रंगनाथ मंदिर में आने के लिए इस दिन का सालभर इंतजार करते हैं लोग!
मान्यता है कि *जिसने भी इस दरवाजे को पार कर लिया उसे मोक्ष मिल जाता है।
वृंदावन के रंगनाथ मंदिर का वैकुंठ दरवाजा खुलेगा।
भगवान की 11 पालकी इसी दरवाजे से मंदिर के अंदर जाएंगी रंगनाथ मंदिर के सातवें दरवाजे का नामवैकुंठ दरवाजा है।
वह केवल वैकुंठ एकादशी के दिन खोला जाता है।
श्रीरामानुज संप्रदाय के मंदिर में श्रीरंगनाथ या रंगजी (भगवान विष्णु) विराजमान हैं। वह शेषनाग पर मूर्ति रूप में हैं। उनके चरणों पर भगवान लक्ष्मी बैठी हैं। ब्रह्मा वेदों का पाठ कर रहे हैं।
इसके नीचे सोने की तीन अन्य मूर्तियां हैं। बाईं तरफ श्रीदेवी (लक्ष्मी), दाएं में भूदेवी और बीच में रंगनाथ (विष्णु) दाएं हैं।
यह वृंदावन के कुछ मंदिरों में से है, जिसका निर्माण दक्षिण भारतीय द्रविड वास्तुशिल्प शैली में हुआ है।
इसे 1851 में एक जैन कारोबारी ने बनवाया गया था।इसे ऐसा बनाया गया है, जिससे यहां आकर लगाता है कि वह दक्षिण भारत के किसी मंदिर में भ्रमण कर रहे हों।
रंगनाथ जी की मूर्ति लंका ले जाना चाहता था विभीषण जमीन पर रखने के बाद नहीं उठा सका – मंदिर से जुड़े राधामुरारी ने बताया, मान्यता है कि इस मंदिर में स्थापित मूर्ति को राजा इक्ष्वाकु ने तपस्या करके ब्रह्मा जी से मांगा था।
इस मूर्ति को अयोध्या में स्थापित किया गया था।
राज्याभिषेक के दौरान श्रीराम सभी को दान कर रहे थे।
इसी दौरान विभीषण ने उनसे श्रीरंगजी की मूर्ति मांगी
और कहा कि वह इन्हें लंका में स्थापित करना चाहते हैं।
विभीषण ने मूर्ति को रखा, इसके बाद वह इसे उठा न सके। बाद में इस मूर्ति की जगह पर मंदिर बनवाया गया।
यह मंदिर दक्षिण भारतीय रंगनाथ मंदिर की तरह का है। इसके पुजारी दक्षिण भारतीय ब्राह्मण होते हैं।
साल में एक बार वैकुंठ दरवाजा खोलने के पीछे की कहानी – रंगजी मंदिर से जुड़े रामेश्वर बताते हैं कि विष्णु पुराण के अनुसार वैकुंठ एकादशी के दिन पूजा करने का लाभ पूरे साल होने वाले 11 एकादशी के बराबर मिलता है।
पद्म पुराण के अनुसार, त्रेता युग में राक्षस, देवताओं और मनुष्यों को परेशान कर रहे थे। देवता भगवान शिव की शरण में गए। शिव ने देवताओं से विष्णु के पास जाने को कहा।
तब भगवान विष्णु मदद के लिए तैयार हुए और राक्षस मुरान से एक हजार साल तक लंबी लड़ाई हुई। इसके बाद विष्णु को आराम की जरूरत पड़ी। वह वैकुंठाश्रम में हिमावती गुफा में सोने गए। तभी राक्षस मुरान ने विष्णु पर हमला करना चाहा। इसी दौरान विष्णु के शरीर से देवी निकली। शक्ति ने राक्षस मुरान को हरा दिया।
जब भगवान विष्णु जगे तो वह खुश हुए और देवी का नाम एकादशी रख दिया। तब देवी ने वरदान मांगा कि अगर कोई इस दिन व्रत करेगा तो सभी पापों से मुक्ति हो जाएगी।
विष्णु ने मांग पूरा करते हुए कहा कि इस दिन वैकुंठ लोक का दरवाजा खुला रहेगा।
*इसी कथा को लेकर श्रीरंगनाथ मंदिर व तिरुपति बालाजी मंदिर में वैकुंठ दरवाजा बना है। यह सिर्फ वैकुंठ एकादशी के दिन खुलता है और इसे साल में एक बार पार करने से माना जाता है कि मोक्ष की प्राप्ति होती है।
माना जाता है कि इसी दिन भगवान विष्णु वैकुंठ लोक का दरवाजा खोलते हैं। इसी वजह से तिरुपति बालाजी मंदिर, श्रीरंगनाथ मंदिर और वृंदावन के रंगनाथ मंदिर में एक दरवाजा इसी तरह का बना होता, जिसको साल में एक बार ही खोला जाता है।
People wait for this day throughout the year to come to Ranganath temple.
It is believed that whoever crosses this door attains salvation.
The Vaikuntha door of Ranganath temple of Vrindavan will open.
11 palanquins of God will enter the temple through this door. The name of the seventh door of Ranganath temple is Vaikuntha Darwaja. It is opened only on the day of Vaikuntha Ekadashi. Sri Ranganath or Rangji (Lord Vishnu) is present in the temple of Sri Ramanuja sect. He is in idol form on Sheshnag. Lord Lakshmi is sitting at his feet. Brahma is reciting the Vedas.
Below this there are three other gold statues. Sridevi (Lakshmi) is on the left, Bhudevi on the right and Ranganath (Vishnu) is in the middle.
It is one of the few temples in Vrindavan built in the South Indian Dravidian architectural style. It was built by a Jain businessman in 1851. It has been made in such a way that a person coming here feels as if he is visiting a temple in South India.
Vibhishan wanted to take the idol of Ranganath ji to Lanka but could not pick it up after placing it on the ground – Radhamurari associated with the temple said, it is believed that the idol installed in this temple was asked by King Ikshvaku from Brahma ji after doing penance. This statue was installed in Ayodhya.
During the coronation, Shri Ram was donating to everyone. During this time Vibhishan asked him for the idol of Shrirangji. And said that he wants to establish them in Lanka. After Vibhishana placed the idol, he could not lift it. Later a temple was built in place of this idol.
This temple is like the South Indian Ranganath temple. Its priests are South Indian Brahmins.
The story behind opening the Vaikuntha door once a year – Rameshwar associated with Rangji temple tells that according to Vishnu Purana, the benefit of worshiping on the day of Vaikuntha Ekadashi is equal to 11 Ekadashis occurring throughout the year.
According to Padma Purana, demons were troubling the gods and humans in Treta Yuga. The gods took refuge in Lord Shiva. Shiva asked the gods to go to Vishnu. Then Lord Vishnu agreed to help and there was a long battle for a thousand years with the demon Muran. After this Vishnu needed rest. He went to sleep in Himavati cave in Vaikunthashram. Then the demon Muran wanted to attack Vishnu. During this time, Devi emerged from Vishnu’s body. Shakti defeated the demon Muran. When Lord Vishnu woke up, he was happy and named the goddess Ekadashi. Then the goddess asked for a boon that if anyone fasts on this day, he will be freed from all sins. Fulfilling the demand, Vishnu said that the door to Vaikuntha Loka will remain open on this day.
*Vaikuntha Darwaja is built in Shri Ranganath Temple and Tirupati Balaji Temple based on this story. It opens only on the day of Vaikuntha Ekadashi and crossing it once a year is believed to lead to salvation.
It is believed that on this day Lord Vishnu opens the door to Vaikuntha Loka. For this reason, Tirupati Balaji Temple, Sri Ranganath Temple and Ranganath Temple of Vrindavan have a door made of this type, which is opened only once in a year.