निर्जला एकादशी व्रत
भीमसेनी एकादशी व्रत
पांडव एकादशी व्रत

निर्जला एकादशी व्रत
भीमसेनी एकादशी व्रत
पांडव एकादशी व्रत

ज्येष्ठ मा​ह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को निर्जला एकादशी व्रत रखा जाता है। जो इस बार कल 31 मई 2023, बुधवार के दिन है

विशेष
आज मंगलवार एवं कल बुधवार व्रत के दिन खाने में चावल या चावल से बनी हुई चीज वस्तु का प्रयोग बिल्कुल भी ना करें🙏

सभी एकादशी में से निर्जला एकादशी व्रत सबसे महत्वपूर्ण माना गया है क्योंकि निर्जला एकादशी का व्रत करने से साल में पड़ने वाली 24 एकादाशियो का फल प्राप्त होता है

👉 निर्जला एकादशी व्रत कथा तथा विधि 👇

👉निर्जला एकादशी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि कर स्वच्छ कपड़े पहनने के बाद भगवान के समक्ष पवित्र श्रीहरि/ राम/कृष्ण का स्नान वस्त्र चंदन धूप दीप नैवेद्य फल पान दक्षिणादि तथा तुलसी दल अर्पित करना चाहिए तथा अधिक से अधिक हरि नाम/ राम नाम/ कृष्ण नाम अथवा विष्णु सहस्त्रनाम का जप /पाठ करना चाहिए ,भगवान के विषय में अधिक से अधिक श्रवण करना चाहिए तथा पूर्णतया भगवान की सेवा में खुद को लगाना चाहिए ।

👉द्वादशी के दिन व्रत का पारण करना अनिवार्य होता हैं बिना पारण के एकादशी का व्रत अधूरा माना जाता हैं 🙏

👉 निर्जला एकादशी व्रत कथा 👇

युधिष्ठिर ने कहा: जनार्दन ! ज्येष्ठ मास के शुक्लपक्ष में जो एकादशी पड़ती हो, कृपया उसका वर्णन कीजिये 🙏

भगवान श्रीकृष्ण बोले : राजन् ! इसका वर्णन परम धर्मात्मा सत्यवतीनन्दन व्यासजी करेंगे, क्योंकि ये सम्पूर्ण शास्त्रों के तत्त्वज्ञ और वेद वेदांगों के पारंगत विद्वान हैं ।

👉 तब वेदव्यासजी कहने लगे : दोनों ही पक्षों की एकादशियों के दिन भोजन न करे द्वादशी के दिन स्नान आदि से पवित्र हो फूलों से भगवान केशव की पूजा करे । फिर नित्य कर्म समाप्त होने के पश्चात् पहलेब्राह्मणों को भोजन देकर अन्त में स्वयं भोजन करे । राजन् ! जननाशौच और मरणाशौच में भी एकादशी को भोजन नहीं करना चाहिए ।

यह सुनकर भीमसेन बोले : परम बुद्धिमान पितामह ! मेरी उत्तम बात सुनिये । राजा युधिष्ठिर, माता कुन्ती, द्रौपदी, अर्जुन, नकुल और सहदेव ये एकादशी को कभी भोजन नहीं करते तथा मुझसे भी हमेशा यही कहते हैं कि : ‘भीमसेन ! तुम भी एकादशी को न खाया करो…’ किन्तु मैं उन लोगों से यही कहता हूँ कि मुझसे भूख नहीं सही जायेगी ।

भीमसेन की बात सुनकर व्यासजी ने कहा : यदि तुम्हें स्वर्गलोक की प्राप्ति अभीष्ट है और नरक को दूषित समझते हो तो दोनों पक्षों की एकादशीयों के दिन भोजन न करना ।

भीमसेन बोले : महाबुद्धिमान पितामह ! मैं आपके सामने सच्ची बात कहता हूँ । एक बार भोजन करके भी मुझसे व्रत नहीं किया जा सकता, फिर उपवास करके तो मैं रह ही कैसे सकता हूँ❓ मेरे उदर में वृकनामक अग्नि सदा प्रज्वलित रहती है, अत: जब मैं बहुत अधिक खाता हूँ, तभी यह शांत होती है । इसलिए महामुने ! मैं वर्षभर में केवल एक ही उपवास कर सकता हूँ । जिससे स्वर्ग की प्राप्ति सुलभ हो तथा जिसके करने से मैं कल्याण का भागी हो सकूँ, ऐसा कोई एक व्रत निश्चय करके बताइये । मैं उसका यथोचित रुप से पालन करुँगा ।

व्यासजी ने कहा : भीम ! ज्येष्ठ मास में सूर्य वृष राशि पर हो या मिथुन राशि पर, शुक्लपक्ष में जो एकादशी हो, उसका यत्नपूर्वक निर्जल व्रत करो । केवल कुल्ला या आचमन करने के लिए मुख में जल डालसकते हो, उसको छोड़कर किसी प्रकार का जल विद्वान पुरुष मुख में न डाले, अन्यथा व्रत भंग हो जाता है🙏

एकादशी को सूर्योदय से लेकर दूसरे दिन के सूर्योदय तक मनुष्य जल का त्याग करे तो यह व्रत पूर्णहोता है । तदनन्तर द्वादशी को प्रभातकाल में स्नान करके ब्राह्मणों को विधिपूर्वक जल और सुवर्ण का दान करे । इस प्रकार सब कार्य पूरा करके जितेन्द्रिय पुरुष ब्राह्मणों के साथ भोजन करे । वर्षभर में जितनी एकादशीयाँ होती हैं, उन सबका फल निर्जला एकादशी के सेवन से मनुष्य प्राप्त कर लेता है, इसमें तनिक भी सन्देह नहीं है

शंख, चक्र और गदा धारण करनेवाले भगवान केशव ने मुझसे कहा था कि: ‘यदि मानवसबको छोड़कर एकमात्र मेरी शरण में आ जाए और एकादशी को निराहार रहे तो वह सब पापों से छूट जाता है ।’
एकादशी व्रत करने वाले पुरुष के पास विशालकाय, विकराल आकृति और काले रंगवाले दण्ड पाशधारी भयंकर यमदूत नहीं जाते । अंतकाल में पीताम्बरधारी, सौम्य स्वभाववाले, हाथ में सुदर्शन धारण करने वाले और मन के समान वेगशाली विष्णुदूत आखिर इस वैष्णव पुरुष को भगवान विष्णु के धाम में ले जाते हैं । अत: निर्जला एकादशी को पूर्ण यत्न करके उपवास और श्री हरि का पूजन करो 🙏

स्त्री हो या पुरुष, यदि उसने मेरु पर्वत के बराबर भी महान पाप किया हो तो वह सब इस एकादशी व्रत के प्रभाव से भस्म हो जाता है । जो मनुष्य उस दिन जल के नियम का पालन करता है, वह पुण्य का भागी होता है । उसे एक-एक प्रहर में कोटि-कोटि स्वर्णमुद्रा दान करने का फल प्राप्त होता सुना गया है । मनुष्य निर्जला एकादशी के दिन स्नान, दान, जप, होम आदि जो कुछ भी करता है, वह सब अक्षय होता है, यह भगवान श्रीकृष्ण का कथन है 🙏

निर्जला एकादशी को विधिपूर्वक उत्तम रीति से उपवास करके मानव वैष्णवपद को प्राप्त कर लेता है

जो मनुष्य एकादशी के दिन अन्न खाता है, वह पाप का भोजन करता है । इस लोक में वह चाण्डालके समान है और मरने पर दुर्गति को प्राप्त होता है जो ज्येष्ठ के शुक्लपक्ष में एकादशी को उपवास करके दान करेंगे, वे परम पद को प्राप्त होंगे । जिन्होंने एकादशी को उपवास किया है, वे ब्रह्महत्यारे, शराबी, चोर तथा गुरुद्रोही होने पर भी सब पातकों से मुक्त हो जाते हैं🙏

कुन्तीनन्दन ! ‘निर्जला एकादशी’ के दिन श्रद्धालु स्त्री पुरुषों के लिए जो विशेष दान और कर्त्तव्य विहित हैं, उन्हें सुनो: उस दिन जल में शयन करने वाले भगवान विष्णु का पूजन और जलमयी धेनु का दान करना चाहिए अथवा प्रत्यक्ष धेनु या घृतमयी धेनु का दान उचित है । पर्याप्त दक्षिणा और भाँति-भाँति के मिष्ठान्नों द्वारा यत्नपूर्वक ब्राह्मणों को सन्तुष्ट करना चाहिए । ऐसा करने से ब्राह्मण अवश्य संतुष्ट होते हैं और उनके संतुष्ट होने पर श्रीहरि मोक्ष प्रदान करते हैं । जिन्होंने दान में प्रवृत हो श्रीहरि की पूजा और रात्रि में जागरण करते हुए इस ‘निर्जला एकादशी’ का व्रत किया है, उन्होंने अपने साथ ही बीती हुई सौपीढ़ियों को और आनेवाली सौ पीढ़ियों को भगवान वासुदेव के परम धाम में पहुँचा दिया है🙏

निर्जला एकादशी के दिन अन्न, वस्त्र, गौ, जल, शैय्या, सुन्दर आसन, कमण्डलु तथा छाता दान करने चाहिए । जो श्रेष्ठतथा सुपात्र ब्राह्मण को जूता दान करता है, वह सोने के विमान पर बैठकर स्वर्गलोक में प्रतिष्ठित होता है । जो इस एकादशी की महिमा को भक्तिपूर्वक सुनता अथवा उसका वर्णन करता है, वह स्वर्गलोक में जाताहै । चतुर्दशीयुक्त अमावस्या को सूर्यग्रहण के समय श्राद्ध करके मनुष्य जिस फल को प्राप्त करता है, वही फल इसके श्रवण से भी प्राप्त होता है । पहले दन्तधावन करके यह नियम लेना चाहिए कि : ‘मैं भगवान केशव की प्रसन्न्ता के लिए एकादशी को निराहार रहकर आचमन के सिवा दूसरे जल का भी त्याग करुँगा ।’

द्वादशी को देवेश्वर भगवान विष्णु का पूजन करना चाहिए । गन्ध, धूप, पुष्प और सुन्दर वस्त्र सेविधिपूर्वक पूजन करके जल के घड़े के दान का संकल्प करते हुए निम्नांकित मंत्र का उच्चारण करे :

देवदेव ह्रषीकेश संसारार्णवतारक। उदकुम्भप्रदानेन नय मां परमां गतिम्॥

संसारसागर से तारनेवाले हे देवदेव ह्रषीकेश ! इस जल के घड़े का दान करने से आप मुझे परम गति की प्राप्ति कराइये

भीमसेन ! ज्येष्ठ मास में शुक्लपक्ष की जो शुभ एकादशी होती है, उसका निर्जल व्रत करना चाहिए 🙏

उस दिन श्रेष्ठ ब्राह्मणों को शक्कर के साथ जल के घड़े दान करने चाहिए । ऐसा करने से मनुष्य भगवान विष्णुके समीप पहुँचकर आनन्द का अनुभव करता है ।

तत्पश्चात् द्वादशी को ब्राह्मण भोजन कराने के बाद स्वयं भोजन करे । जो इस प्रकार पूर्ण रुप से पापनाशिनी एकादशी का व्रत करता है, वह सब पापों से मुक्त होआनंदमय पद को प्राप्त होता है ।
यह सुनकर भीमसेन ने भी इस शुभ एकादशी का व्रत आरम्भ कर दिया । तबसे यह लोक मे ‘ पाण्डव द्वादशी’ के नाम से विख्यात हुई। 🙏

यज्ञदानतप: कर्म न त्याज्यं कार्य मेव तत्

श्रीमद्भगवतगीता में भगवान श्री कृष्ण के यह वचन अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। यज्ञ दान और तप रूप कर्म किसी भी स्थिति में त्यागने योग्य नहीं हैं अपितु कर्तव्य रूप में इन्हें अवश्य करना चाहिए। शास्त्रों में तप के अंतर्गत व्रतों की महिमा बताई गई है सामान्यता व्रतों में सर्वोपरि एकादशी व्रत कहा गया है।

जैसे नदियों में गंगा, प्रकाशक तत्वों में सूर्य, देवताओं में भगवान विष्णु की प्रधानता है वैसे ही व्रतों में एकादशी व्रत की प्रधानता है एकादशी व्रत के करने से सभी रोग दोष शांत होकर लंबी आयु सुख शांति और समृद्धि की प्राप्ति तो होती है साथ ही मनुष्य जीवन का मुख्य उद्देश्य भगवत प्राप्ति भी होती है। संसार में जीव की स्वाभाविक प्रवृत्ति भोगों की ओर रहती है परंतु भगवत सन्निधि के लिए भोगों से वैराग्य होना ही चाहिए। संसार के सब कार्यों को करते हुए भी कम से कम पक्ष में एक बार हम अपने संपूर्ण भोगों से विरक्त होकर ‘स्व’ में स्थित हो सके और उन क्षणों में हम अपने साथ वृत्तियों से भगवत चिंतन में संलग्न हो जाए इसी के लिए एकादशी व्रत का विधान है।

“एकादश्यां न भुंजीत पक्षयोरुभयोरपि” दोनों पक्षों की एकादशी में भोजन न करें।
वास्तव में शास्त्रकारों ने व्रत का स्तर स्थापित किया है अपनी श्रद्धा और भक्ति के अनुसार जो संभव हो करना चाहिए👇

1 .निर्जल व्रत
2 .उपवास व्रत
3 .केवल एक बार अन्न रहित दुग्धादि पेय पदार्थ का ग्रहण

4 .नक्त व्रत ( दिनभर उपवास रखकर रात्रि में फलाहार करना )

5 .एकभुक्त व्रत ( किसी भी समय एक बार फलाहार करना) अशक्त, वृद्ध ,बालक और रोगी को भी जो व्रत न कर सकें यथासंभव अन्न का परित्याग तो एकादशी के दिन करना ही चाहिए🙏
🌞 ~ हिन्दू पंचांग ~ 🌞



Nirjala Ekadashi fast Bhimseni Ekadashi fast Pandava Ekadashi fast

Nirjala Ekadashi fast is observed on Ekadashi date of Shukla Paksha of Jyestha month. Which is tomorrow 31 May 2023, Wednesday

Specific Today, Tuesday and tomorrow, on the day of Wednesday fasting, do not use rice or rice-made things at all.

Nirjala Ekadashi fasting is considered the most important of all Ekadashi because by observing Nirjala Ekadashi fast one gets the results of 24 Ekadashis that fall in a year.

👉 Nirjala Ekadashi fast story and method 👇

👉 On the day of Nirjala Ekadashi, after getting up early in the morning after taking bath etc. and wearing clean clothes, holy Sri Hari / Ram / Krishna’s bath cloth, sandalwood incense, lamp naivedya, fruit paan, dakshinadi and Tulsi Dal should be offered in front of God and maximum Hari Naam / Ram Naam. One should recite / chant the name of Krishna or Vishnu Sahastranam, listen more and more about the Lord and completely engage oneself in the service of the Lord.

It is mandatory to observe fast on Dwadashi, without Paran Ekadashi fast is considered incomplete.

👉 Nirjala Ekadashi fast story 👇

Yudhishthir said: Janardan! Please describe the Ekadashi that falls in the Shukla Paksha of Jyestha month.

Lord Krishna said: Rajan! Param Dharmatma Satyavatinandan Vyasji will describe this, because he is a philosopher of all the scriptures and a well-versed scholar of Vedas and Vedangas.

👉 Then Vedvyasji started saying: Do not eat food on the Ekadashi days of both the sides, be pure by bathing etc. on the Dwadashi day, worship Lord Keshav with flowers. Then after the end of daily work, first give food to Brahmins and lastly eat yourself. Rajan! Food should not be eaten on Ekadashi even in Jananashauch and Maranashauch.

Hearing this, Bhimsen said: Most intelligent grandfather! Listen to my best talk. King Yudhishthira, mother Kunti, Draupadi, Arjuna, Nakula and Sahdev never eat food on Ekadashi and always say the same to me: ‘Bhimsen! You also don’t eat on Ekadashi…’ But I tell those people that I will not cure hunger.

After listening to Bhimsen, Vyasji said: If you want to attain heaven and consider hell to be polluted, then do not eat on the Ekadashi days of both the sides.

Bhimsen said: Great wise grandfather! I tell you the truth in front of you. I can’t fast even after eating once, then how can I live after fasting? The fire named Vrikna is always burning in my stomach, so it calms down only when I eat a lot. That’s why Mahamune! I can do only one fast in a year. By which the attainment of heaven is easy and by doing which I can be a part of welfare, tell me such a fast with determination. I will follow it properly.

Vyasji said: Bhim! In the month of Jyeshtha, whether the sun is in Taurus or Gemini, on the Ekadashi of Shukla Paksha, make a lot of effort on the waterless fast. You can put water in your mouth only for gargling or for achaman, except that a learned man should not put any kind of water in his mouth, otherwise the fast is broken.

If a person sacrifices water from sunrise on Ekadashi till sunrise of the next day, then this fast is complete. After that, after bathing in the morning on Dwadashi, donate water and gold to Brahmins in a systematic way. In this way, after completing all the work, the Jitendriya man should eat with the Brahmins. There is no doubt in this that a person gets the fruits of all the Ekadashis that are held in a year by observing Nirjala Ekadashi.

Lord Keshava, the bearer of the conch, wheel and mace, told me that: ‘If a human being leaves all else and surrenders to Me alone and observes fasting on Ekadashi, he is freed from all sins.’ The men who fast on Ekadashi don’t go near the fierce Yamdoots of giant, dreadful shape and dark complexioned. At the end, the Vishnu messengers of Pitambardhari, mild-mannered, holding Sudarshan in their hands and as fast as the mind, finally take this Vaishnava man to the abode of Lord Vishnu. Therefore, fast on Nirjala Ekadashi with full effort and worship Shri Hari.

Be it a woman or a man, if he has committed a great sin equal to Mount Meru, then all of it gets burnt by the effect of this Ekadashi fast. The person who follows the law of water on that day, becomes a part of virtue. It has been heard that he gets the result of donating crores of gold coins in every moment. Whatever a man does on the day of Nirjala Ekadashi like bathing, charity, chanting, home etc., all that is renewable, this is the statement of Lord Krishna.

Man attains Vaishnavpad by fasting properly on Nirjala Ekadashi

The person who eats food on the day of Ekadashi, he eats sin. In this world, he is like a chandala and after death, he gets misery. Those who do charity by fasting on Ekadashi in Shukla Paksha of Jyeshtha, they will attain the supreme position. Those who fast on Ekadashi, they become free from all sins even if they are brahmin killers, drunkards, thieves and traitors.

Kuntinandan! On the day of ‘Nirjala Ekadashi’, listen to the special donations and duties that are prescribed for men and women devotees: On that day, worship of Lord Vishnu, who sleeps in water, and donation of Jalmayi Dhenu or direct Dhenu or Ghritamayi Dhenu is appropriate. . The brahmins should be gratified with due diligence and a variety of sweets. By doing this, Brahmins are definitely satisfied and when they are satisfied, Shri Hari grants salvation. Those who worship Lord Hari and keep vigil in the night and fast on this ‘Nirjala Ekadashi’, they have brought the past hundred generations and the coming hundred generations to the supreme abode of Lord Vasudev.

On the day of Nirjala Ekadashi, food, clothes, cow, water, bed, beautiful seat, kamandalu and umbrella should be donated. The one who donates shoes to the best and deserving Brahmin, he gets established in heaven by sitting on a golden plane. One who listens or narrates the glory of this Ekadashi with devotion, goes to heaven. The fruit that a man gets by performing Shradh on the Chaturdashi-yukt Amavasya at the time of solar eclipse, the same fruit is also obtained by listening to it. First of all, after washing the teeth, this rule should be taken: ‘I will abstain from water other than Aachaman by remaining fasting on Ekadashi for the pleasure of Lord Keshav.’

Deveshwar Lord Vishnu should be worshiped on Dwadashi. After worshiping with scent, incense, flowers and beautiful clothes, chant the following mantra while resolving to donate a pot of water:

God of gods, Hrishikesh, incarnate from the ocean of the world. By bestowing a waterpot take me to the supreme destination

‘ Oh God Hrishikesh, the one who can save you from the ocean of the world! By donating this pot of water, you make me attain the ultimate speed.

Bhimsen! The auspicious Ekadashi of Shukla Paksha in the month of Jyeshtha should be observed without water.

On that day the best Brahmins should donate pitchers of water with sugar. By doing this, man experiences joy by reaching near Lord Vishnu.

After that, on Dwadashi, after providing food to Brahmins, eat yourself. One who observes the fast of Papanashini Ekadashi in this way, becomes free from all sins and attains blissful status. Hearing this, Bhimsen also started fasting on this auspicious Ekadashi. Since then it became famous in the world by the name of ‘Pandav Dwadashi’.

” Sacrifice, charity and austerity: Karma is not to be abandoned, it is the work itself.

These words of Lord Shri Krishna in Shrimad Bhagwat Gita are very important. Yagya, charity and penance are not worth giving up in any situation, but they must be done as a duty. In the scriptures, the glory of fasts has been told under penance, in general, Ekadashi fast has been said to be the most important among fasts.

Just as the Ganga is preeminent among the rivers, the Sun among the elements of light, and Lord Vishnu among the deities, in the same way Ekadashi Vrat is preeminent among the fasts. The main aim of life is also to attain God. The natural tendency of the living being in the world is towards enjoyments, but for Bhagwat Sannidhi, there must be disinterest in the enjoyments. Even while doing all the works of the world, at least once in the side, we can be situated in the ‘self’ by being detached from all our enjoyments and in those moments we can engage in Bhagwat contemplation with our instincts, for this Ekadashi fast is done. There is legislation.

“Ekadashyam na bhunjit pakshayorubhayorapi” Do not eat on the Ekadashi of both sides. In fact, the scriptures have established the level of fasting according to one’s faith and devotion which should be done as possible👇

1. waterless fasting 2. Fasting 3. Acceptance of food-free milk drinks only once

4. Nakta Vrat (keeping fast throughout the day and eating fruits at night)

5. Ekabhukt Vrat (eating fruits once at any time) even the weak, old, children and patients who are unable to fast, should give up food as much as possible on the day of Ekadashi. 🌞 ~ Hindu Panchang ~ 🌞

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