हिंदू ही जलाते हैं मृत शरीर को क्योंकि जब तक शरीर जल न जाए, तब तक आत्मा शरीर के आसपास भटकती है।
जैसे ही शरीर मरता है, वैसे ही आत्मा शरीर के आसपास वर्तुलाकार घूमने लगती है। कोशिश करती है फिर से प्रवेश की। इसी शरीर में प्रविष्ट हो जाए।
पुराने से परिचय होता है, पहचान होती है प्रेम होता है हमारे पूर्वजों ने इस बात को बहुत सदियों पूर्व समझ लिया कि शरीर को बचाना ठीक नहीं है। इसे तुरन्त जला कर पंच तत्व में ही विलीन कर दो, इसलिए हिंदुओं ने कब्रों में शरीर को नहीं रखा। क्योंकि उससे आत्मा की यात्रा में निरर्थक बाधा पड़ती है। जब तक शरीर बचा रहेगा थोड़ा बहुत ही सही, तब तक आत्मा वहां चक्कर लगाती ही रहेगी।
जैसे ही हम मुर्दे को जला देते हैं, जैसे किसी का घर नष्ट हो जाय गया वहां खंडहर भी नहीं बचे कि वह उसके आसपास चक्कर काटे। वहां सब राख ही हो अब वहां रहने का कोई कारण ही नहीं। तब वह कोई नया घर खोजेगा ही।
ऐसे ही शरीर के नष्ट होते ही आत्मा भागती है। आत्मा नए गर्भ में प्रवेश करने के लिए उत्सुक होती है। जिसकी भी तृष्णा से ही शुरुआत होती है।
इसलिए तो हम कहते हैं, जो तृष्णा के पार हो गया, उसका पुनर्जन्म नहीं होता। क्योंकि पुनर्जन्म का कोई कारण न रहा। सब घर कामना से बनाए जाते हैं। शरीर कामना से बनाया जाता है। कामना ही आधार है शरीर का। जब कोई कामना ही न रही, पाने को कुछ न रहा, जानने को कुछ न रहा, यात्रा पूरी हो गई, तो नए गर्भ में यात्रा नहीं होती।
सनातन धर्म में कहा गया है आत्मा अनन्त यात्रा पर होती है जब तक उसको परमात्मा साक्षात्कार ना हो जाये इसलिए आत्मा अपनी यात्रा को अपने कर्म अनुसार करती है कभी जन्म लेती है, यात्रा पर चलती रहती है। सिर्फ मनुष्य जन्म ही वो है जिसमे इस यात्रा को पूर्ण किया जा सकता है।
सदैव तत्परता से महामंत्र का जप करे और मनुष्य जीवन का उदेश सार्थक करे👇
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे|
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे||