गोपाष्टमी_पर्व

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. गोपाष्टमी, ब्रज में भारतीय संस्कृति का एक प्रमुख पर्व है। गायों की रक्षा करने के कारण भगवान श्री कृष्ण जी का अतिप्रिय नाम 'गोविन्द' पड़ा। कार्तिक शुक्ल पक्ष, प्रतिपदा से सप्तमी तक गो-गोप-गोपियों की रक्षा के लिए गोवर्धन पर्वत को धारण किया था। इसी समय से अष्टमी को गोपाष्टमी का पर्व मनाया जाने लगा, जो कि अब तक चला आ रहा है। हिन्दू संस्कृति में गाय का विशेष स्थान हैं। माँ का दर्जा दिया जाता हैं क्योंकि जैसे एक माँ का ह्रदय कोमल होता हैं, वैसा ही गाय माता का होता हैं। जैसे एक माँ अपने बच्चो को हर स्थिति में सुख देती हैं, वैसे ही गाय भी मनुष्य जाति को लाभ प्रदान करती हैं। गोपाष्टमी के शुभ अवसर पर गौशाला में गो-संवर्धन हेतु गौ पूजन का आयोजन किया जाता है। गौमाता पूजन कार्यक्रम में सभी लोग परिवार सहित उपस्थित होकर पूजा अर्चना करते हैं। गोपाष्टमी की पूजा विधि पूर्वक विद्वान पंडितो द्वारा संपन्न की जाती है। बाद में सभी प्रसाद वितरण किया जाता है।

सभी लोग गौ माता का पूजन कर उसके वैज्ञानिक तथा आध्यात्मिक महत्व को समझ गौ-रक्षा व गौ-संवर्धन का संकल्प करते हैं। शास्त्रों में गोपाष्टमी पर्व पर गायों की विशेष पूजा करने का विधान निर्मित किया गया है। इसलिए कार्तिक माह की शुक्लपक्ष की अष्टमी तिथि को प्रात:काल गौओं को स्नान कराकर, उन्हें सुसज्जित करके गन्ध पुष्पादि से उनका पूजन करना चाहिए। इसके पश्चात यदि संभव हो तो गायों के साथ कुछ दूर तक चलना चाहिए कहते हैं ऐसा करने से प्रगति के मार्ग प्रशस्त होते हैं। गायों को भोजन कराना चाहिए तथा उनकी चरण को मस्तक पर लगाना चाहिए। ऐसा करने से सौभाग्य की वृद्धि होती है। एक पौराणिक कथा अनुसार बालक कृष्ण ने माँ यशोदा से गायों की सेवा करनी की इच्छा व्यक्त की कृष्ण कहते हैं कि माँ मुझे गाय चराने की अनुमति मिलनी चाहिए। उनके कहने पर शांडिल्य ऋषि द्वारा अच्छा समय देखकर उन्हें भी गाय चराने ले जाने दिया जो समय निकाला गया, वह गोपाष्टमी का शुभ दिन था। बालक कृष्ण ने गायों की पूजा करते हैं, प्रदक्षिणा करते हुए साष्टांग प्रणाम करते हैं।

इस दिन गाय की पूजा की जाती हैं। सुबह जल्दी उठकर स्नान करके गाय के चरण-स्पर्श किये जाते हैं। सुबह गाय और उसके बछड़े को नहलाकर तैयार किया जाता है। उसका श्रृंगार किया जाता हैं, पैरों में घुंघरू बांधे जाते हैं, अन्य आभूषण पहनायें जाते हैं। गो-माता की परिक्रमा भी की जाती हैं। सुबह गायों की परिक्रमा कर उन्हें चराने बाहर ले जाते हैं। गौ माता के अंगो में मेहँदी, रोली, हल्दी आदि के थापे लगाये जाते हैं। गायों को सजाया जाता है, प्रातःकाल ही धूप, दीप, पुष्प, अक्षत, रोली, गुड, जलेबी, वस्त्र और जल से गौ-माता की पूजा की जाती है, और आरती उतारी जाती है। पूजन के बाद गौ ग्रास निकाला जाता है, गौ-माता की परिक्रमा की जाती है, परिक्रमा के बाद गौओं के साथ कुछ दूर तक चला जाता है। कहते हैं ऎसा करने से प्रगति के मार्ग प्रशस्त होते हैं। इस दिन ग्वालों को भी दान दिया जाता है। कई लोग इन्हें नये कपड़े दे कर तिलक लगाते हैं। शाम को जब गाय घर लौटती है, तब फिर उनकी पूजा की जाती है, उन्हें अच्छा भोजन दिया जाता है। विशेष

  1. इस दिन गाय को हरा चारा खिलाएँ।
  2. जिनके घरों में गाय नहीं है वे लोग गौशाला जाकर गाय की पूजा करें।
  3. गंगा जल, फूल चढाये, दिया जलाकर गुड़ खिलाये।
  4. गाय को तिलक लगायें, भजन करें, गोपाल (कृष्ण) की पूजा भी करें, सामान्यतः लोग अपनी सामर्थ्यानुसार गौशाला में खाना और अन्य समान का दान भी करते हैं। "जय जय श्री राधे 🙏🙏



, Gopashtami is a major festival of Indian culture in Braj. Because of protecting the cows, Lord Shri Krishna ji’s most beloved name was ‘Govind’. From Kartik Shukla Paksha, Pratipada to Saptami, to protect the go-gopa-gopis, he wore the Govardhan mountain. From this time the festival of Gopashtami started being celebrated on Ashtami, which is going on till now. Cow has a special place in Hindu culture. The status of mother is given because just as a mother’s heart is soft, so is the cow’s mother. Just as a mother gives happiness to her children in every situation, so the cow also provides benefits to mankind. On the auspicious occasion of Gopashtami, cow worship is organized in the cowshed for the promotion of cow. In the Gaumata Puja program, all the people present and offer prayers along with the family. The worship of Gopashtami is performed by learned pundits in a ritualistic manner. Afterwards all the prasad is distributed.

After worshiping the mother cow, all the people, understanding its scientific and spiritual importance, take a pledge to protect the cow and promote the cow. In the scriptures, a law has been made for special worship of cows on the festival of Gopashtami. Therefore, on the Ashtami date of Shukla Paksha of Kartik month, after bathing the cows, equipping them and worshiping them with Gandha Pushpadi. After this, if possible, one should walk some distance with the cows, it is said that by doing so, the path of progress is paved. Cows should be fed and their feet should be put on the head. By doing this, luck increases. According to a legend, the child Krishna expressed his desire to serve the cows to mother Yashoda, Krishna says that mother, I should be allowed to feed the cow. Seeing the good time by Shandilya Rishi on his request, he was also allowed to take the cow for grazing, the time taken out was the auspicious day of Gopashtami. The child Krishna worships the cows, prostrates while doing circumambulation.

Cow is worshiped on this day. After getting up early in the morning, after taking a bath, the feet of the cow are touched. In the morning the cow and its calf are bathed and prepared. Her makeup is done, ghungroos are tied around her feet, other ornaments are worn. Parikrama of Go-Mata is also done. In the morning, after circumambulating the cows, they take them out to graze. Mehandi, roli, turmeric etc. are applied to the parts of the mother cow. Cows are decorated, in the morning the cow-mother is worshiped with incense, lamp, flowers, akshat, roli, jaggery, jalebi, clothes and water, and aarti is performed. After the worship, the cow grass is taken out, the cow-mother is circumambulated, after the parikrama, one goes some distance with the cows. It is said that doing so paves the way for progress. Donations are also given to cowherds on this day. Many people apply tilak by giving them new clothes. In the evening when the cow returns home, they are worshiped again, they are given good food. Specific Feed green fodder to the cow on this day. Those who do not have a cow in their homes, go to the Gaushala and worship the cow. Offer Ganga water, flowers, light a lamp and feed jaggery. Apply tilak to the cow, do bhajan, also worship Gopal (Krishna), generally people donate food and other things in the cowshed according to their ability. “Jai Jai Shree Radhe”

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