तदनुसार संवत् २०७९ कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी को होने वाला है श्रीहरि विष्णु का शयन से जागने के बाद महादेव से प्रथम मिलन। कैसा होगा यह मिलन:- "हरि-हर मिलन" (बैकुंठ चतुर्दशी) बैकुंठ चतुर्दशी कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाई जाती है। यह पर्व भगवान शिव और भगवान विष्णु के एकाकार स्वरूप को समर्पित है। देवप्रबोधिनी एकादशी पर भगवान विष्णु चार माह की नींद से जागते हैं और चतुर्दशी तिथि पर भगवान शिव की पूजा करते हैं। इस तिथि पर जो भी मनुष्य हरि अर्थात भगवान विष्णु और हर अर्थात भगवान शिव की पूजा करता है, उसे बैकुंठ लोक की प्राप्ति होती है। ऐसा वरदान स्वयं भगवान विष्णु ने नारद जी के माध्यम से मानवजन को दिया था। इसीलिए इस दिन को बैकुंठ चतुर्दशी कहा जाता है। आइए, जानते हैं इस व्रत के महत्व और इससे जुड़ी हुई पौराणिक घटनाओं के बारे में :- "प्रचलित कथा" सतयुग की एक घटना का विवरण धार्मिक पुस्तकों में मिलता है। इसके अनुसार, जब भगवान विष्णु को अपनी भक्ति से प्रसन्न कर राजा बलि उन्हें अपने साथ पाताल ले गए, उस दिन आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि थी। चार माह तक बैकुंठ लोक श्रीहरि के बिना सूना रहा और सृष्टि का संतुलन गड़बड़ाने लगा। तब माँ लक्ष्मी विष्णुजी को वापस बैकुंठ लाने लिए पाताल गईं। इस दौरान राजा बलि को भगवान विष्णु ने वरदान दिया कि वह हर साल चार माह के लिए उनके पास पाताल रहने आएँगे। इसलिए भगवान विष्णु हर साल चार माह के लिए पाताल अपने भक्त बलि के पास जाते हैं। जिस दिन माँ लक्ष्मी के साथ भगवान विष्णु बैकुंठ धाम वापस लौटे, उस दिन कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि थी। इस दिन भगवान विष्णु के बैकुंठ लौटने के उत्सव को उनके जागने के उत्सव के रूप में मनाया जाता है। कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को श्रीहरि जागने के बाद चतुर्दशी तिथि को भगवान शिव की पूजा के लिए काशी आए। यहाँ उन्होंने भगवान शिव को एक हजार कमल पुष्प अर्पित करने का प्रण किया। पूजा-अनुष्ठान के समय भगवान शिव ने श्रीहरि विष्णुजी की परीक्षा लेने के लिए एक कमल पुष्प गायब कर दिया। जब श्रीहरि को एक कमल कम होने का अहसास हुआ तो उन्होंने कमल के स्थान पर अपनी एक आँख (कमल नयन) शिवजी को अर्पित करने का प्रण किया। जैसे ही श्रीहरि अपनी आँख अर्पित करनेवाले थे, वहाँ शिवजी प्रकट हो गए। शिवजी ने विष्णुजी के प्रति अपना प्रेम और आभार प्रकट किया। साथ ही उन्हें हजार सूर्यों के समान तेज से परिपूर्ण सुदर्शन चक्र भेंट किया। भगवान शिव के आशीर्वाद और उनके प्रति विष्णुजी के प्रेम के कारण ही इस दिन को हरिहर व्रत-पूजा का दिन कहा जाता है। भगवान विष्णु ने वरदान दिया कि जो भी मनुष्य कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी के दिन विष्णु और शिव की पूजा एक साथ करेगा, उसे बैकुंठ लोक की प्राप्ति होगी। इसीलिए इस तिथि को बैकुंठ चतुर्दशी तिथि भी कहा जाता है। "देवऋषि नारद से जुड़ी है यह कथा" सतयुग में नारदजी देवताओं और मनुष्यों दोनों के ही बीच माध्यम का कार्य करते थे। वह चराचर जगत अर्थात पृथ्वी पर आकर मनुष्यों और सभी प्राणियों का हाल लेते और कैलाश, बैकुंठ लोक और ब्रह्मलोक जाकर चराचर जगत के निवासियों की मुक्ति और प्रसन्नता से जुड़े सवालों का हल प्राप्त करते। फिर अलग-अलग माध्यमों से वह संदेश मनुष्यों तक भी पहुँचाते थे। इसी क्रम में एक बार नारदजी बैकुंठ लोक में भगवान विष्णु के पास पहुँचे और उनसे प्राणियों की मुक्ति का सरल उपाय पूछा। तब भगवान विष्णु नारदजी से कहते हैं, जो भी प्राणी मन-वचन और कर्म से पवित्र रहते हुए, बैकुंठ एकादशी पर पवित्र नदियों के जल में स्नान कर भगवान शिव के साथ मेरी पूजा करता है, वह मेरा प्रिय भक्त होता है और उसे मृत्यु के बाद बैकुंठ लोक की प्राप्ति होती है। "पूजन विधि" इस दिन नदी, सरोवर में स्नान के बाद नदी या तालाब के किनारे 14 दीपक जलाएँ। इसके बाद भगवान विष्णु और शिव की आराधना करें। यदि संभव को तो शिव और विष्णुजी को कमल पुष्प अर्पित करें। विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें। घर में पूजा करते समय गंगाजल से मंदिर में छींटे देकर घी का दीपक जलाएँ। फिर रोली से भगवान विष्णु का तिलक करें और अक्षत अर्पित करें। साथ ही शिवजी पर चंदन का तिलक लगाएँ। मिष्ठान और भोग अर्पित करें। फिर श्रीहरि विष्णु और शिवजी की पूजा, विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ और आरती करें। शाम के समय दोबारा स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहने और दीपक जलाकर बहते जल में प्रवाहित कर दें। इसे दीपदान कहते हैं। दीपदान करना यदि संभव न हो तो मंदिर में दीपक जलाएँ। बुजुर्गों को उपहार देनें और जरूरतमंदों की मदद करने से लाभ मिलता है। जय जय श्री हरि
Ll बढठठ सशस्त्र. रविवार दिनांक 06.11.2022 तदनुसार संवत् २०७९ कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी को होने वाला है श्रीहरि विष्णु का शयन से जागने के बाद महादेव से प्रथम मिलन। कैसा होगा यह मिलन:-👇 “हरि-हर मिलन” (बैकुंठ चतुर्दशी) बैकुंठ चतुर्दशी कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाई जाती है। यह पर्व भगवान शिव और भगवान विष्णु के एकाकार स्वरूप को समर्पित है। देवप्रबोधिनी एकादशी पर भगवान विष्णु चार माह की नींद से जागते हैं और चतुर्दशी तिथि पर भगवान शिव की पूजा करते हैं। इस तिथि पर जो भी मनुष्य हरि अर्थात भगवान विष्णु और हर अर्थात भगवान शिव की पूजा करता है, उसे बैकुंठ लोक की प्राप्ति होती है। ऐसा वरदान स्वयं भगवान विष्णु ने नारद जी के माध्यम से मानवजन को दिया था। इसीलिए इस दिन को बैकुंठ चतुर्दशी कहा जाता है। आइए, जानते हैं इस व्रत के महत्व और इससे जुड़ी हुई पौराणिक घटनाओं के बारे में :- “प्रचलित कथा” सतयुग की एक घटना का विवरण धार्मिक पुस्तकों में मिलता है। इसके अनुसार, जब भगवान विष्णु को अपनी भक्ति से प्रसन्न कर राजा बलि उन्हें अपने साथ पाताल ले गए, उस दिन आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि थी। चार माह तक बैकुंठ लोक श्रीहरि के बिना सूना रहा और सृष्टि का संतुलन गड़बड़ाने लगा। तब माँ लक्ष्मी विष्णुजी को वापस बैकुंठ लाने लिए पाताल गईं। इस दौरान राजा बलि को भगवान विष्णु ने वरदान दिया कि वह हर साल चार माह के लिए उनके पास पाताल रहने आएँगे। इसलिए भगवान विष्णु हर साल चार माह के लिए पाताल अपने भक्त बलि के पास जाते हैं। जिस दिन माँ लक्ष्मी के साथ भगवान विष्णु बैकुंठ धाम वापस लौटे, उस दिन कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि थी। इस दिन भगवान विष्णु के बैकुंठ लौटने के उत्सव को उनके जागने के उत्सव के रूप में मनाया जाता है। कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को श्रीहरि जागने के बाद चतुर्दशी तिथि को भगवान शिव की पूजा के लिए काशी आए। यहाँ उन्होंने भगवान शिव को एक हजार कमल पुष्प अर्पित करने का प्रण किया। पूजा-अनुष्ठान के समय भगवान शिव ने श्रीहरि विष्णुजी की परीक्षा लेने के लिए एक कमल पुष्प गायब कर दिया। जब श्रीहरि को एक कमल कम होने का अहसास हुआ तो उन्होंने कमल के स्थान पर अपनी एक आँख (कमल नयन) शिवजी को अर्पित करने का प्रण किया। जैसे ही श्रीहरि अपनी आँख अर्पित करनेवाले थे, वहाँ शिवजी प्रकट हो गए। शिवजी ने विष्णुजी के प्रति अपना प्रेम और आभार प्रकट किया। साथ ही उन्हें हजार सूर्यों के समान तेज से परिपूर्ण सुदर्शन चक्र भेंट किया। भगवान शिव के आशीर्वाद और उनके प्रति विष्णुजी के प्रेम के कारण ही इस दिन को हरिहर व्रत-पूजा का दिन कहा जाता है। भगवान विष्णु ने वरदान दिया कि जो भी मनुष्य कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी के दिन विष्णु और शिव की पूजा एक साथ करेगा, उसे बैकुंठ लोक की प्राप्ति होगी। इसीलिए इस तिथि को बैकुंठ चतुर्दशी तिथि भी कहा जाता है। “देवऋषि नारद से जुड़ी है यह कथा” सतयुग में नारदजी देवताओं और मनुष्यों दोनों के ही बीच माध्यम का कार्य करते थे। वह चराचर जगत अर्थात पृथ्वी पर आकर मनुष्यों और सभी प्राणियों का हाल लेते और कैलाश, बैकुंठ लोक और ब्रह्मलोक जाकर चराचर जगत के निवासियों की मुक्ति और प्रसन्नता से जुड़े सवालों का हल प्राप्त करते। फिर अलग-अलग माध्यमों से वह संदेश मनुष्यों तक भी पहुँचाते थे। इसी क्रम में एक बार नारदजी बैकुंठ लोक में भगवान विष्णु के पास पहुँचे और उनसे प्राणियों की मुक्ति का सरल उपाय पूछा। तब भगवान विष्णु नारदजी से कहते हैं, जो भी प्राणी मन-वचन और कर्म से पवित्र रहते हुए, बैकुंठ एकादशी पर पवित्र नदियों के जल में स्नान कर भगवान शिव के साथ मेरी पूजा करता है, वह मेरा प्रिय भक्त होता है और उसे मृत्यु के बाद बैकुंठ लोक की प्राप्ति होती है। “पूजन विधि” इस दिन नदी, सरोवर में स्नान के बाद नदी या तालाब के किनारे 14 दीपक जलाएँ। इसके बाद भगवान विष्णु और शिव की आराधना करें। यदि संभव को तो शिव और विष्णुजी को कमल पुष्प अर्पित करें। विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें। घर में पूजा करते समय गंगाजल से मंदिर में छींटे देकर घी का दीपक जलाएँ। फिर रोली से भगवान विष्णु का तिलक करें और अक्षत अर्पित करें। साथ ही शिवजी पर चंदन का तिलक लगाएँ। मिष्ठान और भोग अर्पित करें। फिर श्रीहरि विष्णु और शिवजी की पूजा, विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ और आरती करें। शाम के समय दोबारा स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहने और दीपक जलाकर बहते जल में प्रवाहित कर दें। इसे दीपदान कहते हैं। दीपदान करना यदि संभव न हो तो मंदिर में दीपक जलाएँ। बुजुर्गों को उपहार देनें और जरूरतमंदों की मदद करने से लाभ मिलता है। जय जय श्री हरि