हिन्दू धर्म के यह प्रसिद्ध बारह संवाद, जानकर चौंक जायेंगे

हिन्दू धर्म में दो लोगों के बीच होने वाले ऐसे कौन से विश्‍व प्रसिद्ध संवाद है जिन्हें पढ़कर या सुनकर लाखों लोगों का जीवन बदल गया है और जिन्हें पढ़कर दुनियभार के राजनीतिज्ञ, नीतिज्ञ, वैज्ञानिक, आध्यामिक और दार्शनिकों ने अपना एक अलग ही धर्म, दर्शन, नीति और विज्ञान का सिद्धांत गढ़ा।

यह तय है कि इन्हें पढ़कर आपकी जिंदगी में शांति, दृढ़ता, निर्भिकता और बुद्धि का विकास होगा। हम यहां आपके लिए ऐसी जानकारी लाएं हैं जिन्हें जानकार आप निश्‍चित ही हैरान रह जाएंगे।

पहला संवाद,अष्टावक्र और जनक संवाद !!

अष्टावक्र दुनिया के प्रथम ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने सत्य को जैसा जाना वैसा कह दिया। न वे कवि थे और न ही दार्शनिक। चाहे वे ब्राह्मणों के शास्त्र हों या श्रमणों के, उन्हें दुनिया के किसी भी शास्त्र में कोई रुचि नहीं थी। उनका मानना था कि सत्य शास्त्रों में नहीं लिखा है। शास्त्रों में तो सिद्धांत और नियम हैं, सत्य नहीं, ज्ञान नहीं। ज्ञान तो तुम्हारे भीतर है।

अष्टावक्र ने जो कहा वह ‘अष्टावक्र गीता’ नाम से प्रसिद्ध है। राजा जनक ने अष्टावक्र को अपना गुरु माना था। राजा जनक और अष्टावक्र के बीच जो संवाद हुआ उसे ‘अष्टावक्र गीता’ के नाम से जाना जाता है।

दूसरा संवाद,श्रीकृष्ण-अर्जुन संवाद!

हिन्दू धर्म के एकमात्र धर्मग्रंथ है वेद। वेदों के चार भाग हैं- ऋग, यजु, साम और अथर्व। वेदों के सार को उपनिषद कहते हैं और उपनिषदों का सार या निचोड़ गीता में हैं। उपनिषदों की संख्या 1000 से अधिक है उसमें भी 108 प्रमुख हैं। गीता के ज्ञान को भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कुरुक्षेत्र में खड़े होकर दिया था। यह श्रीकृष्‍ण-अर्जुन संवाद नाम से विख्‍यात है।

किसी के पास इतना समय नहीं है कि वह वेद या उपनिषद पढ़ें उनके लिए गीता ही सबसे उत्तम धर्मग्रंथ है। महाभारत के 18 अध्याय में से एक भीष्म पर्व का हिस्सा है गीता। गीता को अच्‍छे से समझने से ही आपकी समझ में बदलाव आ जाएगा। धर्म, कर्म, योग, सृष्टि, युद्ध, जीवन, संसार आदि की जानकारी हो जाएगी। सही और गलत की पहचान होने लगेगी। तब आपके दिमाग में स्पष्टता होगी द्वंद्व नहीं। जिसने गीता नहीं पढ़ी वह हिन्दू धर्म के बारे में हमेशा गफलत में ही रहेगा।

श्रीकृष्ण के गुरु घोर अंगिरस थे। घोर अंगिरस ने देवकी पुत्र कृष्ण को जो उपदेश दिया था वही उपदेश कृष्ण गीता में अर्जुन को देते हैं। छांदोग्य उपनिषद में उल्लेख मिलता है कि देवकी पुत्र कृष्‍ण घोर अंगिरस के शिष्य हैं और वे गुरु से ऐसा ज्ञान अर्जित करते हैं जिससे फिर कुछ भी ज्ञातव्य नहीं रह जाता है।

तीसरा संवाद,यक्ष-युद्धिष्ठिर संवाद !

यक्ष और युद्धिष्ठिर के बीच हुए संवाद को यक्ष प्रश्न कहा जाता है। यक्ष और युधिष्ठिर के बीच जो संवाद हुआ है उसे जानने के बाद आप जरूर हैरान रह जाएंगे। यह अध्यात्म, दर्शन और धर्म से जुड़े प्रश्न ही नहीं है, यह आपकी जिंदगी से जुड़े प्रश्न भी है। आप भी अपने जीवन में कुछ प्रश्नों के उत्तर ढूंढ ही रहे होंगे।

भारतीय इतिहास ग्रंथ महाभारत में ‘यक्ष-युधिष्ठिर संवाद’ नाम से एक बहु चर्चित प्रकरण है। संवाद का विस्तृत वर्णन वनपर्व के अध्याय 312 एवं 313 में दिया गया है। यक्ष ने युद्धिष्ठिर से लगभग 124 सवाल किए थे। यक्ष ने सवालों की झड़ी लगाकर युधिष्ठिर की परीक्षा ली। अनेकों प्रकार के प्रश्न उनके सामने रखे और उत्तरों से संतुष्ट हुए। अंत में यक्ष ने चार प्रश्न युधिष्ठिर के समक्ष रखे जिनका उत्तर देने के बाद ही उन्होंने मृत पांडवों (अर्जुन, भीम, नकुल और सहदेव) को जिंदा कर दिया था। यह सवाल जीवन, संसार, सृष्टि, ईश्‍वर, प्रकृति, नीति, ज्ञान, धर्म, स्त्री, बुराई आदि अनेकों विषयों के संबंधित थे।

चौथा संवाद,लक्ष्मण और रावण संवाद !

प्रभु श्रीराम के तीर से जब रावण मरणासन्न अवस्था में हो गया, तब श्रीराम ने लक्ष्मण से उसके पास जाकर शिक्षा लेने को कहा। श्रीराम की यह बात सुनकर लक्ष्मण चकित रह गए।

भगवान श्रीराम ने लक्ष्‍मण से कहा कि इस संसार में नीति, राजनीति और शक्ति का महान पंडित रावण अब विदा हो रहा है, तुम उसके पास जाओ और उससे जीवन की कुछ ऐसी शिक्षा ले लो जो और कोई नहीं दे सकता।

श्रीराम की बात मानकर लक्ष्मण मरणासन्न अवस्था में पड़े रावण के नजदीक सिर के पास जाकर खड़े हो गए, लेकिन रावण ने कुछ नहीं कहा। लक्ष्मण ने लौटकर प्रभु श्रीराम से कहा कि वे तो कुछ बोलते ही नहीं। तब श्रीराम ने कहा यदि किसी से ज्ञान प्राप्त करना है तो उसके चरणों के पास हाथ जोड़कर खड़े होना चाहिए, न कि सिर के पास। श्रीराम ने लक्ष्मण से कहा, जाओ और रावण के चरणों के पास बैठो। यह बात सुनकर लक्ष्मण इस बार रावण के चरणों में जाकर बैठ गए। रावण ने लक्ष्मण को जो सीख दी उसे सभी जानते हैं।

पांचवां संवाद, अंगद और रावण के बीच संवाद!!!!!

गोस्वामी तुलसीदास कृत महाकाव्य श्रीरामचरितमानस के लंकाकांड में बालि पुत्र अंगद रावण की सभा में रावण को सीख देते हुए बताते हैं कि कौन-से ऐसे 14 दुर्गुण है जिसके होने से मनुष्य मृतक के समान माना जाता है।

अंगद-रावण के बीच जो संवाद हुआ था वह बहुत ही रोचक था उसे पढ़ने और उसकी व्याख्या जानेने से व्यक्ति को अपने जीवन की स्थिति के बारे में बहुत कुछ ज्ञान हो जाता है।

छठा संवाद, यमराज-नचिकेता संवाद !!!!!!!!!!

वाजश्रवसपुत्र नचिकेता और मृत्यु के देवता यमराज के बीच जो संवाद होता है वह विश्‍व का प्रथम दार्शनिक संवाद माना जा सकता है। वाजश्रवस अपने पुत्र को क्रोधवा यमराज को दान कर देते हैं। नचिकेता तब यमलोक पहुंच जाते हैं।

यमलोक में उसे वक्त यमदूत नचिकेता से कहते हैं कि यमराज इस वक्त नहीं है। तब नचिकेता तीन दिन तक यमराज की प्रतिक्षा करते हैं। यमपुरी के द्वार पर बैठा नचिकेता बीती बातें सोच रहा था। उसे इस बात का संतोष था कि वह पिता की आज्ञा का पालन कर रहा था। लगातार तीन दिन तक वह यमपुरी के बाहर बैठा यमराज की प्रतीक्षा करता रहा। तीसरे दिन जब यमराज आए तो वे नचिकेता को देखकर चौंके।

जब उन्हें उसके बारे में मालूम हुआ तो वे भी आश्चर्यचकित रह गए। अंत में उन्होंने नचिकेता को अपने कक्ष में बुला भेजा। यमराज के कक्ष में पहुंचते ही नचिकेता ने उन्हें प्रणाम किया। उस समय उसके चेहरे पर अपूर्व तेज था। उसे देखकर यमराज बोले- ‘वत्स, मैं तुम्हारी पितृभक्ति और दृढ़ निश्चय से बहुत प्रसन्न हुआ। तुम मुझसे कोई भी तीन वरदान मांग सकते हो।’

सातवां संवाद, शिव-पार्वती संवाद !

रामायण या रामचरित के बालकांड में शिव-पार्वती संवाद का वर्णन मिलता है। ‘गायत्री-मंजरी’ में भी ‘शिव-पार्वती संवाद’ आता है। हम इस संवाद की बात नहीं कर रहे हैं। भारत के कश्मीर राज्य में अमरनाथ नामक गुफा है जहां जून माह में बाबा अमरनाथ के दर्शन करने के लिए हजारों हिन्दू जाते हैं। दरअसल, यह गुफा शिव और पार्वती संवाद की साक्षी है। यहां भगवान शिव ने माता पार्वती को ‘रहस्यमयी ज्ञान’ की शिक्षा दी थी। इस ज्ञान को विज्ञान भैरव तंत्र में संग्रहित किया गया है।

शिव ने अपनी अर्धांगिनी पार्वती को मोक्ष हेतु अमरनाथ की गुफा में जो ज्ञान दिया, उस ज्ञान की आज अनेकानेक शाखाएं हो चली हैं। वह ज्ञानयोग और तंत्र के मूल सूत्रों में शामिल है। ‘विज्ञान भैरव तंत्र’ एक ऐसा ग्रंथ है जिसमें भगवान शिव द्वारा पार्वती को बताए गए 112 ध्यान सूत्रों का संकलन है।

अमरनाथ के अमृत वचन :शिव द्वारा मां पार्वती को जो ज्ञान दिया गया, वह बहुत ही गूढ़-गंभीर तथा रहस्य से भरा ज्ञान था। उस ज्ञान की आज अनेकानेक शाखाएं हो चली हैं। वह ज्ञानयोग और तंत्र के मूल सूत्रों में शामिल है। ‘विज्ञान भैरव तंत्र’ एक ऐसा ग्रंथ है जिसमें भगवान शिव द्वारा पार्वती को बताए गए 112 ध्यान सूत्रों का संकलन है।

योगशास्त्र के प्रवर्तक भगवान शिव के ‘‍विज्ञान भैरव तंत्र’ और ‘शिव संहिता’ में उनकी संपूर्ण शिक्षा और दीक्षा समाई हुई है। तंत्र के अनेक ग्रंथों में उनकी शिक्षा का विस्तार हुआ है। भगवान शिव के योग को तंत्र या वामयोग कहते हैं। इसी की एक शाखा हठयोग की है। भगवान शिव कहते हैं- ‘वामो मार्ग: परमगहनो योगितामप्यगम्य:’ अर्थात वाम मार्ग अत्यंत गहन है और योगियों के लिए भी अगम्य है। -मेरुतंत्र

आठवां संवाद,याज्ञवल्क्यजी-गार्गी संवाद!!!!!!!!!

वृहदारण्यक उपनिषद् में दोनों के बीच हुए संवाद का उल्लेख मिलता है। राजा जनक अपने राज्य में शास्त्रार्थ का आयोजन करते रहते थे। जो भी शास्त्रार्थ में जीत जाता था वह सोने से लदी गाएं ले जाता था। एक बार के आयोजन में याज्ञवल्क्यजी को भी निमंत्रण मिला था। तब याज्ञवल्क्यजी ने शास्त्रार्थ से पहले ही अपने एक शिष्य से कहा- बेटा! इन गौओं को अपने यहां हांक ले चलो।

ऐसे में सभी ऋषि क्रुद्ध होकर उनसे शास्त्रार्थ करने लगे। याज्ञवल्क्यजी ने सबके प्रश्नों का यथाविधि उत्तर दिया और सभी को संतुष्ट कर दिया। उस सभा में ब्रह्मवादिनी गार्गी भी बुलायी गयी थी। सबके पश्चात् याज्ञवल्क्यजी से शास्त्रार्थ करने वे उठी। दोनों के बीच जो शास्त्रार्थ हुआ। गार्गी ने याज्ञवल्क्यजी से कई प्रश्न किए। अंत में याज्ञवल्क्य ने कहा- गार्गी! अब इससे आगे मत पूछो। इसके बाद महर्षि याज्ञवक्ल्यजी ने यथार्थ सुख वेदान्ततत्त्‍‌व समझाया, जिसे सुनकर गार्गी परम सन्तुष्ट हुई और सब ऋषियों से बोली-भगवन्! याज्ञवल्क्य यथार्थ में सच्चे ब्रह्मज्ञानी हैं। गौएं ले जाने का जो उन्होंने साहस किया वह उचित ही था।

नौवां संवाद, काक भुशुण्डी-गरुड़जी संवाद !!!!!!!!

काक भुशुण्‍डी ने पक्षीराज गरुड़जी को राम की कथा पहले ही सुना दी थी। इसका वर्णन हमें रामायण और रामचरित मानस में मिलता है। शिवजी माता पार्वती से कहते हैं कि इससे पहले यह सुंदर कथा काक भुशुण्डी ने गरुड़जी से कही थी। रामचरित मानस में काकभुशुण्डी ने अपने जन्म की पूर्वकथा और कलि महिमा का वर्णन किया है। इसका उल्लेख रामचरित मानस में मिलता है।

नारदजी की आज्ञा से जब भगवान राम को नागपाश से छुड़ाकर गरुड़जी पुन: अपने धाम लौट रहे होते हैं तब उनके मन में शंका उत्पन्न होती है कि यह कैसे भगवान जो एक तुच्छ राक्षस द्वारा फेंके गए नागपाश से ही बंध गए? इस शंका समाधान के लिए वे नारद से पूछते हैं। नारदजी उन्हें ब्रह्मा के पास भेज देते हैं। ब्रह्माजी उन्हें शिवजी के पास भेज देते हैं। तब शिवजी ने कहा भगवान की माया बताना मुश्‍किल है। एक पक्षी ही एक पक्षी को समझा सकता है अत: तुम काक भिशुण्डी के पास जाओ। काक भुशुण्डी और गरुड़जी के बीच जो संवाद होता है वह अतुलनीय है।

दसवां संवाद, युधिष्ठिर-भीष्म संवाद

अंतिम वक्त में पितामह भीष्म ने युधिष्ठिर को समझाया धर्म का मर्म। क्या कहा भीष्म ने युधिष्ठिर से जब वे तीरों की शैया पर लेटे हुए थे?

भीष्म यद्यपि शरशय्या पर पड़े हुए थे फिर भी उन्होंने श्रीकृष्ण के कहने से युद्ध के बाद युधिष्ठिर का शोक दूर करने के लिए राजधर्म, मोक्षधर्म और आपद्धर्म आदि का मूल्यवान उपदेश बड़े विस्तार के साथ दिया। इस उपदेश को सुनने से युधिष्ठिर के मन से ग्लानि और पश्‍चाताप दूर हो जाता है। यह उपदेश महाभारत के भीष्मस्वर्गारोहण पर्व में मिलता है।

ग्यारहवां संवाद,धृतराष्ट्र-विदुर संवाद

महाभारत’ की कथा के महत्वपूर्ण पात्र विदुर को कौरव-वंश की गाथा में विशेष स्थान प्राप्त है। विदुर हस्तिनापुर राज्‍य के शीर्ष स्‍तंभों में से एक अत्‍यंत नीतिपूर्ण, न्यायोचित सलाह देने वाले माने गए है।

हिन्दू ग्रंथों में दिए जीवन-जगत के व्यवहार में राजा और प्रजा के दायित्वों की विधिवत नीति की व्याख्या करने वाले महापुरुषों में महात्मा विदुर सुविख्यात हैं। उनकी विदुर-नीति वास्तव में महाभारत युद्ध से पूर्व युद्ध के परिणाम के प्रति शंकित हस्तिनापुर के महाराज धृतराष्ट्र के साथ उनका संवाद है।

वास्तव में महर्षि वेदव्यास रचित ‘महाभारत’ का उद्योग पर्व ‘विदुर नीति’ के रूप में वर्णित है। महाभारत में एक और जहां महत्वपूर्ण कृष्ण अर्जुन संवाद, यक्ष युधिष्‍ठिर संवाद, धृतराष्ट्र संजय संवाद, भीष्म युद्धिष्ठिर संवाद है तो दूसरी और धृतराष्ट और विदूर का महत्वपूर्ण संवाद भी वर्णित है। प्रत्येक हिन्दू को महाभारत पढ़ना चाहिए। इस घर में भी रखना चाहिए। जो यह कहता है कि महाभारत घर में रखने से महाभारत होती है वह मूर्ख, अज्ञानी या धूर्त व्यक्ति हिन्दुओं को अपने धर्म से दूर रखना चाहता होगा।

बारहवां संवाद,आदि शंकराचार्य-मंडन मिश्र संवाद!

आदि शंकराचार्य देशभर के साधु-संतों और विद्वानों से शास्त्रार्थ करते करते अंत में प्रसिद्ध विद्वान मंडन मिश्र के गांव पहुंचे थे। यहां उन्होंने 42 दिनों तक लगातार हुए शास्त्रार्थ किया जिसकी निर्णायक थीं मंडन मिश्र की पत्नी भारती।

आदि शंकराचार्य और मंडन मिश्र के बीच जो संवाद हुआ उस संवाद की बहुत चर्चा होती है। हालांकि आदि शंकराचार्य ने मंडन को पराजित कर तो दिया, पर उनकी पत्नी के एक सवाल का जवाब नहीं दे पाए और अपनी हार मान ली।

हालांकि उपरोक्त के अलावा भी और भी हैं लेकिन यहां कुछ प्रमुख ही प्रस्तुत किए गए हैं। अगर आप इन बारह सम्वादों में किसी संवाद के बारे में विस्तार से जानना चाहते हैं, तो आप हमें संदेश के द्वारा अवगत करायें।



What are the world famous dialogues that take place between two people in the Hindu religion, which have changed the lives of millions of people after reading or listening to them and after reading which the politicians, politicians, scientists, spiritualists and philosophers of the world have developed their own religion, philosophy, Formulated the theory of policy and science.

It is certain that after reading these, peace, determination, fearlessness and intelligence will develop in your life. Here we have brought such information for you which you will definitely be surprised to know.

First dialogue, Ashtavakra and Janak dialogue!!

Ashtavakra was the first person in the world who told the truth as it was known. He was neither a poet nor a philosopher. Be it the scriptures of Brahmins or Shramanas, he had no interest in any scripture of the world. He believed that truth is not written in the scriptures. There are principles and rules in the scriptures, not truth, not knowledge. Knowledge is within you.

What Ashtavakra said is famous by the name ‘Ashtavakra Geeta’. King Janak considered Ashtavakra as his guru. The dialogue that took place between King Janak and Ashtavakra is known as ‘Ashtavakra Geeta’.

Second dialogue, Shri Krishna-Arjun dialogue!

Vedas are the only religious scriptures of Hindu religion. The Vedas have four parts – Rig, Yaju, Sama and Atharva. The essence of the Vedas is called Upanishads and the essence or essence of Upanishads is in Geeta. The number of Upanishads is more than 1000, out of which there are 108 major ones. Lord Shri Krishna gave the knowledge of Geeta to Arjun while standing in Kurukshetra. This is famous by the name Shri Krishna-Arjun dialogue.

No one has enough time to read Vedas or Upanishads. For them, Geeta is the best scripture. Geeta is a part of Bhishma Parva, one of the 18 chapters of Mahabharata. Only by understanding Geeta well will there be a change in your understanding. You will get information about religion, karma, yoga, creation, war, life, world etc. Right and wrong will begin to be identified. Then there will be clarity in your mind and not conflict. One who has not read Geeta will always remain confused about Hindu religion.

Shri Krishna’s guru was the fierce Angiras. The advice given by Ghor Angiras to Devaki’s son Krishna is the same advice Krishna gives to Arjun in the Geeta. It is mentioned in Chandogya Upanishad that Devaki’s son Krishna is the disciple of Ghor Angiras and he acquires such knowledge from the Guru that nothing remains to be known.

Third dialogue, Yaksha-Yudhisthir dialogue!

The dialogue between Yaksha and Yudhishthir is called Yaksha Prashna. You will definitely be surprised after knowing the conversation that took place between Yaksha and Yudhishthir. This is not only a question related to spirituality, philosophy and religion, it is also a question related to your life. You too must be looking for answers to some questions in your life.

There is a much discussed episode in the Indian historical text Mahabharata named ‘Yaksha-Yudhishthir Dialogue’. Detailed description of the dialogue is given in chapters 312 and 313 of Vanparva. Yaksha had asked about 124 questions to Yudhishthir. The Yaksha tested Yudhishthir by asking a series of questions. Many types of questions were put before him and he was satisfied with the answers. At last the Yaksha put four questions before Yudhishthir, only after answering which he brought the dead Pandavas (Arjuna, Bhima, Nakul and Sahadev) back to life. These questions were related to many topics like life, world, creation, God, nature, policy, knowledge, religion, women, evil etc.

Fourth dialogue, Lakshman and Ravana dialogue!

When Ravana was on the verge of death due to the arrow of Lord Shri Ram, Shri Ram asked Lakshman to go to him and take education. Lakshman was astonished to hear these words of Shri Ram.

Lord Shri Ram told Lakshman that Ravana, the great scholar of policy, politics and power in this world, is now leaving, you should go to him and take some such lessons of life from him which no one else can give.

Following Shri Ram’s advice, Lakshman stood near the head of Ravana who was dying, but Ravana did not say anything. Lakshman returned and told Lord Shri Ram that he does not say anything. Then Shri Ram said that if you want to gain knowledge from someone then you should stand with folded hands near his feet and not near his head. Shri Ram said to Lakshman, go and sit near the feet of Ravana. Hearing this, Lakshman this time went and sat at Ravana’s feet. Everyone knows the lesson Ravana gave to Lakshman.

Fifth dialogue, dialogue between Angad and Ravana!!!!!

In the Lankakand of Shri Ramcharitmanas, the epic poem by Goswami Tulsidas, in the meeting of Bali’s son Angad, while giving a lesson to Ravana, he tells Ravana that there are 14 bad qualities due to which a person is considered like a dead person.

The dialogue that took place between Angad and Ravana was very interesting. By reading it and knowing its interpretation, a person gets to know a lot about his life situation.

Sixth dialogue, Yamraj-Nachiketa dialogue!!!!!!!!!!

The dialogue that takes place between Vajashravasputra Nachiketa and Yamraj, the god of death, can be considered the world’s first philosophical dialogue. Vajashravas donates his son to Krodhava Yamraj. Nachiketa then reaches Yamalok.

In Yamlok, the messenger of Yam tells Nachiketa that Yamraj is not present at this time. Then Nachiketa waits for Yamraj for three days. Sitting at the gate of Yampuri, Nachiketa was thinking about the past. He was satisfied that he was following his father’s orders. For three consecutive days he sat outside Yampuri waiting for Yamraj. When Yamraj came on the third day, he was shocked to see Nachiketa.

When they came to know about him, they too were surprised. At last he called Nachiketa to his room. As soon as Yamraj reached the room, Nachiketa saluted him. At that time there was an extraordinary glow on his face. Seeing him, Yamraj said – ‘Vatsa, I am very pleased with your filial piety and determination. You can ask for any three boons from me.

Seventh dialogue, Shiva-Parvati dialogue!

Shiva-Parvati dialogue is described in Balakand of Ramayana or Ramcharita. ‘Shiv-Parvati dialogue’ also appears in ‘Gayatri-Manjari’. We are not talking about this dialogue. There is a cave named Amarnath in the Indian state of Kashmir where thousands of Hindus go to see Baba Amarnath in the month of June. Actually, this cave is a witness to the dialogue between Shiva and Parvati. Here Lord Shiva taught ‘mysterious knowledge’ to Mother Parvati. This knowledge has been stored in Vigyan Bhairava Tantra.

The knowledge that Shiva gave to his better half Parvati in the cave of Amarnath for salvation, has today developed into many branches. He is included in the basic sutras of Gyan Yoga and Tantra. ‘Vigyan Bhairav ​​Tantra’ is a book which contains a compilation of 112 meditation sutras told by Lord Shiva to Parvati.

Amarnath’s Amrit Vachan: The knowledge given by Shiva to Mother Parvati was a very profound and mysterious knowledge. Today there are many branches of that knowledge. He is included in the basic sutras of Gyan Yoga and Tantra. ‘Vigyan Bhairav ​​Tantra’ is a book which contains a compilation of 112 meditation sutras told by Lord Shiva to Parvati.

The entire education and initiation of Lord Shiva, the originator of Yogashastra, is contained in his ‘Vigyan Bhairava Tantra’ and ‘Shiv Samhita’. His teachings have been expanded upon in many texts of Tantra. Yoga of Lord Shiva is called Tantra or Vamayoga. One branch of this is Hatha Yoga. Lord Shiva says- ‘Vamo Marg: Paramgahano Yogitampyagamya’ meaning the left path is extremely deep and inaccessible even to yogis. -spinal system

Eighth Dialogue, Yajnavalkya-Gargi Dialogue!!!!!!!!!

There is mention of the conversation between the two in Brihadaranyaka Upanishad. King Janak used to organize debates in his kingdom. Whoever won the debate took away cows laden with gold. Yajnavalkyaji was also invited to one event. Then Yajnavalkyaji said to one of his disciples even before the debate – Son! Take these cows to your place.

All the sages became angry and began to argue with him. Yajnavalkya answered everyone’s questions properly and satisfied everyone. Brahmavadini Gargi was also invited to the meeting. After all, she got up to argue with Yajnavalkya. The scriptural debate that took place between the two. Gargi asked Yajnavalkya many questions. Finally Yajnavalkya said: Gargi! Don’t ask any further. After that, Maharshi Yajnavaklyaji explained the Vedanta Tattva of true happiness, which Gargi was very satisfied to hear and said to all the sages, “Lord! Yajnavalkya is in reality a true Brahmjnani. The cows they ventured to take were justified.

Ninth dialogue, Kak Bhusundi-Garudji dialogue!!!!!!!!

Kak Bhusundi had already narrated the story of Ram to the bird king Garudji. We find its description in Ramayana and Ramcharit Manas. Lord Shiva tells Mother Parvati that earlier this beautiful story was told by Kak Bhusundi to Garudji. In Ramcharit Manas, Kakbhushundi has described the previous story of his birth and the glory of Kali. It is mentioned in Ramcharit Manas.

On the orders of Naradji, when Garudji was returning to his abode after freeing Lord Rama from the snake’s noose, then a doubt arose in his mind that how could this Lord get tied to the snake’s noose thrown by an insignificant demon? To solve this doubt they ask Narada. Naradji sends them to Brahma. Lord Brahma sends them to Lord Shiva. Then Shivji said that it is difficult to explain the illusion of God. Only a bird can explain to another bird, so you go to Kak Bhishundi. The dialogue that takes place between Kak Bhusundi and Garudji is incomparable.

Tenth dialogue, Yudhishthir-Bhishma dialogue

At the last moment, grandfather Bhishma explained the essence of religion to Yudhishthir. What did Bhishma say to Yudhishthira when he was lying on the bed of arrows?

Even though Bhishma was lying on the bed, yet at the behest of Shri Krishna, he gave valuable advice in detail about Rajdharma, Mokshadharma and Aapadharma etc. to remove the grief of Yudhishthira after the war. By listening to this sermon, guilt and remorse are removed from Yudhishthir’s mind. This sermon is found in the Ascension Parva of Bhishma of Mahabharata.

Eleventh dialogue, Dhritarashtra-Vidur dialogue

Vidur, an important character of the story of Mahabharata, has a special place in the saga of Kaurava dynasty. Vidur Hastinapur is considered to be one of the top pillars of the state and gives very ethical, fair advice.

Mahatma Vidur is well-known among the great men who explained the proper policy of responsibilities of the king and the people in the conduct of life given in the Hindu scriptures. His Vidur-Niti is actually his dialogue with Maharaj Dhritarashtra of Hastinapur, who was doubtful about the outcome of the war, before the Mahabharata war.

In fact, the Udyog Parva of ‘Mahabharata’ written by Maharishi Vedvyas is described as ‘Vidur Niti’. On the one hand, in Mahabharata, there are important Krishna Arjun dialogues, Yaksha Yudhishthir dialogue, Dhritarashtra Sanjay dialogue, Bhishma Yudhishthir dialogue and on the other hand, important dialogues between Dhritarashtra and Vidur are also mentioned. Every Hindu should read Mahabharata. Should be kept in this house also. The one who says that keeping Mahabharata at home leads to Mahabharata must be a foolish, ignorant or cunning person who wants to keep Hindus away from their religion.

Twelfth dialogue, Adi Shankaracharya-Mandan Mishra dialogue!

Adi Shankaracharya, while discussing with sages, saints and scholars from all over the country, finally reached the village of famous scholar Mandan Mishra. Here he held debates for 42 consecutive days whose judge was Mandan Mishra’s wife Bharti.

The dialogue between Adi Shankaracharya and Mandan Mishra is much discussed. Although Adi Shankaracharya defeated Mandan, he could not answer one of his wife’s questions and accepted defeat.

Although there are more than the above, only a few major ones have been presented here. If you want to know in detail about any dialogue in these twelve dialogues, then please inform us through message.

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