धर्म के विषय मे सभी विचार करते हैं कोई अपने ही धर्म के बारे में, कोई अन्य के धर्म के बारे में, किसी के भी धर्म को लेकर चर्चाएं होती रहती है।कोई भी ऐसा नहीं है जो धर्म के बारे चर्चा नही करता हो, लेकिन वास्तव में धर्म क्या है कोई यह समझ पाया है ।धर्म मनुष्य को दूसरे मनुष्य के साथ, समस्त सृष्टि के साथ सुख पूर्वक जीने का ज्ञान देता है यही कारण है किसी के धर्म के स्थान पर मनुष्य को शान्ति प्राप्त होती है क्या यह हम सभी का अनुभव नही है अर्थात धर्म मनुष्य के सारे संघर्ष का नाश करता है परन्तु यह किस प्रकार सम्भव है कि किसी मनुष्य को किसी अन्य मनुष्य के साथ कोई संघर्ष ना हो विचार कीजिए जहा प्रेम होता है ।वहा संघर्ष भी होता है।
आप सभी कहेंगे होता है किन्तु आप हम सभी थोड़ा और विचार करेंगे तो यह जान जायेंगे कि जिस समय संघर्ष होता है और जिस समय प्रेम का विस्मरण हो जाता है और फिर ईर्ष्याये जागती है क्रोध जागता है किन्तु प्रेम नही जागता कियोकि जहा प्रेम जागता है वहा सारे विवाद सारे संघर्ष सारे झगड़े नष्ट हो जाते हैं। यदि ऐसा ही प्रेम सारे समाज सारे विश्व के लिए जागृत हो तो सारे मनुष्य के लिए, पशु पक्षी के लिए, घास के एक एक तिनके के लिए भी हृदय में प्रेम हो तो क्या कोई दोष का कारण रह जाता है “नही ना” एक व्यक्ति के हृदय में जो दूसरे व्यक्ति के लिए प्रेम का आभास होता है वही आभास समस्त सृष्टि के लिए हो तो उसे करुणा कहा जाता है।
करुणा अर्थात सारे समाज सारे विश्व का साकार, सबके लिए केवल प्रेम और कुछ नही चाहे किसी के लिए कोई विरोध नहीं, करुणा ही वास्तव मे धर्मो का ताप है धर्म यदि वृक्ष है तो करुणा ही उसकी मूल जड़ है। किन्तु बार बार ऐसा समय आता है मनुष्य धर्म को भूल ही जाता है बार बार परम्पराओ और नियम को पकड़ कर बैठ जाता है और करुणा को भुला ही देता है और यह समाज, जगत भर जाता है संघर्षों से, ईर्ष्याओ से,शोषण से,क्रोध से,वैर से अर्थात अधर्म से और तब परमात्मा को अवतार धारण करना पड़ता है। मनुष्य को धर्म का वास्तविक ज्ञान देने के लिए,आप हम सभी विचार करते हुए सभी के साथ प्रेम से मिलकर कहे। सत्य सनातन धर्म की जय हो