रावण दहन होगा और पाप पर पुण्य के
अधर्म पर धर्म के
विजय का उत्सव मनाया जाएगा।
पर रावण कभी मरता नहीं,
यदि मर गया होता तो प्रतिवर्ष दहन न करना पड़ता।
कारण ?
कारण यह कि यह रावण कहीं बाहर नहीं है,
हमारे अंदर है।
प्रत्येक व्यक्ति के अन्दर रावण है और राम भी।
और इनका संघर्ष निरंतर चलता रहता है।
सदवृत्तियों और बुरी वृत्तियों के मध्य यह संघर्ष अनवरत चलता रहता है हमारे भीतर।
जब हमारा शुभ कमजोर पड़ जाता है तो रावण जीतता रहता है और जब शुभ शक्तिशाली होता है तो राम जीतते प्रतीत होते हैं।
और राम तभी जीतते हैं जब हमारी आंतरिक शक्ति बढ़ी हुई होती है।
राम रावण को तभी मार पाते हैं जब “शक्तिपूजा” के द्वारा उन्हें विजयी होने का आशीर्वाद मिलता है।
जब शक्तिपूजा हेतु अपने ‘नेत्र’ तक समर्पित करने को तत्पर हो जाते हैं।
नेत्र समर्पित करने का तात्पर्य है कि बाहर दिखने वाले सभी उपाय निरर्थक हैं,
जब आंतरिक नेत्र पर ही निर्भर होंगे, तभी मां उन्हें विजयी होने का आशीर्वाद देंगी।
” होगी जय होगी जय हे पुरुषोत्तम नवीन,
कह महाशक्ति राम के वदन में हुईं लीन” ( निराला)
इस नवीन पुरुषोत्तम के मुख में ही महाशक्ति विलीन हो पाती हैं।
यह संयोग नहीं है कि नवरात्रि में महाशक्ति की उपासना के पश्चात ही राम आशीर्वाद पाते हैं और विजयी होते हैं, यही मार्ग है।
आइये हम संकल्प करें कि अपनी शुभ वृत्तियों को बढ़ाकर ‘ नवीन पुरुषोत्तम’ बनने का प्रयास करें और अपने अन्दर के रावण पर विजय प्राप्त कर सकें।
तभी “सर्वे भवन्तु सुखिनः” का आदर्श प्राप्त हो सकेगा।
प्रभु सबका कल्याण करें।
विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाएं।
Ravan will be burnt and sin will be rewarded for virtue. of religion over unrighteousness Victory will be celebrated.
But Ravana never dies, If he had died, he would not have had to burn it every year.
cause ? Because this Ravana is not out anywhere, is inside us.
There is Ravana in everyone and Rama too. And their struggle continues. This struggle between good tendencies and bad tendencies goes on continuously within us.
When our auspiciousness becomes weak, Ravana continues to win, and when the good is strong, Rama seems to be victorious. And Rama wins only when our inner strength is increased.
Rama can kill Ravana only when he is blessed to be victorious through “Shakti Puja”. When they are ready to dedicate their ‘eyes’ for Shakti worship.
Dedication of the eye means that all outward-looking measures are futile, When we depend on the inner eye, only then the mother will bless them to be victorious. “Hogi will be Jai Hogi, Jai O Purushottam Naveen, Kaha Mahashakti was absorbed in the bosom of Rama” (Wonderful)
Only in the mouth of this new Purushottam, the superpower gets merged.
It is not a coincidence that only after worshiping Mahashakti in Navratri, Rama gets blessings and becomes victorious, this is the way.
Let us resolve that by increasing our auspicious tendencies, we should try to become the ‘New Purushottama’ and we can conquer the Ravana within us.
Only then can the ideal of “Let everyone be happy” be achieved. May the Lord bless everyone.
Wishing you a very Happy Vijayadashami.