग करना पड़ता है।
जो साधु सन्यासी के लिए बहुत ही कठिन है।
कोई गृहस्थ ही ये रिस्क उठा सकता है!!
Saint Kabir was a weaver. Saint Ravidas ji was a cobbler. Saint Meera was a Kshatriya. Saint Charandas ji was a gray Vaishya. Saint Sahajobai was grey. Saint Nanakdev ji was a Sikh. Saint Ramdev of Runiche was a Kshatriya. Saint Ramsukh Das ji was sour. Saint Dhanna Bhagat was a Jat. Saint Teja ji was a Jat. Saint Paltu Das ji was Kanu (Bhadbhuja). Saint Dharamdas ji was a Vaishya. Saint Bulleshah ji was a Syed. Saint Tukaram ji was humming. Saint Dadu Dayal ji was a Brahmin. Saint Shukdevji was a Brahmin. Hundreds of beloved devotees of God were born on this earth! In which clan and which caste were you born? This is not important, what is important is that he struggled hard to attain God even in the most difficult circumstances and realized God through name chanting and meditation. 🔸Where the saints sat and meditated (Vipassana), that “Meditation places” are called religious places. Today, worship is being done at religious places. But follow the footsteps of those saints! true words that Even sages do not want to get absorbed in the tune of Anahat Naad. Because for introverted meditation one has to give up the attachment to the outside world. One has to give up the pride of sects and Akharas, the attraction of ashrams and high positions. Which is very difficult for a sage and monk. Only a householder can take this risk!!